शकुनि-दुर्योधन ने चली चाल, रुक्मिणी को लेने पहुंचे कृष्णा
शकुनि-दुर्योधन ने चली चाल, रुक्मिणी को लेने पहुंचे कृष्णा
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भगवान् श्री कृष्ण को रुक्मिणी का पत्र मिला था, जिसमें रुक्मिणी ने बताया कि उसके पिता भीष्मक और राजकुमार रुक्मी, शिशुपाल से उनका विवाह करने के लिए दबाव डाल रहे हैं. ये पढ़ते ही कृष्ण विदेभ जाने की तैयारी करते हैं | तो आपकी जानकारी के लिए बता दें कि गुरूवार, 14 मई के एपिसोड में महाभारत में क्या-क्या घटा था .

श्री कृष्ण और रुक्मिणी की कहानी
श्री कृष्ण द्वारिका से विदर्भ जाने के लिए निकल ही रहे होते हैं कि तभी वहां बलराम आते हैं.वहीं  वो भी कृष्ण के साथ विदर्भ जाने के लिए तैयार होते हैं. इसपर कृष्ण उनसे कहते हैं. 'मैं अभी जाता हूं आप पीछे-पीछे आइए पूरी सेना के साथ.'यहां रुक्मिणी से विवाह करने के लिए शिशुपाल भी विदर्भ पहुंच गया है. लेकिन रुक्मिणी शिशुपाल का स्वागत किए बिना ही मंदिर आती है. वो देवी मां का आशीर्वाद मांगती है कि तभी वहां कृष्ण पहुंच जाते हैं. इसके साथ ही जो रुक्मिणी को अपने रथ में बिठाकर और शंख बजाकर ये घोषणा करते हैं कि वो विदर्भ में रुक्मिणी को लेने आए हैं. तो वहीं रुक्मी और शिशुपाल को ये समाचार मिलते हैं कि द्वारिका की सेना विदर्भ राजधानी के द्वार तक आ गई है और कृष्ण ने रुक्मिणी का हरण कर लिया है. वहीं इस पर रुक्मी, शिशुपाल को बलराम और उनकी सेना को संभालने का आदेश देता है और खुद कृष्ण के पास जाता है. यहां बलराम और शिशुपाल की सेनाओं के बीच युद्ध शुरू हो गया और वहां रुक्मी भी पहुंच गए कृष्ण से युद्ध करने. लेकिन युद्ध में रुक्मी पराजय हुआ और कृष्ण रुक्मिणी को लेकर द्वारिका चले गए.

शकुनि-दुर्योधन का पहला पांसा
युधिष्ठिर के युवराज बनने के बाद, राजकीय कोष दुर्योधन के अधिकार में दे दिया गया है. राजकीय कोष की सहायता से दुर्योधन, युधिष्टर की लोकप्रियता को कम करने के लिए उन लोगों को खरीदने लगा जो लोगों का मत बदलने का काम करने लगे. एक तरफ धृतराष्ट अपने सारथी संजय के साथ वन घूमने निकले, जहां उन्होंने संजय को अपनी आंखें बनने को कहा. साथ ही सत्य कहने को कहा, जिसपर संजय ने युधिस्ठिर की लोकप्रियता बताते हुए दुर्योधन के अभिमानी होने का सत्य बताया.उधर दुर्योधन राजकीय कोष को खाली करने में लगा है लेकिन उसका फल उसे मिल नहीं रहा इसलिए वो क्रोधित है. तभी शकुनि ने आकर दुर्योधन को बताया कि वारणावत के शिव समारोह में उसने पुरोचन को कहकर एक लाक्षा गृह बनवाया है, जहां इस बार युधिष्टर जाएगा और वही उसका खेल समाप्त किया जाएगा.एक और तरफ भीष्म और विधुर, युधिष्टर के राजा बनने की प्रतीक्षा कर रहे हैं. साथ ही शकुनि के गांधार छोड़कर हस्तिनापुर में ही टिके रहने पर उन्हें चिंता सताने लगी है. जिस तरह से दुर्योधन राजकीय कोष लुटा रहा है, उससे उन्हें विश्वास होने लगा है कि दुर्योधन, युधिस्ठिर को राजा नहीं बनने देगा.

लाक्षा गृह की गुप्त योजना
शकुनि, दुर्योधन, कर्ण और दुशाशन को लाक्षा गृह के बनाने का समाचार देने पुरोचन हस्तिनापुर आता है.  कर्ण लाक्षा गृह की योजना का विरोध करता है, लेकिन शकुनि बार-बार उसे अंगराज कहकर गुस्सा दिलाता है. इसपर कर्ण अंग देश का मुकुट उतारकर दुर्योधन के सामने रख देता है और विनती करता है कि उसे कर्ण के नाम से पुकारा जाए ना की अंगराज कहकर.अगले दिन कर्ण दुर्योधन को समझाता भी है कि एक वीर योद्धा को छल-कपट शोभित नहीं होता और वो लाक्षा गृह बनवाने की योजना समाप्त कर दे. एक योद्धा को युद्ध करके सिद्ध करना चाहिए कि वो वीर है इसीलिए पांचों पांडवों से युद्ध करें. साथ ही वो ये भी सुचना देता है कि उस युद्ध में मगध नरेश शाल्व-शिशुपाल और रुक्मी भी उनका साथ देंगे. तभी वहां शकुनि आता है और बताता है कि द्रोणाचार्य का पुत्र अश्वत्थामा भी उनके साथ है और ना चाहते हुए द्रोणाचार्य और कृपाचार्य को भी हमारा साथ देना होगा.इतना ही नहीं भीष्म को भी अपने वचन के चलते हस्तिनापुर के राजा धृतराष्ट्र का साथ देना पड़ेगा. इतना सब जानकार दुर्योधन लाक्षा गृह को बनाने से मना करता है लेकिन शकुनि अपनी ही नीतियां बना रहा है और अब लाक्षा गृह तो बनकर ही रहेगा.

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