हाई कोर्ट क्यों नहीं जाते ? उदयनिधि स्टालिन पर FIR की मांग करने वाले याचिकाकर्ताओं पर भड़का सुप्रीम कोर्ट, फिर जारी किया नोटिस
हाई कोर्ट क्यों नहीं जाते ? उदयनिधि स्टालिन पर FIR की मांग करने वाले याचिकाकर्ताओं पर भड़का सुप्रीम कोर्ट, फिर जारी किया नोटिस
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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने आज शुक्रवार को 'सनातन धर्म' के बारे में अपमानजनक टिप्पणी करने को लेकर तमिलनाडु के मंत्री और DMK नेता उदयनिधि स्टालिन के खिलाफ प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करने के लिए सहमति दे दी है। इसके साथ ही, याचिका में 'सनातन धर्म उन्मूलन सम्मेलन' के बारे में भी चिंता जताई गई, जहां मंत्री द्वारा कथित तौर पर की गई इन टिप्पणियों से राजनीतिक विवाद पैदा हो गया। कोर्ट ने याचिका में तमिलनाडु राज्य और उदयनिधि स्टालिन सहित प्रतिवादियों को नोटिस जारी किया है।

न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस और न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी की पीठ चेन्नई स्थित वकील बी। तमिलनाडु मुरपोकु एज़ुथालर संगम द्वारा आयोजित तमिलनाडु असंवैधानिक था। एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड गोपालन बालाजी के माध्यम से दायर याचिका में तर्क दिया गया है कि सम्मेलन में हिंदू धर्म को निशाना बनाने और आक्रामक और अपमानजनक भाषा का उपयोग करके नफरत का प्रचार करने का एक जानबूझकर एजेंडा था। न्यायाधीश अनिरुद्ध बोस और बेला एम त्रिवेदी की पीठ चेन्नई में बी जगन्नाथ नामक वकील के कानूनी अनुरोध पर सुनवाई कर रही थी। वह चाहते थे कि अदालत स्टालिन और अन्य लोगों को 'सनातन धर्म' (हिंदू धर्म से संबंधित शब्द) के बारे में नकारात्मक टिप्पणी करना बंद करने के लिए कहे। वह यह भी चाहते थे कि अदालत यह घोषित करे कि तमिलनाडु में 2 सितंबर को तमिलनाडु मुरपोकु एज़ुथालर संगम द्वारा आयोजित एक सम्मेलन की कानून द्वारा अनुमति नहीं थी। एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड गोपालन बालाजी द्वारा प्रस्तुत वकील ने तर्क दिया कि सम्मेलन जानबूझकर हिंदू धर्म की आलोचना करने और आहत करने वाली और अपमानजनक भाषा का उपयोग करके नफरत फैलाने की कोशिश कर रहा था।

आज की सुनवाई की शुरुआत में ही न्यायमूर्ति बोस ने याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता दामा शेषाद्रि नायडू को इस प्रार्थना के साथ उच्च न्यायालय जाने की सलाह दी। लेकिन वरिष्ठ वकील सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप की अपनी मांग पर अड़े रहे और नफरत फैलाने वाले भाषण के खिलाफ कार्रवाई की मांग करने वाले अन्य आवेदनों में अदालत द्वारा दी गई अंतरिम राहत की ओर इशारा किया। उन्होंने तर्क दिया कि, 'अगर कोई व्यक्ति किसी कम्युनिटी या लोगों के समूह के खिलाफ बोलता है, तो एक बार समझा जा सकता है। लेकिन, यह तब समझ से बाहर हो जाता है, जब राज्य अपनी सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल करता है। छात्रों को एक विशेष धर्म (हिन्दू धर्म) के खिलाफ बोलने का निर्देश देने वाले परिपत्र जारी किए गए हैं। क्या कोई संवैधानिक प्राधिकारी ऐसे भाषण दे सकता है? ये अस्वीकार्य हैं। याचिकाओं का एक समूह पहले ही स्वीकार कर लिया गया है, मुझे अब उच्च न्यायालय जाने के लिए नहीं कहा जाना चाहिए। जब ​​व्यक्तियों की बात आती है, तो अदालत ने पहले भी अंतरिम निर्देश जारी किए हैं। यहां, मैं राज्य के बारे में चिंतित हूं।'

भले ही पीठ ने शुरू में याचिका पर विचार करने में अनिच्छा व्यक्त की, लेकिन अंततः उसने नोटिस जारी करने की वरिष्ठ वकील की अपील स्वीकार कर ली। हालाँकि, अदालत ने इस स्तर पर इस मामले को घृणास्पद भाषण पर याचिकाओं के समूह के साथ टैग करने से इनकार कर दिया। अलग होते हुए, न्यायमूर्ति बोस ने वादकारियों के सीधे उच्चतम न्यायालय में जाने पर भी अपनी अस्वीकृति व्यक्त की। जज ने चिल्लाते हुए कहा कि, 'आप हाई कोर्ट क्यों नहीं जा सकते? आप हमें पुलिस स्टेशन में बदल रहे हैं।'

क्या है उदयनिधि स्टालिन का बयान:-

डीएमके नेता और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के बेटे उदयनिधि स्टालिन इस महीने की शुरुआत में अपनी उस टिप्पणी के लिए सवालों के घेरे में आ गए थे, जिसमें उन्होंने 'सनातन धर्म' की तुलना 'मलेरिया' और 'डेंगू' जैसी बीमारियों से की थी और इसे समूल नष्ट करने की वकालत की थी। इससे न केवल एक बड़ा राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया, बल्कि उदयनिधि के खिलाफ कई आपराधिक शिकायतें भी दर्ज की गईं और साथ ही उनके खिलाफ कार्रवाई की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं भी दायर की गईं। मौजूदा याचिका में उदयनिधि के खिलाफ FIR दर्ज करने का निर्देश देने की मांग की गई है। 

वहीं, कुछ कांग्रेस नेताओं ने भी उदयनिधि स्टालिन के बयान का समर्थन किया है, जिसमे कार्ति चिदंबरम, लक्ष्मी रामचंद्रन और कांग्रेस सुप्रीमो मल्लिकर्जुन खड़गे के बेटे एवं कर्नाटक सरकार में मंत्री प्रियांक खड़गे का नाम भी शामिल है। जिसके चलते उत्तर प्रदेश के रामपुर जिले में उदयनिधि और उनके समर्थक कांग्रेस नेता प्रियांक खड़गे के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है। बता दें कि, अपने बयान के खिलाफ देशभर में विरोध प्रदर्शन के बावजूद उदयनिधि स्टालिन लगातार माफी मांगने से इनकार करते रहे हैं। हालाँकि, विवाद बढ़ने के बाद उदयनिधि ने डैमेज कण्ट्रोल करते हुए कहा था कि, उन्होंने जातिवाद ख़त्म करने की बात कही थी। लेकिन यहाँ गौर करें कि, जातिवाद मिटाने की बात प्रधानमंत्री मोदी, बसपा सुप्रीमो मायावती समेत कई दलों के कई नेता करते रहे हैं, इसे समाज सुधार की कोशिश के रूप में देखा जाता है और कोई विवाद नहीं होता, लेकिन जब पूरे धर्म का ही नाश करने की बात की जाए और नेतागण उसका समर्थन भी करें, तो ये निश्चित ही नफरत फ़ैलाने वाली बात है। यही कारण है कि, कई पूर्व जजों, आईएएस अधिकारीयों (262 गणमान्य नागरिकों) ने भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ को पत्र लिखकर उदयनिधि के बयान पर स्वतः संज्ञान लेने और कार्रवाई करने का आग्रह किया था। हालाँकि, सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान तो नहीं लिया, याचिका दाखिल किए जाने के बाद भी हाई कोर्ट जाने को कहा, लेकिन अंततः अदालत सुनवाई के लिए राजी हुई और उदयनिधि को नोटिस जारी किया। 

इस पूरे मामले में गौर करने वाली बात ये भी है कि, कुछ समय पहले इसी तरह का एक मामला सामने आया था। जब भगवान शिव का अपमान सुनकर पलटवार के रूप में भाजपा प्रवक्ता नूपुर शर्मा ने पैगम्बर मोहम्मद पर विवादित टिप्पणी कर दी थी, जिसका वीडियो मोहम्मद ज़ुबैर ने सोशल मीडिया पर फैलाया था। ​लेकिन, ज़ुबैर ने अपने एडिटेड वीडियो में केवल नूपुर का बयान शामिल किया था, उसके पहले शिव के अपमान वाली बात उसने काट दी थी। जिससे पता चलता कि, पहले हिन्दू देवता का अपमान हुआ, जिसके जवाब में पैगम्बर पर बयान दिया गया। हालाँकि, उस समय सुप्रीम कोर्ट ने भी 'केवल' नूपुर को ही जिम्मेदार माना था, शिवलिंग को प्राइवेट पार्ट कहने वाले मौलाना अब भी टीवी डिबेट में आते रहते हैं, किन्तु नूपुर गुमनाम जिंदगी जीने को मजबूर है। ऐसे में यह सवाल उठ रहा है कि, यदि किसी दूसरे धर्म को खत्म करने की बात कही गई होती, तो क्या यही होता, जो उदयनिधि वाले मामले में हो रहा है ? क्योंकि, जातिवाद तो हर धर्म में है, इस्लाम में भी 72 फिरके हैं, जिनमे से कई एक-दूसरे के विरोधी हैं, तो ईसाईयों में प्रोटेस्टेंट- केथलिक, पेंटिकोस्टल, यहोवा साक्षी में विरोध है। तो क्या समाज सुधारने के लिए उदयनिधि, इन धर्मों को पूरी तरह ख़त्म करने की बात कह सकते हैं ? या फिर दुनिया में एकमात्र धर्म जो वसुधैव कुटुंबकम (पूरा विश्व एक परिवार है), सर्वे भवन्तु सुखिनः (सभी सुखी रहें) जैसे सिद्धांतों पर चलता है, जो पूरी दृढ़ता के साथ यह मानता है कि, ईश्वर एक है और सभी लोग उसे भिन्न-भिन्न रूप में पूजते हैं, उस सनातन को ही निशाना बनाएँगे ?  

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