सभी मुसलमानों को OBC कोटे का आरक्षण..! कांग्रेस के इस फैसले पर क्या कहता है संविधान और मंडल कमीशन ?
सभी मुसलमानों को OBC कोटे का आरक्षण..! कांग्रेस के इस फैसले पर क्या कहता है संविधान और मंडल कमीशन ?
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बैंगलोर: कर्नाटक में सभी मुसलमानों के लिए आरक्षण के मुद्दे पर बहस छिड़ गई है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी हालिया चुनावी रैलियों के दौरान कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार की नीतियों की आलोचना की है। यह विवाद राज्य के अन्य पिछड़ा वर्ग (PBC) कोटा में सभी मुस्लिम समुदायों को शामिल करने के इर्द-गिर्द घूमता है, जिससे उन्हें सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ा बताकर लाभ देने की योजना है।

 

राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (NCBC) ने इस मुद्दे पर चिंता जताते हुए कहा है कि उसे छह महीने पहले कर्नाटक में OBC आरक्षण कोटा में अनियमितताओं की जानकारी मिली थी। आयोग की जांच से पता चला कि सरकारी नौकरियों के साथ-साथ मेडिकल और इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षाओं में भी बड़ी संख्या में मुसलमानों को आरक्षण का लाभ दिया गया। पीजी मेडिकल पाठ्यक्रमों में 930 सीटों में से 150 सीटें कथित तौर पर मुस्लिम वर्ग के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित कर दी गईं, जो कुल सीटों का लगभग 16 प्रतिशत है। इसके अलावा, ये आरक्षित सीटें मुस्लिम पिछड़ी जातियों तक ही सीमित नहीं थीं बल्कि मुस्लिम समुदाय के सभी वर्गों के लिए खुली थीं। इस विवाद ने मुसलमानों को आरक्षण का लाभ देने की संवैधानिक वैधता पर सवाल खड़ा कर दिया है, जो स्पष्ट रूप से संविधान के आरक्षण प्रावधानों के तहत कवर नहीं हैं।

धर्म आधारित आरक्षण पर क्या कहता है संविधान :-

दलित चिंतक दिलीप मंडल ने कांग्रेस की इस बात के लिए आलोचना की है कि वह मंडल आयोग की सिफारिशों को कमजोर करने का प्रयास कर रहे हैं। मंडल का तर्क है कि सैयद, शेख, पठान और मुगल जैसी जातियों को ओबीसी श्रेणी में शामिल करके कांग्रेस ने मंडल आयोग के दिशानिर्देशों की धज्जियाँ उड़ाई हैं। दरअसल, मंडल कमीशन (12.18) के अनुसार, ''मुसलमान दो ही स्थिति में OBC हो सकता है : 1. यदि उसके पुरखे पहले हिंदू अछूत रहे हों और 2. हिंदुओं के समकक्ष जातीय पेशे वाले मुसलमान, यदि वो जाति हिंदुओं में OBC है तो. जैसे - धोबी, तेली, धीमर, नाई, गुज्जर, कुम्हार, लोहार, दर्जी, बढ़ई आदि)। इसके अलावा बाकी मुसलमान OBC नहीं हैं।'' लेकिन, कांग्रेस ने सभी मुस्लिमों को पिछड़ा वर्ग की सूची में डालकर उन्हें आरक्षण दे दिया है। जबकि, केंद्र सरकार ने आर्थिक रूप से पिछड़ों के लिए जो 10 फीसद आरक्षण का फैसला किया है, उसमे मुस्लिमों समेत तमाम धर्म शामिल हैं.

हालाँकि, मुस्लिम खुद दावा करते हैं कि, उनके मजहब में कोई जातिवाद नहीं है, तो उनमे अगड़ा पिछड़ा, दलित कहाँ से आया ? दूसरी बात ये है कि, भारतीय संविधान केवल जाति के आधार पर आरक्षण देने की बात करता है, धर्म के आधार पर नहीं। इस आधार पर मुसलमानों का आरक्षण बनता ही नहीं है, ये मामला सुप्रीम कोर्ट में भी लंबित है और अभी तक फैसला नहीं आया है, इसके बावजूद कांग्रेस ने चुनावी माहौल में OBC के कोटे में से मुसलमानों को आरक्षण दे दिया है। ऐसा नहीं है कि मुस्लिमों को किसी किस्म के सरकारी लाभ नहीं मिलते, दरअसल, उन्हें अल्पसंख्यक की श्रेणी में रखा गया है, जिसमे SC/ST और OBC कोई नहीं है, क्योंकि ये तीनों हिन्दू में ही गिने जाते हैं। अब SC/ST और OBC को अल्पसंखयकों को मिलने वाला लाभ तो मिलता नहीं, लेकिन मुस्लिमों को दोनों मिल रहे हैं आरक्षण भी और अल्पसंख्यकों को मिलने वाले तमाम लाभ भी। जिससे SC/ST और OBC का हक़ मारा जा रहा है। 

प्रोफेसर और दलित चिंतक दिलीप मंडल पूछते हैं कि, ''कांग्रेस ने क्या सोचकर केरल, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में सभी मुस्लिमों को OBC में डाला और क्यों 2004, 2009, 2014 के घोषणापत्र में इस पॉलिसी को राष्ट्रीय स्तर पर लागू करने का वादा किया।'' उल्लेखनीय है कि, बीते दिनों में राहुल गांधी हर राज्य में घुमते हुए दावा कर रहे हैं कि, भाजपा ने OBC के साथ अन्याय किया है, हम उन्हें उनका हक़ दिलाएंगे और दूसरी तरफ उनकी सरकारें OBC का आरक्षण  काटकर मुस्लिमों को दे रही है, जो अपने आप में विरोधाभासी है, इसके साथ ही अल्पसंख्यक होने के तहत भी मुस्लिमों को तमाम लाभ दिए जाते हैं. बता दें कि, भारत का संविधान मुख्य रूप से अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए आरक्षण लाभ प्रदान करता है, और मुसलमानों का स्पष्ट रूप से उल्लेख नहीं करता है। दिलीप मंडल बताते हैं कि मंडल आयोग के अनुसार, मुसलमानों को केवल दो स्थितियों में ओबीसी माना जा सकता है: यदि उनके पूर्वज पहले हिंदू अछूत थे, या यदि वे मुस्लिम जाति से हैं, जो हिंदू ओबीसी के साथ जातिगत पेशा साझा करते हैं, जैसे धोबी, तेली, धीमर, नाई, गुज्जर, कुम्हार, लोहार, दर्जी, बढ़ई आदि। हालांकि, उनका तर्क है कि सैयद, शेख, पठान और मुगल जैसी जातियों सहित अधिकांश मुसलमान इन मानदंडों को पूरा नहीं करते हैं।

बंगाल में भी OBC आरक्षण का 90 फीसद हिस्सा मुस्लिमों को :-

वहीं, राष्ट्रीय पिछड़ा आयोग अध्यक्ष (NCBC) के अध्यक्ष हंसराज अहीर ने पश्चिम बंगाल में इसी तरह के मुद्दों पर प्रकाश डाला है, जहां OBC सूची में शामिल समुदायों का एक लगभग 90 फीसद हिस्सा मुस्लिम हैं। दरअसल, राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ने विगत 25 फरवरी को पश्चिम बंगाल की यात्रा की थी, जिसमे खुद बंगाल सरकार की संस्था कल्चरल रिसर्च इंस्टीट्यूट (CRI) की रिपोर्ट से पता चला था कि ममता सरकार ने हिंदू धर्म से धर्मांतरित होकर मुस्लिम बने लोगों को भी OBC की सूची में शामिल कर दिया है। पिछड़ा आयोग के इस दौरे में यह भी पता चला है कि बंगाल सरकार ने OBC की लिस्ट में कुल 179 जातियों को शामिल किया है, जिसमे से 118 जातियाँ अकेले मुस्लिमों की है। जबकि, हिंदुओं की महज 61 जातियों को ही OBC की सूची में जगह दी गई है। इसको लेकर NCBC के राष्ट्रीय अध्यक्ष हंसराज अहीर ने कहा है कि पश्चिम बंगाल की कुल जनसँख्या में से 70% हिंदू हैं और 27% मुस्लिम। इसके बाद भी बड़ी तादाद में मुस्लिम जातियों को OBC की सूची में जगह दे दी गई। 

हंसराज अहीर ने यह भी कहा है कि इस दौरे में पिछड़ा आयोग ने पाया कि 2011 से पहले बंगाल में OBC की 108 जातियाँ हुआ करती थीं। मगर, इसके बाद इसमें 71 जातियों को और शामिल किया गया। इन 71 में से 66 जातियाँ अकेले मुस्लिमों की थी। वहीं, हिंदुओं की महज 5 जातियों को ही OBC आरक्षण का लाभ देने के लिए इस सूची में जगह मिल पाई। आयोग को लगता है कि बंगाल सरकार की संस्था CRI की गलत रिपोर्ट के कारण, मुस्लिम जातियों को OBC सूची में शामिल किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार, प्रदेश में OBC आरक्षण को दो हिस्सों में विभाजित किया गया है। इसमें कुल 179 जातियों को OBC लिस्ट में शामिल किया गया है। इसमें A वर्ग में अति पिछड़ों को रखा गया है। इसमें 89 में से 73 मुस्लिम और केवल 8 हिंदू जातियां हैं। वहीं B श्रेणी में पिछड़ी जातियों को रखा गया है, इसकी सूची में कुल 98 जातियां है, जिसमें 53 हिंदू और 45 मुस्लिम जातियां हैं। यानी बंगाल में कुल 179 पिछड़ी जातियों में से 118 जातियां तो मुस्लिमों की ही है, बाकी 61 पिछड़ी जातियां हिन्दुओं की है। इससे सवाल उठने लगा है कि, जिस इस्लाम में जातिवाद न होने का दावा किया जाता है, वो भारत में अति पिछड़ी जाति श्रेणी में हिन्दुओं (8) से भी अधिक पिछड़े (मुस्लिम 73) कैसे हो गए हैं ? क्या ये लाभ उन्हें और रोहिंग्या-बांग्लादेशियों को सरकारों द्वारा वोट बैंक की लालच में दिया गया है ? क्योंकि, बीते कई चुनावों में हमने देखा है कि, मुस्लिम समुदाय एकतरफा और एकमुश्त होकर वोट करता है, इसलिए कई सियासी दल हर तरह से उन्हें खुश रखने की कोशिश करते ही हैं। ऐसा राजनेताओं के बयानों में भी कई बार देखा जा चुका है।   

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