इस राज्य में रावण का दहन नहीं बल्कि होता है वध
इस राज्य में रावण का दहन नहीं बल्कि होता है वध
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रायपुरः आज यानि मंगलवार को देशभर में दशहरा पर्व की धूम है। इस दिन पूरे देश में बुराई पर अच्छाई के प्रतीक के तौर पर रावण का पुतला दहन किया जाता है। मगर देश में छत्तीसगढ़ एक ऐसा राज्य है जहां रावण का पुतला दहन नहीं किया जाता है। मान्यता है कि अगर यहां पुतला दहन किया गया तो गलत होने की आशंका है। इसलिए यहां सालों पहले रावण का मूर्ति बनाया गया है जहां रामलीला के वक्त बाण चलाकर प्रतीकात्मक रूप से रावण का वध किया जाता है। यह परंपरा 70 वर्षों से चली आ रही है।

छत्तीसगढ़ के गांवों और शहरों के बाहरी इलाकों में खुले मैदान में आपको रावण की पत्थर या फिर सीमेंट की बनी प्रतिमाएं नजर आएंगी। यहां अधिकतर गांवों के बाहरी इलाके में एक मैदान होता है जिसे लोग रावण भाठा के नाम से जानते हैं। स्थानीय भाषा में मैदान को भाठा कहा जाता है। पुरानी परंपरा के अनुसार यहां रावण की विशालकाय प्रतिमाएं स्थापित हैं। ये प्रतिमाएं मिट्टी या गत्ते की नहीं, बल्कि पत्थर आदि से बनी हुई पक्की प्रतिमाएं हैं। कुछ तो 400 साल पुरानी तक हैं।

छत्तीसगढ़ में तो लगभग हर गांव में दशानन की विशाल प्रतिमाएं देखने को मिल जाएंगी। मजेदार बात है कि इन प्रतिमाओं को गांव के बाहर ही खुले आसमान तले खड़ा किया गया है। चलन यह भी कि प्रतिमा को लोहे की जंजीर से जकड़ कर रखा जाता है। जहां जंजीर नहीं, वहां पेंट से जंजीर बना दी जाती है, जो रावण के पैर में पड़ी दिखती है। संदेश यह कि न केवल गांव, बल्कि दैनिक आचरण में रावणरूपी बुराई के लिए कोई स्थान नहीं है। उसे जंजीर से जकड़ बाहर ही रखना चाहिए। गांव के बाहर जंजीर से जकड़ कर रखा गया रावण लोगों को हर समय बुराई से दूर रहने के लिए आगाह करता रहता है।

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