'हमारे फेफड़ों में भी जाता है धुआं.. लेकिन पराली जलाना मज़बूरी..', किसानों ने बयां किया दर्द
'हमारे फेफड़ों में भी जाता है धुआं.. लेकिन पराली जलाना मज़बूरी..', किसानों ने बयां किया दर्द
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अमृतसर: राजधानी दिल्ली सहित उत्तर भारतीय राज्यों में प्रदूषण से हालात बदतर होते जा रहे हैं. दिल्ली में तो हवा जहरीली होती जा रही है. इसके लिए दिवाली की आतिशबाजी के साथ ही किसानों द्वारा जलाई जा रही पराली को भी जिम्मेदार बताया जा रहा है. प्रशासन भी पराली जलाने वाले किसानों पर सख्ती कर रहा है. 

पंजाब के संगरूर में तीन दिन पहले तक पराली जलाने के लगभग 1700 मामले प्रकाश में आ चुके थे और किसानों से 34 हजार रुपये जुर्माना वसूला जा चुका है. किसानों का कहना है कि आग लगने के कुछ सेकंड बाद ही धुंआ हमारे फेफड़ों में जाने लगता है, दूसरों के पास तो कई घंटों बाद पहुंचता है. हमें भी चिंता है, किन्तु हमारी मजबूरी है. किसान हरदेव सिंह बताते हैं कि पराली जलाना उनकी विवशता है. वो कहते हैं कि, 'इसको न तो हम खेत में एकत्रित कर सकते हैं और न हमारे पास इतनी जगह है कि हम इसको कहीं और रख लें और न ही हमारे पास कोई साधन है या पैसा है कि हम पराली को मिट्टी में मिला दें.' 

हरदेव सिंह कहते हैं कि, 'ठेके पर जमीन लेकर धान उगाई थी. बारिश के कारण वो भी खराब हो गई. इतना बड़ा खेत आपके सामने हैं इस पराली को किस तरह मिट्टी में मिलाया जा सकता है. सरकारी कोई सब्सिडी नहीं दे रही और इसका कोई समाधान नहीं कर रही. हम तो चाहते हैं कि सरकार इसे उठा कर ले जाए. हमारे खेत खाली कर दे. हम क्यों आग लगाएंगे, किन्तु इतने वर्षों में किया तो कुछ नहीं.' उन्होंने कहा कि वो अभी थोड़ा ही जला रहे हैं और बाकी मिट्टी में मिला देंगे. उनका कहना है कि यदि पूरा जला दिया तो और धुंआ हो जाएगा.

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