डर के बाज़ार में 'कोरोना' का सौदा, किसे मुनाफा और किसे घाटा ?
डर के बाज़ार में 'कोरोना' का सौदा, किसे मुनाफा और किसे घाटा ?
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डर फैलाओ, राज करो,यह महामंंत्र है,
डरे हुओं से रचा गया यह लोकतंत्र है।
जब दुनिया में डर का ही रोना-धोना है,
तब फिर डर का धंधा, होना ही होना है।

कवि ध्रुव शुक्ल

कुछ दिनों पहले भारत में एक शीतल पेय का विज्ञापन काफी प्रचलित हुआ था, जिसमे एक अभिनेता कहता नज़र आता है 'डर के आगे जीत है'। लेकिन वास्तविकता इसके बिल्कुल विपरीत है, दरअसल, डर के आगे 'जीत' नहीं, बल्कि भय है, खौफ है, दहशत है। और इन सबके पीछे है धंधा, 'डर का धंधा', जिसमे डर बेचा जाता है, वो भी मनचाहे दामों पर, और मजे की बात तो यह है कि खरीदने वाले भी इसे बिना मोल-भाव किए जमकर खरीदते हैं, आखिर जान है तो जहान है। 

पिछले कुछ दिनों से में डर के इन सौदागरों के हाथों अपनी इच्छापूर्ति का एक नया साधन लग गया है, जिसका नाम है 'कोरोना'। अब वो ये साबित करने में जी-जान से जुट गए हैं कि कोरोना एक वायरस नहीं, बल्कि साक्षात् यमराज हैं और वो भी भैंसे पर सवार, यमपाश हाथ में लिए ताबड़तोड़ एक्शन में मुद्रा में। मतलब यहाँ आप खांसे या छींकें और वहां यमलोक में चित्रगुप्त ने अपना रजिस्टर खोला। ये सौदागर अपने इस मकसद में काफी हद तक कामयाब भी होते नज़र आ रहे हैं, लोगों के चेहरे का पीला पड़ता रंग उनकी कामयाबी की पुष्टि कर रहा है। इसी का फायदा उठाते हुए ये लोग हमें 10 रुपए का मास्क 30 रुपए में, 50 रुपए का सेनेटाइजर 300 रुपए में, यहाँ तक कि एक रुपए वाली गोली भी 5 गुना कीमत बढ़ा कर बेच रहे हैं। और ये धंधा चला आ रहा है कई वर्षों से, इससे पहले भी कई वायरस आए, इबोला, सार्स, ज़ीका, निपाह ना जाने क्या-क्या और डर बेचने वालों ने उस समय भी लोगों की मनःस्थिति का जमकर फायदा उठाया। हम अक्सर सुनते आए हैं कि विपरीत परिस्थियों में भी हमें चिंता नहीं, चिंतन करना चाहिए, लेकिन हम इसके उलट जागरूक होने की बजाए भयाक्रांत हो रहे हैं और दूसरों को भी कर रहे हैं। इसके पीछे मीडिया का भी बड़ा हाथ है। 

दरअसल, आजकल सुबह टीवी चालू करते से ही व्यक्ति को मौत की ख़बरें देखने को मिल रही हैं, यहाँ इतने मर गए, वहां इतनों ने दम तोड़ा, इससे आम आदमी इतना घबरा गया है कि उसे लगता है अगर अपनी जेब में भी हाथ डाल लिया तो कहीं कोरोना ना हो जाए। अब अगर आंकड़ों पर गौर किया जाए, तो दुनिया भर में कोरोना से अब तक 41 हज़ार के लगभग मौतें हुईं हैं, लेकिन 1 लाख 76 हज़ार लोगों ने इसपर विजय भी पाई है और स्वस्थ हुए हैं। लेकिन हमें ठीक हुए लोगों से क्या, धंधा तो सिर्फ लाशें बेचकर चलता है। माना कोरोना एक घातक और संक्रामक बीमारी है, किन्तु इसका बचाव भी तो है, सोशल डिस्टेंसिंग, एकांतवास, डॉक्टर की सलाह, प्रचार तो बचाव का अधिक किया जाना चाहिए।  पर नहीं, क्योंकि अगर ऐसा किया गया तो बरसों से जो धंधा जमाए रखा है, वो चौपट हो जाएगा। आप सभी से एक बार पुनः निवेदन है कि डर के दुकानदारों का शिकार मत बनिए, सावधानी बरतिए, जागरूक बनिए, कोरोना घातक जरूर है, लेकिन मौत का दूसरा नाम नहीं। सोशल डिस्टेंसिंग, एकांतवास और डॉक्टर की सलाह मानने से आप निश्चित इस बीमारी को मात दे सकते हैं।

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