भारत-चीन सीमा पर दोपहर बाद नहीं टिक पाती सेना
भारत-चीन सीमा पर दोपहर बाद नहीं टिक पाती सेना
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लेह के पास चीन सीमा क्षेत्र में गलवां घाटी की तरह ही उत्तराखंड के चमोली से लगी बाड़ाहोती घाटी भी विषम भौगोलिक परिस्थितियों से भरी है। इसके साथ ही यहां दोपहर बाद चक्रवात चलता है। वहीं सुबह से दोपहर तक इस विवादित बाड़ाहोती क्षेत्र के दोनों ओर भारत और चीन की सेना पेट्रोलिंग करती है लेकिन दोपहर बाद चक्रवात के कारण सेना अपने-अपने बेस कैंप की ओर लौट जाती है। यह क्षेत्र शीतकाल में छह माह तक बर्फ में ढका रहता है।  चमोली जिले के अंतिम नगर क्षेत्र जोशीमठ से आईटीबीपी की अंतिम रिमखिम चौकी लगभग 105 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। इसके साथ ही यहां से आगे नो मेंस लैंड बाड़ाहोती एरिया है। बाड़ाहोती चमोली जिले से लगता है, जबकि चीन इस पर अपना आधिपत्य जमाने की कोशिश में लगा है।चीन की ओर से बाड़ाहोती में बार-बार घुसपैठ की जाती रही है। वहीं जब भारत-तिब्बत सीमा पर व्यापार सुगमता से होता था तो वर्ष 1959 में चीन ने उत्तराखंड से लगी सीमा पर भी हरकत शुरू कर दी थी, जिसका प्रतिफल यह हुआ कि वर्ष 1962 में भारत और चीन के बीच युद्ध हुआ।

बाड़ाहोती में दूर-दूर तक फैले हैं बुग्याल
इस युद्ध के बाद भारत-तिब्बत व्यापार पूर्ण रूप से बंद हो गया। युद्ध से पहले भारत और तिब्बत व्यापार की सबसे बड़ी मंडी बाड़ाहोती ही थी। इस स्थान को चीन अपनी सीमा बताने की हमेशा कोशिश करता रहता है। इसके साथ ही बाड़ाहोती बुग्याल करीब 10 किमी से अधिक है। वहीं बाड़ाहोती क्षेत्र में होतीगाड़ नदी बहती है, जो भारत के निचले क्षेत्र में आकर धोलीगंगा में मिल जाती है और इसका बदरीनाथ हाईवे पर विष्णुप्रयाग में अलकनंदा में विलय हो जाता है। बाड़ाहोती में दूर-दूर तक फैले बुग्याल और चट्टानी भाग हैं।

तीन सीमा पोस्ट पर हथियार ले जाने की इजाजत नहीं 
वर्ष 1962 की जंग के बाद आईटीबीपी के जवान बाड़ाहोती क्षेत्र में बंदूक की नली नीचे रखकर गश्त लगाते थे। वर्ष 2000 में तय हुआ कि भारत के सैनिक देश की तीन सीमा पोस्टों पर हथियार साथ नहीं रखेंगे। वहीं ये पोस्ट हैं-उत्तराखंड की बाड़ाहोती, हिमाचल प्रदेश की करौली और शिपकी। यहां आईटीबीपी के जवान सिविल ड्रेस में गश्त लगाते हैं|

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