'इस्लाम कबुलो या मारे जाओ..', गुरु गोबिंद सिंह के पूरे परिवार ने बलिदान दे दिया, पर अत्याचारी मुगलों में सामने सिर नहीं झुकाया
'इस्लाम कबुलो या मारे जाओ..', गुरु गोबिंद सिंह के पूरे परिवार ने बलिदान दे दिया, पर अत्याचारी मुगलों में सामने सिर नहीं झुकाया
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नई दिल्ली: सिखों के दसवें गुरु गोबिंद सिंह जी के परिवार की शहादत, आज भी इतिहास की सबसे बड़ी शहादतों में गिनी जाती हैं। छोटे साहिबजादों का जिक्र आते ही लोगों का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है और मस्तक श्रद्धा से झुक जाता है। देश में पहली बार पीएम नरेंद्र मोदी की घोषणा के बाद आज 26 दिसंबर को गुरु गोबिंद सिंह जी के छोटे साहिबजादों बाबा जोरावर सिंह जी और बाबा फतेह सिंह जी के साहस को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए 'वीर बाल दिवस' (Veer Bal Diwas) भारत के साथ-साथ विदेशों में भी मनाया जा रहा है। गुरुद्वारा श्री फतेहगढ़ साहिब उस स्थान पर खड़ा है, जहां साहिबजादों ने अंतिम सांस ली थी। पीएम मोदी आज इस शहादत को नमन करते हुए खुद ‘वीर बाल दिवस’ कार्यक्रम में शामिल होने वाले हैं। 

 

एक हफ्ते में खत्म हो गया था गुरु गोबिंद सिंह का पूरा परिवार :-

बता दें कि उस समय मुगलों ने अचानक आनंदपुर साहिब के किले पर हमला कर दिया था। गुरु गोबिंद सिंह जी मुगलों से मुकाबला करना चाहते थे, मगर अन्य सिखों ने उन्हें वहां से चलने को कहा। इसके बाद गुरु गोबिंद सिंह के परिवार समेत अन्य सिखों ने आनंदपुर साहिब के किले को छोड़ दिया और वहां से रवाना हो गए। जब वे लोग सरसा नदी को पार कर रहे थे, तो पानी का बहाव इतना तेज हो गया कि पूरा परिवार बिछड़ गया और गुरु गोबिंद सिंह के साथ दो बड़े साहिबजादे, बाबा अजीत सिंह और बाबा जुझार सिंह चमकौर जा पहुंचे। वहीं, माता गुजरी, दोनों छोटे साहिबजादे बाबा जोरावर सिंह, बाबा फतेह सिंह तथा गुरु साहिब के सेवक रहे गंगू गुरु साहिब अन्य सिखों से अलग हो गए। इसके बाद गंगू इन सभी को अपने घर ले गया, मगर उसने सरहिंद के नवाज वजीर खान को खबर कर दी। इसके बाद वजीर खान ने माता गुजरी और दोनों छोटे साहिबजादों को गिरफ्तार कर लिया।

चमकौर का युद्ध:-

22 दिसंबर 1704 को चमकौर की जंग शुरू हुई, जिसमें सिख और मुगलों की सेना में मुकाबला हुआ। मुगल बड़ी संख्या में थे, मगर सिखों की तादाद बहुत कम थी। गुरु गोबिंद सिंह जी ने सिखों में हिम्मत भरी और युद्ध में डटकर सामना करने के लिए कहा। यह युद्ध अगले दिन भी जारी रहा। युद्ध में सिखों को शहीद होता देखा दोनों बड़े साहिबजादों बाबा अजीत सिंह और बाबा जुझार सिंह ने गुरु साहिब से एक-एक कर युद्ध में जाने की इजाजत मांगी। गुरु साहिब ने उन्हें आज्ञा दी और उन्होंने एक के बाद एक मुगल के सर कलम करना शुरू कर दिया। हालांकि, बाद में वह दोनों भी इस जंग में वीरगति को प्राप्त हो गए।

बीबी हरशरण कौर का त्याग:-

इतिहासकारों के अनुसार, 24 दिसंबर 1704 को गुरु गोबिंद सिंह जी भी इस लड़ाई में उतरना चाहते थे, मगर अन्य सिखों ने अपने अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए गुरु साहिब जो युद्ध में उतरने से रोक दिया और उन्हें वहां से जाने का आग्रह किया। जिसके बाद मजबूरन गुरु साहिब को वहां से निकलना पड़ा। गुरु साहिब के जाने के बाद तमाम सिख पूरी बहादुरी से मुग़लों से लड़े और वीरगति को प्राप्त हुए। यहां से निकलने के बाद गुरु गोबिंद सिंह जी एक गांव में पहुंचे, जहां उन्हें बीबी हरशरण कौर मिलीं, जो उन्हें अपना आदर्श मानती थीं। जब बीबी हरशरण को जंग में शहीद हुए सिखों और साहिबजादों के बारे में पता चला, तो वह चुपके से चमकौर पहुंचीं और शहीदों का अंतिम संस्कार करना आरंभ किया, जबकि मुगल यह नहीं चाहते थे कि, सिख शहीदों का अंतिम संस्कार हो। क्रूर मुग़ल, शहीदों की लाशों को चील-गिद्ध के हवाले छोड़ना चाहते थे। जब मुगल सैनिकों ने बीबी हरशरण कौर को देखा, तो अत्याचारी मुगलों ने उन्हें भी जिन्दा जला दिया और वह भी शहीद हो गईं।

 

इस्लाम कबुलो या मारे जाओ:-

इतिहासकार बताते हैं कि, इसके बाद भी मुग़लों का जुल्म कम नहीं हुआ और उन्होंने 25 दिसंबर 1704 को माता गुजरी और दोनों छोटे साहिबजादे बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह को ठंडा बुर्ज में खुले आसमान के नीचे कैद कर दिया। वजीर खान ने दोनों छोटे साहिबजादों को अपनी कचहरी में बुलाया और डरा-धमकाकर उन्हें इस्लाम कबूल करने के लिए कहा, मगर दोनों साहिबजादों ने ‘जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल’ का नारा लगाते हुए धर्म परिवर्तन से साफ इंकार कर दिया। वजीर खान ने फिर धमकी दी कि कल तक या तो इस्लाम कबूल करो या मरने के लिए तैयार रहो।

शहादत का दिन:-

इतिहासकारों के अनुसार, अगले दिन यानी 26 दिसंबर 1704 को ठंडे बुर्ज में कैद माता गुजरी ने दोनों साहिबजादों को बेहद प्यार से तैयार करके फिर से वजीर खान की कचहरी में पहुंचाया। यहां फिर वजीर खान ने उन्हें इस्लाम कबूलने के लिए कहा, मगर गुरु साहिब के छोटे साहिबजादों ने मना कर दिया और फिर से सत श्री आकाल के जयकारे लगाने लगे। यह सुन वजीर खान बौखला गया और दोनों साहिबजादों को जिंदा दीवार में चिनवाने का हुक्म दे दिया और साहिबजादों को शहीद कर दिया। यह खबर जैसे ही माता दादी माता गुजरी के पास पहुंची, उन्होंने भी अपने प्राण त्याग दिए। इस तरह महज एक हफ्ते के अंदर गुरु साहिब का पूरा परिवार क्रूर मुगलों से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गया, लेकिन उन्होंने अत्याचार के आगे सिर नहीं झुकाया और सच्चे बादशाह की उपासना छोड़ इस्लाम कबूलना स्वीकार नहीं किया। इन साहिबजादों की अद्भुत शहादत को नमन करने के लिए आज के दिन को मोदी सरकार ने 'वीर बाल दिवस' के रूप में मनाए जाने का ऐलान किया है।  

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