शादी तो हुई लेकिन कभी सफल विवाह का जीवन नहीं बिता पाई लेखिका महादेवी वर्मा
शादी तो हुई लेकिन कभी सफल विवाह का जीवन नहीं बिता पाई लेखिका महादेवी वर्मा
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जो तुम आ जाते एक बार

कितनी करुणा कितने संदेश

पथ में बिछ जाते बन पराग

गाता प्राणों का तार तार

अनुराग भरा उन्माद राग

आँसू लेते वे पथ पखार

जो तुम आ जाते एक बार...

शब्‍द जो हमें सीख ही नहीं कई बार प्रेरित भी कर जाते हैं, शब्‍द जो हमें पढ़ने के उपरांत एक टीस दे जाते हैं, ऐसे ही शब्‍दों को गढ़ने वाली हिंदी की महान लेखिका और कवियत्री महादेवी वर्मा के बारे में सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने बड़े ही रोचक अंदाज़ में बोला था कि- 'शब्‍दों की कुशल चितेरी और भावों को भाषा की सहेली बनाने वाली एक मात्र सर्वश्रेष्‍ठ सूत्रधार महादेवी वर्मा साहित्य की वह उपलब्‍धि हैं जो युगों-युगों में और कहीं मिलती; जैसे स्‍वाति की एक बूंद से सहस्त्रों वर्षों में बनने वाला मोती'। यह बात तो हम सभी जानते हैं की आज ही के दिन यानी 11 सितम्बर को महादेवी वर्मा का देहांत हुआ था।

छायावादी युग की चर्चित लेखिका कवयित्री महादेवी वर्मा की कविताएं, कहानियां और संस्मरण आज भी लोगों का मन मोह लेते हैं। कई अर्शों से उनकी कविताएं और संस्मरण आज भी दुनियाभर में उसी सादगी को याद दिलाती हैं, जहां एक युवती गुंगिया का दर्द जानने के लिए उसके बोलने की प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ती, बल्कि बस पढ़ने के दौरान बरबस ही गुंगिया का दर्द पाठक महसूस किया जाता हैं। उनका संस्मरण 'स्मृति की रेखाएं' पढ़ने के दौरान महादेवी वर्मा एक चिट्ठी लिखने वाली लेखिका के तौर पर पाठक की नज़रों में छा जाती थीं।

सिर्फ 7 साल की उम्र से शुरू किया लेखन: हिंदी साहित्य की दुनिया में में अपना विशिष्ट स्थान बनाने वालीं महादेवी वर्मा ने सिर्फ 7 वर्ष की आयु से ही लिखना प्रारम्भ कर दिया था। बेशक लेखक अपनी कृतियां दिखता, लगता और कभी-कभी तो हूबहू दिखाई देने लगता हैं। यह महादेवी की कृतियों में आज भी नज़र आता हैं और इसमें कुछ नया भी नहीं है। सच बात तो यह है कि उनका यह दर्द उनके काव्य का मूल स्वर दुख और पीड़ा को दर्शाते है। निजी जीवन: ऐसा कहा जाता है की कवियत्री और लेखिका महादेवी वर्मा की शादी हुई तो थी लेकिन कुछ समय बाद ही वह अलग हो गई थीं। उनकी शादी वर्ष 1916 में बरेली के पास नवाबगंज कस्बे के निवासी वरुण नारायण वर्मा के साथ हुआ था, लेकिन उनकी शादी सफल सिद्ध नहीं हो पाई। जिसके उपरांत उन्होंने जाने-अनजाने खुद को एक संन्यासिनी का जीवन दे दिया। जिसके उपरांत उन्होंने पूरी जिंदगी सफेद कपड़े पहनना शुरू कर दिया। वह तख्त पर सोईं। यहां तक कि कभी श्रृंगार तक नहीं किया। विवाद सफल नहीं हुआ, लेकिन संबंध विच्छेद भी नहीं हो पाया। ऐसे में 1966 में पति की मौत के बाद वह स्थाई रूप से इलाहाबाद में रहने लगीं। 11 सितंबर, 1987 को प्रयाग में उनका निधन हुआ।

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