ज्ञानवापी: इलाहबाद HC में मुस्लिम पक्ष की सभी 5 याचिकाएं ख़ारिज, ट्रायल कोर्ट को 6 महीने में फैसला करने का आदेश
ज्ञानवापी: इलाहबाद HC में मुस्लिम पक्ष की सभी 5 याचिकाएं ख़ारिज, ट्रायल कोर्ट को 6 महीने में फैसला करने का आदेश
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लखनऊ: ज्ञानवापी मामले में मुस्लिम पक्ष को इलाहाबाद उच्च न्यायालय से बड़ा झटका लगा है। हाई कोर्ट ने वाराणसी अदालत के समक्ष वर्तमान में चल रहे एक सिविल मुकदमे की स्वीकार्यता को चुनौती देने वाली मुस्लिम पक्ष की सभी पांच याचिकाओं को खारिज कर दिया है। मुक़दमे में ज्ञानवापी मस्जिद वाली जगह पर एक मंदिर की बहाली की मांग की गई थी, जिसका मुस्लिम पक्ष विरोध कर रहा था।

याचिकाएं अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद कमेटी (AIMC) और उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड द्वारा दायर की गई थीं। इन याचिकाओं में 8 अप्रैल, 2021 के वाराणसी कोर्ट के आदेश को भी चुनौती दी गई, जिसमें विवादित ज्ञानवापी परिसर के व्यापक सर्वेक्षण का निर्देश दिया गया था। न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल ने 8 दिसंबर को याचिकाकर्ताओं और प्रतिवादियों दोनों की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था।  वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर के पास ज्ञानवापी मस्जिद के प्रबंधन के लिए जिम्मेदार AIMC ने वाराणसी अदालत में प्रस्तुत मामले की वैधता पर सवाल उठाया। इस मामले में हिंदू याचिकाकर्ता ज्ञानवापी मस्जिद के वर्तमान स्थान पर एक मंदिर की बहाली की मांग कर रहे हैं, उनका दावा है कि मस्जिद, मंदिर की जमीन पर ही मंदिर को तोड़कर बनाई गई है।

न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल की पीठ ने मालिकाना हक विवाद के मुकदमों को चुनौती देने वाली अंजुमन इंतेज़ामिया मसाजिद कमेटी द्वारा दाखिल याचिकाओं को खारिज कर दिया। न्यायालय ने कहा कि मस्जिद परिसर में या तो मुस्लिम चरित्र या हिंदू चरित्र हो सकता है और मुद्दे तय करने के चरण में इसका निर्णय नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने आगे कहा कि, "मुकदमा देश के दो प्रमुख समुदायों को प्रभावित करता है, हम ट्रायल कोर्ट को 6 महीने में मुकदमे का शीघ्र फैसला करने का निर्देश देते हैं।"

हिंदू पक्ष का प्राथमिक तर्क यह है कि ज्ञानवापी मस्जिद, प्राचीन शिव मंदिर को तोड़कर उसी स्थान पर बनाई गई है, इसलिए उसे हिन्दुओं को सौंपा जाना चाहिए। हालाँकि, अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद कमेटी और यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड का तर्क है कि मुकदमा पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम 1991 द्वारा वर्जित है। कांग्रेस सरकार द्वारा बनाया गया यह कानून, 15 अगस्त, 1947 तक किसी धार्मिक स्थान के चरित्र को बदलने पर रोक लगाता है।

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