लॉकडाउन में घर के भीतर मरते हैं कि क्वारंटाइन में मरते हैं या सड़क पर खतरों को रौंदते हुए मरते हैं, सबकी मौत डाली तो मौत के खाते में ही जाती है, हमें मरते-मरते भी यह देखना चाहिए कि हमारी मौत तो एक आंकड़ा भर होती है, लेकिन वह जो सड़क पर उतर कर चला तो चलता गया जब तक घर नहीं पहुंचा.
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आपकी जानकारी के लिए बता दे कि जब तक मरा नहीं, तो उसकी मौत आंकड़ा नहीं बनी, अंकित हो गई, वह जिंदगी से दो-दो हाथ करता रहा और मौत से भी उसने सीधी टक्कर ली. साहस की इस खिड़की से कोरोना को देखिए. वही, पहले लॉकडाउन से इस चौथे लॉकडाउन तक देखिए तो एक ही चीज समान पाएंगे भय. हर तरफ, हर आदमी डरा हुआ है, क्या डर कोरोना के इलाज की दवा है? सांस बंद हो जाने का यह डर क्यों, जब पता है कि वह क्षण तो आना ही है जीवन में. क्या उससे हम जीना छोड़ देते हैं? नहीं न. हम ऐसे दुश्मन से लड़ रहे हैं जिसे जानते ही नहीं हैं, हमारे पास लड़ने का कोई हथियार भी नहीं है. अगर अपनी पुराण गाथाओं में खोजेंगे तो आपको ऐसे युद्ध कौशल की जानकारी मिलेगी जो हथियारों के बगैर लड़ी जाती थी.
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इसके अलावा वह समस्त ज्ञान को एकत्रित कर लड़ी जाने वाली लड़ाई थी, डरना नहीं, साहसी बनना. सावधानी के साथ बाहर निकलना, सारी हिदायतों का पालन करते हुए अपना काम करना, सावधानी के साथ दूसरों की मदद करना, ईमानदार व उदार बनना कोरोना से लड़ने वाले सिपाही की पहचान है. कोरोना का एक सिपाही वह है जो अस्पतालों में रात-दिन बीमारी से जूझ रहा है. वह ईमानदारी से अपना काम करता है तो सिपाही है, ईमानदारी से नहीं करता है तो यही है कि जिसके कारण हम यह लड़ाई हार जाएंगे.
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