सावरकर के माफीनामे पर हंगामा, तो नेहरू की 'माफ़ी' पर चुप्पी क्यों ?
सावरकर के माफीनामे पर हंगामा, तो नेहरू की 'माफ़ी' पर चुप्पी क्यों ?
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नई दिल्ली: गुजरात चुनाव शुरू होने से पहले एक बार फिर स्वतंत्रता सेनानी विनायक दामोदर सावरकर यानी वीर सावरकर को कांग्रेस ने मुद्दा बनाना शुरू कर दिया है। सियासी जानकारों का कहना है कि, कांग्रेस ने जानबूझकर फिर सावरकर के मुद्दे को हवा दी है, ताकि गुजरात में भाजपा को टक्कर देने के लिए उसे मुस्लिम वोट बैंक का साथ मिल सके। क्योंकि हिंदुत्व विचारधारा होने के चलते मुस्लिम समुदाय, सावरकर और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के खिलाफ खड़ा दिखाई देता है और इसी को कांग्रेस भुनाने की कोशिश कर रही है। लेकिन, क्या सच में सावरकर वैसे थे, जैसा आज कांग्रेस उन्हें बता रही है। 

दरअसल, सावरकर को खुद महात्मा गांधी ने भी 'वीर' बताया था। यही नहीं, गांधी ने उनके कैद में रहने पर चिंता भी जताई थी। गांधी जी ने कहा था कि, 'यदि भारत इसी तरह सोया पड़ा रहा, तो मुझे भय है कि उसके ये दो निष्ठावान पुत्र (सावरकर के बड़े भाई भी कैद में थे) सदा के लिए हाथ से चले जाएंगे।' गांधी जी ने कहा था कि, एक सावरकर भाई (वीर सावरकर) को मैं काफी अच्छी तरह जानता हूं। मुझे लंदन में उनसे भेंट का सौभाग्य प्राप्त हुआ है'। लेकिन, आज इसे विडंबना ही कहेंगे कि गांधी को मानने वाले और उनके पदचिन्हों पर चलने का दावा करने वाली कांग्रेस ही महात्मा की बात नहीं मानती। वरना, कांग्रेस आजादी के इतने साल बाद भी सावरकर की वीरता पर कायरता का लेप चढाने की कोशिश न करती। 

 

इसी के साथ इस तरफ भी गौर करना जरूरी है कि, एक पूरा तबका जो सावरकर के माफीनामे पर जमकर हल्ला मचाता है, वह जवाहरलाल नेहरू के माफीनामे पर मुंह में दही जमा लेता है। पहले सावरकर के माफीनामे पर बात कर लेते हैं, कि क्यों सावरकर जैसे महान क्रांतिकारी को कायर और अंग्रेजों के आगे घुटने टेकने वाला सिद्ध करने की पुरजोर कोशिश की गई? दरअसल, दोहरे काले पानी (50 साल) की सजा काट रहे सावरकर को यह अंदेशा हो गया था कि सेल्युलर जेल की चारदीवारी में 50 साल काटने से पहले ही उनकी मौत हो जाएगी। ऐसे में देश के लिए कुछ करने का उनका सपना जेल में ही खत्म हो जाएगा। लिहाजा, एक रणनीति के तहत सावरकर ने अंग्रेजों से रिहाई के लिए माफीनामा लिखा। हालांकि, इस समय तक सावरकर, कालापानी में 10 वर्ष का कठोर कारावास काट चुके थे, जहाँ उन्हें दिन भर कोल्हू में पिसना पड़ता था। लेकिन, इसी माफीनामे को आधार बनाकर कांग्रेस ने सदा सावरकर को कायर साबित करने की कोशिश की है।

अब बात नेहरू की, तो आपको बता दें कि वर्ष 1923 में नाभा रियासत में गैर कानूनी ढंग से दाखिल होने पर औपनिवेशिक शासन ने जवाहरलाल नेहरू को 2 वर्ष जेल की सजा सुनाई थी। उस समय नेहरू ने भी कभी भी नाभा रियासत में प्रवेश न करने का माफीनामा देकर महज दो सप्ताह में ही अपनी सजा माफ करवा ली और जेल से बाहर भी आ गए। यही नहीं जवाहर लाल के पिता मोती लाल नेहरू तक अपने बेटे की रिहाई के लिए तत्कालीन वायसराय के पास सिफारिश लेकर भी पहुंच गए थे। लेकिन, नेहरू के इस माफीनामें को कांग्रेस और उनके समर्थक बॉन्ड बताते हैं और सावरकर का माफीनामा उनकी नज़रों में कायरता है।  ये भी एक तथ्य है कि, राजनितिक कैदी होने के कारण नेहरू को कभी कालापानी की सजा नहीं मिली और वे जेल में से अपनी बेटी इंदिरा को पत्र लिखा करते थे, जबकि सावरकर जेल की दीवारों पर पत्थरों से देशभक्ति की कविताएं लिखकर अन्य कैदियों को सुनाते थे और उनका मनोबल बढ़ाते थे

यहाँ तक कि, कांग्रेस, इंदिरा गांधी के उस पत्र को भी अनदेखा कर देती है, जिसमे उन्होंने वीर सावरकर को भारत माँ का 'महान सपूत' बताया है। 20 मई 1980 को तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी ने पंडित बाखले, सचिव, स्वतंत्रवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक के नाम से संबोधित चिट्ठी में सावरकर के योगदान का उल्लेख किया था। इस पत्र में इंदिरा ने लिखा है, 'मुझे आपका पत्र 8 मई 1980 को प्राप्त हुआ था। वीर सावरकर का ब्रिटिश सरकार के खिलाफ मजबूत प्रतिरोध हमारे स्वतंत्रता आंदोलन के लिए बेहद अहम है। मैं आपको देश के महान सपूत (Remarkable Son of India) के शताब्दी समारोह के आयोजन के लिए बधाई देती हूं।'

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