कोविड-19 पर बारीकी से नजर रख रहे लोगों को मानना है कि कोरोना से उबर चुके रोगियों के बॉडी में एंटीबॉडीज बहुत लंबे वक्त तक नहीं बनी रहती हैं. मुंबई के जेजे ग्रुप ऑफ चिकित्सालय के स्टाफ पर हुए सर्वे पर आधारित रिपोर्ट बताती है कि ये एंटीबॉडीज कुछ महीनों से ज्यादा शरीर में नहीं टिक रही हैं. यह तथ्य कोरोना का उपचार का तरीका तय करने, खासकर, उसकी दवा तैयार करने और जनता को लगाने की योजना बनाने में निर्णायक साबित हो सकता है.
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एंटीबॉडीज हमारे बॉडी की प्रतिरोधक शक्ति के अहम अंग होती हैं. ये इम्यूनोग्लोब्युलिंस नामके प्रोटीन के तत्व होते हैं. वहीं बॉडी में क्षति पहुंचाने वाले तत्व एंटिजन कहलाते हैं. ये वायरस, बैक्टीरिया या हानिकारक केमिकल कुछ भी हो सकते हैं.
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एंटीबॉडीज हमारे बॉडी में सर्च बटैलियन या खोजी सैनिक की तरह कार्य करती हैं. खास बात यह है कि हर अलग किस्म के एंटीजन के लिए अलग एंटीबॉडीज होती हैं. ये हमारी कोशिकाओं से निकल कर दुश्मन या एंटीजन खोजती हैं, खोजकर उनसे चिपक जाती हैं और उन्हें खत्मकर देती हैं. एक बार जब शरीर किसी रोग से लड़कर सही होता है तो उस रोग के खिलाफ शरीर में एंटीबॉडीज बन जाती हैं जो भविष्य में उसी तरह के इन्फेक्शन से शरीर की रक्षा करती हैं.इस स्टडी के प्रमुख डॉ निशांत कुमार का कहना है, ' सात सप्ताह पहले जेजे, जीटी और सेंट जॉर्ज अस्पतालों के 801 हेल्थेकेयर वर्कर्स में 28 को आरटी-पीसीआर टेस्ट में कोरोना संक्रमित पाया गया था. किन्तु जून में हुए सीरो सर्वे के दौरान इनमें से किसी के भी बॉडी में एंटीबॉडीज नहीं पाई गईं.'
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