विजयाराजे सिंधिया का सार्वजनिक जीवन जितना प्रभावशाली था निजी जीवन में थी उतनी ही परेशानियां
विजयाराजे सिंधिया का सार्वजनिक जीवन जितना प्रभावशाली था निजी जीवन में थी उतनी ही परेशानियां
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राजमाता विजयाराजे सिंधिया (ग्वालियर राजघराना) भाजपा के संस्थापकों में से एक थीं। मध्य प्रदेश की राजनीति में भी उनका अहम योगदान है। यूं तो इनका जन्मदिन 12 अक्टूबर को आता है, किन्तु हिन्दू तिथि के अनुसार करवाचौथ को भी राजमाता का जन्मदिन सिंधिया परिवार मनाता है। इसी मौके पर हम आपको उनके जीवन से जुड़े कुछ खास किस्सों के बारे में बता रहे हैं...

विजयाराजे सिंधिया का सार्वजनिक जीवन जितना प्रभावशाली तथा आकर्षक था, निजी जीवन में उन्हें उतनी ही परेशानियों का सामना करना पड़ा था। विजयाराजे सिंधिया तथा एक उनके एक मात्र पुत्र तथा कांग्रेस नेता रहे माधव राव सिंधिया के मध्य संबंध बहुत खराब थे। ग्वालियर रियासत के महाराजा जीवाजीराव सिंधिया ने शादी जैसा अहम फैसला एक दिन में ही लिया था। मुंबई के ताज होटल की पहली भेंट में वह भावी महारानी को दिल दे चुके थे। विरोध के बड़ा भी वह शादी के निर्णय पर अटल रहे। 

ऐसी थी लव स्टोरी...
1. सागर के नेपाल हाउस में पली-बढ़ी राजपूत लड़की लेखा दिव्येश्वरी की महाराजा जीवाजी राव से भेंट मुंबई के होटल ताज में हुई।
2. महाराजा को लेखा पहली ही नजर में पसंद आ गईं थी। उन्होंने लेखा से राजकुमारी संबोधन के साथ बात की।
3. इस दौरान जीवाजी राव चुपचाप सब बातें सुनते रहे तथा लेखा की खूबसूरती एवं बुद्धिमत्ता पर मुग्ध होते रहे।
4. उन्होंने अगले दिन लेखा को परिवार सहित मुंबई में सिंधिया परिवार के समुंदर महल में इन्वाइट किया।
5. समुंदर महल में लेखा को महारानी की तरह परंपरागत मुजरे के साथ सम्मानित किया गया, तो कुंजर मामा समझ गए कि उनकी लेखा 21 तोपों की सलामी के हकदार महाराजा जीवाजी राव सिंधिया की महारानी बनने वाली है।
6. कुछ दिनों पश्चात् महाराजा ने अपनी पसंद एवं शादी का प्रस्ताव लेखा के मौसा चंदन सिंह के माध्यम से नेपाल हाउस भिजवा दिया।
7. बाद में उन्होंने शादी की घोषणा कर दी। इस शादी का सिंधिया परिवार तथा मराठा सरदारों ने विरोध किया था।
8. शादी के पश्चात् महाराजा जीवाजी राव जब अपनी महारानी को लेकर मौसा-मौसी सरदार आंग्रे से मिलवाने मुंबई ले गए, तो वहां भी विरोध झेलना पड़ा। हालांकि, पश्चात् में विजया राजे ने अपने व्यवहार तथा समर्पण से सिंधिया परिवार एवं मराठा सरदारों का भरोसा और सम्मान जीत लिया था।

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