'89 सालों में सबकुछ बदला, लेकिन पंजाब पुलिस के नियम नहीं बदले..', सुप्रीम कोर्ट ने जताई नाराज़गी, अधिकारीयों को दिया ये आदेश
'89 सालों में सबकुछ बदला, लेकिन पंजाब पुलिस के नियम नहीं बदले..', सुप्रीम कोर्ट ने जताई नाराज़गी, अधिकारीयों को दिया ये आदेश
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चंडीगढ़: सर्वोच्च न्यायालय ने पंजाब पुलिस रूल्ज को लेकर गहरी नाराजगी प्रकट की है। अदालत की तल्खी का आलम ये था कि आनन फानन में पंजाब व हरियाणा की सरकार के साथ दोनों राज्यों के प्रमुख सचिव और तमाम उन अफसरों को फऱमान जारी किया गया है जो पुलिस महकमे से संबंधित हैं। शीर्ष अदालत ने अपने आदेश में कहा है कि ये तमाम लोग मिलकर देखें कि किस प्रकार अंग्रेजों के जमाने में तैयार किए गए नियमों में संशोधन किया जा सकता है।

दरअसल, पुलिस के एक हेड कांस्टेबल को डिमोट करने के मामले में सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने पंजाब पुलिस रूल्ज को लेकर अपनी नाराजगी प्रकट की। न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानउल्लाह की पीठ ने कहा कि जब ये नियम गढ़े गए थे, तब जमाना कुछ और था। उस दौरान अंग्रेज हम पर राज करते थे। समाज का ताना बाना भी आज की तुलना में बहुत पीछे हुआ करता था। लेकिन, वक़्त बदला और समाज भी। लेकिन पंजाब पुलिस के नियम वही हैं, जो 1934 में हुआ करते थे। सर्वोच्च न्यायालय का कहना था कि ये नियम आज के बदल चुके दौर के साथ समन्वय नहीं बिठा रहे।

1934 में जब पंजाब पुलिस रूल्ज बनाए गए थे, तो उस समय IG (पुलिस महानिरीक्षक) को राज्य में सबसे बड़ा पुलिस अफसर माना जाता था। मगर, आज के समय में एडिशनल डायरेक्टर जनरल ऑफ पुलिस (ADGP) और डायरेक्ट जनरल ऑफ पुलिस (DGP) राज्यों में IG से बड़े अधिकारी होते हैं। जब ये रूल्ज़ बनाए गए थे, तब रेंज और कमिश्नरी नहीं बने थे। वक़्त के साथ ये सारे नियम अपना तालमेल नहीं बिठा पाए। बेंच का कहना था कि उन्हें ये कहते बिलकुल भी हिचक नहीं हो रही है कि जो भी नेता व अधिकारी इस मसले से जुड़े हैं, उन्होंने इस दिशा में कोई भी काम सही से नहीं किया है।

सर्वोच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि अब वक़्त आ चुका है कि दोनों राज्यों की सरकारें इस दिशा में गंभीरता से मनन करें। दोनों सूबे के प्रमुख सचिव इस दिशा में सुधार के लिए अपने मुख्यमंत्री और मातहतों के साथ विचार विमर्श करके कोई ठोस निराकरण निकाले। हमें हर हाल में आज के वक़्त के हिसाब से नियम नए सिरे से गढ़ने होंगे। 1934 में बनाए गए ये नियम किसी भी लिहाज से आज के वक़्त से तालमेल नहीं बिठा पा रहे हैं।

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