आखिर कैसे बने चांद पर गहरे गड्ढे? यहाँ जानिए इन 10 जरुरी सवालों के जवाब
आखिर कैसे बने चांद पर गहरे गड्ढे? यहाँ जानिए इन 10 जरुरी सवालों के जवाब
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नई दिल्ली: ISRO ने इतिहास रच दिया है। चंद्रयान-3 चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंड कर चुका है, जो भारत के लिए एक ऐतिहासिक क्षण है। भारत चंद्रमा की दक्षिणी सतह पर आसानी से अंतरिक्ष यान उतारने वाला पहला देश बन गया है। 140 करोड़ लोगों की प्रार्थना और ISRO के साढ़े 16 हजार वैज्ञानिकों की 4 साल की कड़ी मेहनत और लगन आखिर रंग ले ही लाई और अब पूरी दुनिया ही नहीं चांद भी भारत की मुठ्ठी में है। वही बीते कुछ दिनों से चंद्रयान-3 की लॉन्चिंग के साथ ही लोगों की चंद्रमा में दिलचस्पी बढ़ती दिखाई दी है. बीते कुछ दिनों में इंटरनेट पर चंद्रमा से जुड़े कई सवाल पूछे जा रहे हैं. यहां हम आपको चंद्रमा से जुड़ी 10 बातें बता रहे हैं...

1- गोल नहीं है चंद्रमा:-
पूर्णिमा के दिन चंद्रमा बिलकुल गोल दिखाई देता है. किन्तु असल में एक उपग्रह के तौर पर चंद्रमा किसी गेंद की तरह गोल नहीं है. ये अंडाकार है. ऐसे में जब आप चांद की तरफ देख रहे होते हैं तो आपको इसका कुछ हिस्सा ही दिखाई देता है. इसके साथ ही चांद का भार भी उसके ज्यामितीय केंद्र में नहीं है. ये अपने ज्यामितीय केंद्र से 1.2 मील दूर है.

2- कभी पूरा नहीं दिखता चंद्रमा:-
यदि आप कभी भी चांद देखते हैं तो आप उसका अधिकतम 59 प्रतिशत हिस्सा देख पाते हैं. चांद का 41 फीसद हिस्सा धरती से दिखाई नहीं आता. यदि आप अंतरिक्ष में जाएं और 41 प्रतिशत क्षेत्र में खड़े हो जाएं तो आपको धरती नजर नहीं आएगी.

3- ज्वालामुखी विस्फोट का 'ब्लू मून' से कनेक्शन:-
माना जाता है कि चंद्रमा से जुड़ा 'ब्लू मून' शब्द वर्ष 1883 में इंडोनेशियाई द्वीप क्राकातोआ में हुए ज्वालामुखी विस्फोट के कारण उपयोग में आया. इसे पृथ्वी के इतिहास के सबसे भीषण ज्वालामुखी विस्फोटों में गिना जाता है. कुछ ख़बरों के अनुसार, इस धमाके की आवाज़ पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में स्थित शहर पर्थ, मॉरीशस तक सुनी गई थी. इस विस्फोट के पश्चात् वायुमंडल में इतनी राख फैल गई कि राख भरी रातों में चांद नीला दिखाई दिया. इसके बाद ही इस टर्म की शुरुआत मानी जाती है.

4- चांद पर सीक्रेट प्रोजेक्ट:-
एक दौर ऐसा था जब अमेरिका चांद पर परमाणु हथियारों के इस्तेमाल पर गंभीरता से विचार कर रहा था. इसका मकसद सोवियत संघ को अमेरिकी सैन्य शक्ति से अवगत कराना था जिससे उसे दबाव में लाया जा सके. इस गुप्त परियोजना का नाम 'ए स्टडी ऑफ़ लूनर रिसर्च फ़्लाइट्स' और प्रोजेक्ट 'ए119' था.

5- चांद पर कैसे बने गहरे गड्ढे?
चीन में एक प्राचीन धारणा है कि ड्रैगन के सूर्य को निगलने के कारण सूर्य ग्रहण होता है. इसकी प्रतिक्रिया में चीनी लोग जितना संभव हो, उतना शोर मचाते थे. उनका ये भी मानना था कि चांद पर एक मेंढक रहता है जो चांद के गड्ढों में बैठता है. किन्तु चांद पर मौजूद इंपैक्ट क्रेटर यानी गहरे गड्ढे अब से चार अरब साल पहले आकाशीय पिंडो की टक्कर से बने हैं.

6- पृथ्वी की रफ़्तार धीमी कर रहा है चंद्रमा:-
जब चंद्रमा पृथ्वी के सबसे नजदीक होता है तो इसे पेरिग्री कहते हैं. इसके चलते ज्वार-भाटा का स्तर सामान्य से काफ़ी बढ़ जाता है. इसके चलते चंद्रमा पृथ्वी की घूर्णन शक्ति भी कम करता है जिसके कारण पृथ्वी हर एक शताब्दी में 1.5 मिलिसेकेंड धीमी होती जा रही है.

7- चंद्रमा की रोशनी:-
पूर्णिमा के चांद की तुलना में सूरज 14 गुना अधिक चमकीला होता है. पूरनमासी के एक चांद से आप अगर सूरज के बराबर की रोशनी चाहेंगे तो आपको 398,110 चंद्रमाओं की आवश्यकता पड़ेगी. जब चंद्र ग्रहण लगता है तथा चंद्रमा पृथ्वी की छाया में आ जाता है तो उसकी सतह का तापमान 500 डिग्री फॉरेनहाइट तक गिर जाता है. तथा इस प्रक्रिया में 90 मिनट से भी कम का वक़्त लगता है.

8- लियानोर्डा डा विंसी ने पता लगाया था:-
कभी-कभी चांद एक छल्ले की भांति लगने लगता है. इसे हम अर्धचंद्र या फिर बालचंद्र भी कहते हैं. ऐसी सूरत में हम पाते हैं कि चांद पर सूरज जैसा कुछ चमक रहा होता है. चांद का बाक़ी हिस्सा बहुत कम दिखाई देता है. इतना कि हम इसे न के बराबर कह सकते हैं और कुछ नजर आना भी काफी हद तक मौसम पर निर्भर करता है. ज्ञात इतिहास में लियानार्डो डा विंसी पहले ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने ये पता लगाया था कि चंद्रमा सिकुड़ या फैल नहीं रहा है बल्कि उसका कुछ हिस्सा केवल हमारी निगाहों से ओझल हो जाता है.

9- चांद के क्रेटर का नाम कौन तय करता है:-
इंटरनेशनल एस्ट्रॉनॉमिकल यूनियन न सिर्फ चंद्रमा के गड्ढों बल्कि किसी भी अन्य खगोलीय चीज़ का नामकरण करता है. चंद्रमा के क्रेटर्स (विस्फोट से बने गड्ढे) के नाम जानेमाने वैज्ञानिकों, कलाकारों या अन्वेषकों (एक्सप्लोरर्स) के नाम पर रखे जाते हैं. अपोलो क्रेटर तथा मेयर मॉस्कोविंस (मॉस्को का समुद्र) के पास के क्रेटर्स के नाम अमेरिकी और रूसी अंतरिक्षयात्रियों के नाम पर रखे गए हैं. मेयर मॉस्कोविंस चांद का वो क्षेत्र है जिसे चांद का सागरीय क्षेत्र कहा जाता है. चांद के बारे में हमें बहुत कुछ ऐसा है जिसके बारे में इंसान नहीं जानते हैं. एरिज़ोना के लॉवेल ऑब्जर्वेट्री ऑफ़ फ्लैगस्टाफ़ ने साल 1988 में चांद के बारे में एक सर्वे किया था. इसमें हिस्सा लेने वाले 13 प्रतिशत लोगों ने कहा था कि उन्हें लगता है चांद चीज़ से बना हुआ है.

10- चांद का रहस्यमयी दक्षिणी ध्रुव:-
चांद का दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र जहां चंद्रयान-3 पहुंचने का प्रयास कर रहा है, उसे बेहद रहस्यमयी माना जाता है. नासा के अनुसार, इस क्षेत्र में ऐसे कई गहरे गड्ढे तथा पर्वत हैं जिसकी छांव वाली ज़मीन पर अरबों वर्षों से सूरज की रोशनी नहीं पहुंची है.

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