संविधान में किसने कर दिया गैर-कानूनी बदलाव ? सुप्रीम कोर्ट में होगी तीखी बहस, जानिए कब है सुनवाई
संविधान में किसने कर दिया गैर-कानूनी बदलाव ? सुप्रीम कोर्ट में होगी तीखी बहस, जानिए कब है सुनवाई
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नई दिल्ली: सोमवार (29 अप्रैल) को, भारत की सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय संविधान की प्रस्तावना से "समाजवादी" (Socialist) और "धर्मनिरपेक्ष" (Secular) शब्दों को हटाने की मांग करने वाली जनहित याचिका (PIL) को स्थगित कर दिया। संक्षिप्त बहस के बाद, सुप्रीम कोर्ट ने "बहुत अधिक मामले और दिन भर के भारी बोझ" का हवाला देते हुए मामले को जुलाई तक के लिए स्थगित कर दिया। दरअसल, भारत के संविधान में ये स्पष्ट है कि, इसकी प्रस्तावना में कभी भी कोई बदलाव नहीं किया जा सकता, लेकिन इंदिरा सरकार में इमरजेंसी के दौरान ये दो शब्द चुपचाप संविधान की प्रस्तावना में जोड़ दिए गए थे, जिस समय कई विपक्षी नेता, समेत पत्रकार भी जेल में थे। ये खबर ही काफी दिनों के बाद बाहर आई। 

विशेष रूप से, याचिकाएं भाजपा के राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी और सुप्रीम कोर्ट के वकील विष्णु शंकर जैन द्वारा दायर की गई हैं। जबकि राज्यसभा सांसद और CPI नेता बिनॉय विश्वम ने याचिका का विरोध करने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया था। इस मामले की सुनवाई जस्टिस संजीव खन्ना और दीपांकर दत्ता की दो जजों की बेंच कर रही है। आज की सुनवाई शुरू होते ही एक वकील ने कहा कि यह एक 'संवैधानिक प्रश्न' है। सुब्रमण्यम स्वामी को जवाब देते हुए जस्टिस खन्ना ने मामले को कोर्ट की गर्मियों की छुट्टियों के बाद यानी जुलाई तक के लिए टाल दिया। 

वकील ने सुप्रीम कोर्ट को सुझाव दिया कि पीठ सवाल पूछ सकती है ताकि याचिकाकर्ता रिकॉर्ड पर जवाब दे सकें। हालाँकि, न्यायमूर्ति खन्ना ने कहा कि अदालत में "आज बहुत भारी बोर्ड" था और परिणामस्वरूप मामले को स्थगित कर दिया गया। अदालत की सुनवाई के बाद, मामले में याचिकाकर्ताओं में से एक, विष्णु जैन ने ट्वीट करते हुए कहा कि, “आज सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई की, जिसमें मैंने भारत के संविधान की प्रस्तावना में आने वाले धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी शब्द को चुनौती दी है। अदालत ने मामले को जुलाई में सूचीबद्ध किया है।”

जनहित याचिकाओं ने सोशल मीडिया पर जोरदार चर्चा पैदा कर दी है और कई नेटिज़न्स इन याचिकाओं के पक्ष में वकालत कर रहे हैं, जिसमें बताया गया है कि 'समाजवादी' और 'धर्मनिरपेक्ष' शब्द देश के 'काले अध्याय' आपातकाल के दौरान 42वें संवैधानिक संशोधन के माध्यम से जोड़े गए थे। इस बीच, फरवरी 2024 में आखिरी सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने सवाल उठाया था कि क्या संविधान को अपनाने (संविधान सभा द्वारा) की तारीख 26 नवंबर 1949 को बरकरार रखते हुए संविधान की प्रस्तावना में संशोधन किया जा सकता है।

न्यायमूर्ति दत्ता ने कहा, “शैक्षणिक उद्देश्य के लिए, क्या एक प्रस्तावना जिसमें तारीख का उल्लेख किया गया है, को अपनाने की तारीख में बदलाव किए बिना बदला जा सकता है। अन्यथा, हाँ प्रस्तावना में संशोधन किया जा सकता है। इसमें कोई समस्या नहीं है।” शीर्ष अदालत की टिप्पणी पर प्रतिक्रिया देते हुए स्वामी ने कहा, "इस मामले में बिल्कुल यही सवाल है।" न्यायमूर्ति दत्ता ने आगे कहा, “यह शायद एकमात्र प्रस्तावना है, जिसे मैंने देखा है जो एक तारीख के साथ आती है। हम यह संविधान हमें फलां तारीख को देते हैं, मूल रूप से ये दो शब्द (समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष) थे ही नहीं।'

विष्णु जैन ने दलील दी कि भारत के संविधान की प्रस्तावना एक निश्चित तारीख के साथ आती है, इसलिए इसमें बिना चर्चा के संशोधन नहीं किया जा सकता। स्वामी ने अपनी याचिका में कहा था कि आपातकाल के दौरान 1976 के 42वें संविधान संशोधन अधिनियम के माध्यम से प्रस्तावना में डाले गए दो शब्द, 1973 में 13-न्यायाधीशों की पीठ द्वारा प्रसिद्ध केशवानंद भारती फैसले में प्रतिपादित बुनियादी संरचना सिद्धांत का उल्लंघन करते हैं, जिसके द्वारा संविधान में संशोधन करने की संसद की शक्ति को संविधान की मूल विशेषताओं के साथ छेड़छाड़ करने से रोक दिया गया था।

सुब्रमण्यम स्वामी ने सुप्रीम कोर्ट में तर्क दिया था कि, “संविधान निर्माताओं ने विशेष रूप से इन दो शब्दों को संविधान में शामिल करने को खारिज कर दिया था और आरोप लगाया था कि ये दो शब्द नागरिकों पर तब भी थोपे गए थे, जब संविधान के निर्माताओं ने कभी भी लोकतांत्रिक शासन में 'समाजवादी' और 'धर्मनिरपेक्ष' अवधारणाओं को पेश करने का इरादा नहीं किया था।” यह तर्क दिया गया है कि इस तरह का सम्मिलन अनुच्छेद 368 के तहत संसद की संशोधन शक्ति से परे था।

राज्यसभा सांसद और सीपीआई नेता बिनॉय विश्वम ने भी उन याचिकाओं का विरोध करने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, जिसमें दावा किया गया था कि 'धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद' संविधान की अंतर्निहित और बुनियादी विशेषताएं हैं। फरवरी में, अदालत ने सुनवाई 29 अप्रैल तक के लिए स्थगित कर दी थी, लेकिन जैसे ही पीठ आज याचिकाओं पर सुनवाई के लिए जुटी, उसने एक बार फिर मामले को जुलाई में अगली सुनवाई के लिए स्थगित कर दिया।

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