'इससे तो एक ही पार्टी को वोट दे देंगे लोग..', AAP ने किया एक देश एक चुनाव का विरोध, पत्र में लिखी ये बात
'इससे तो एक ही पार्टी को वोट दे देंगे लोग..', AAP ने किया एक देश एक चुनाव का विरोध, पत्र में लिखी ये बात
Share:

नई दिल्ली: आम आदमी पार्टी (AAP) ने शनिवार को देश में एक साथ चुनाव कराने के विचार का कड़ा विरोध करते हुए कहा कि यह "संसदीय लोकतंत्र के विचार को नुकसान पहुंचाएगा"। अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली पार्टी के अनुसार, 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' से संघ स्तर पर सत्तारूढ़ पार्टी को "अनुचित लाभ" भी होगा। AAP के राष्ट्रीय सचिव पंकज गुप्ता ने चुनाव आयोग के सचिव नितिन चंद्रा को लिखे पत्र में कहा कि, आम आदमी पार्टी 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' के विचार का कड़ा विरोध करती है। इससे संसदीय लोकतंत्र के विचार, संविधान की मूल संरचना और देश की संघीय राजनीति को नुकसान होगा। 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' त्रिशंकु विधानसभाओं से निपटने में असमर्थ है और यह सक्रिय रूप से दल-बदल विरोधी और विधायकों और सांसदों की खुली खरीद-फरोख्त की बुराई को बढ़ावा देगा।''

18 जनवरी को लिखे पत्र में कहा गया, “संविधान और लोकतंत्र के सिद्धांतों को संकीर्ण वित्तीय लाभ और प्रशासनिक सुविधा के लिए बलिदान नहीं किया जा सकता है। एक साथ चुनाव कराने से भारतीय बहुदलीय प्रणाली पर हानिकारक प्रभाव पड़ेगा जहां कई पार्टियां उन लोगों की आवाज का प्रतिनिधित्व करने के लिए उभरी हैं जो मुख्यधारा की राजनीति में हाशिए पर थे।'' गुप्ता ने लिखा कि, 'हालांकि उल्लेखनीय अपवाद मौजूद हैं, सबूत बताते हैं कि जब राज्य विधानसभा और लोकसभा दोनों के चुनाव एक साथ या छह महीने के अंतराल पर होते हैं तो बहुत बड़ी संख्या में मतदाता एक ही पार्टी को वोट देते हैं। मतदाता विधानसभा चुनाव में उसी पार्टी को वोट देते हैं, जिसके लिए उन्होंने लोकसभा चुनाव के दौरान वोट दिया था। इससे राष्ट्रीय पार्टियों को अनुचित लाभ मिलता है। हालांकि प्रमुख क्षेत्रीय दलों को भी इस पैटर्न से फायदा होगा, छोटे क्षेत्रीय दलों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा।'

इससे पहले कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस (TMC) देश में एक साथ चुनाव कराने का विरोध कर चुकी हैं। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी शुक्रवार को एक राष्ट्र, एक चुनाव पर समिति के सचिव को पत्र लिखकर "अलोकतांत्रिक" विचार को छोड़ने और इस पर अध्ययन करने के लिए गठित उच्चाधिकार प्राप्त समिति को भंग करने की मांग की थी। केंद्र ने पिछले साल देश में एक साथ चुनाव की अवधारणा का अध्ययन करने के लिए पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया था। इस विचार पर चर्चा तब शुरू हुई जब केंद्र सरकार ने बिना कोई कारण बताए पिछले साल 18 से 22 सितंबर तक संसद का विशेष सत्र बुलाया।

गौरतलब है कि 1967 तक देश में विधानसभाओं और लोकसभा के चुनाव एक साथ होते थे। हालाँकि, 1968 और 1969 में, कुछ विधान सभाएँ भंग कर दी गईं, और 1970 में, लोकसभा भंग कर दी गई - जिससे चुनावी कार्यक्रम में बदलाव आया। जब से मोदी प्रधानमंत्री बने हैं, तब से वह लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनाव एक साथ कराने के विचार पर जोर दे रहे हैं। केंद्र ने छह राष्ट्रीय दलों और 33 राज्य दलों को भी पत्र लिखकर लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और स्थानीय निकायों के लिए एक साथ चुनाव कराने पर सुझाव मांगे हैं।

'इसको हर हफ्ते थप्पड़ पड़ने चाहिए थे', अभिषेक की माँ से बोले सलमान खान

दिल्ली दंगा 2020: पूर्व कांग्रेस पार्षद इशरत जहाँ, खालिद सैफी समेत 13 लोगों पर आरोप तय, हत्या के प्रयास की धाराएं भी जुड़ीं

PM मोदी पर नीतीश के विधायक का विवादित बयान, कहा- 'अड़ियल और दानव'

 

रिलेटेड टॉपिक्स
- Sponsored Advert -
मध्य प्रदेश जनसम्पर्क न्यूज़ फीड  

हिंदी न्यूज़ -  https://mpinfo.org/RSSFeed/RSSFeed_News.xml  

इंग्लिश न्यूज़ -  https://mpinfo.org/RSSFeed/RSSFeed_EngNews.xml

फोटो -  https://mpinfo.org/RSSFeed/RSSFeed_Photo.xml

- Sponsored Advert -