कश्मीरी पंडितों को मिलेगा न्याय!, 31 साल बाद फिर खुला बिट्टा कराटे का केस
कश्मीरी पंडितों को मिलेगा न्याय!, 31 साल बाद फिर खुला बिट्टा कराटे का केस
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श्रीनगर की एक सत्र अदालत ने साल 1990 के दशक में सशस्त्र विद्रोह के दौरान कश्मीरी पंडितों की हत्या के आरोपी फारूक अहमद डार उर्फ ​​बिट्टा कराटे के खिलाफ मामला फिर से खोल दिया है। जी हाँ, हाल ही में मिली जानकारी के तहत कोर्ट इस मामले पर 16 अप्रैल को सुनवाई करने वाला है। आप सभी को पता ही होगा कि श्रीनगर के हब्बा कदल इलाके में 2 फरवरी, 1990 को सतीश टिक्कू की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। जी हाँ और टिक्कू के परिजनों की याचिका पर कार्रवाई करते हुए अदालत ने यह एक्शन लिया है। आप सभी को बता दें कि इन सभी के बीच सतीश टिक्कू के बहनोई प्रदीप कौल का कहना है कि मामला विचाराधीन है, इसलिए परिवार टिप्पणी नहीं करेगा।

इसके लावा उन्होंने कहा कि हमें कानून पर पूरा भरोसा है। इस मामले को लेकर मीडिया पहले ही हल्ला मचा चुका है। हम चाहते हैं कि चीजें कानून के अनुसार चले। जी दरअसल, कश्मीर फाइल्स फिल्म ने कश्मीरी पंडितों की हत्याओं और पलायन पर फिर से चर्चा शुरू कर दी है। केवल यही नहीं बल्कि प्रतिबंधित संगठन जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (JKLF) को काफी हद तक हिंसा का दोषी ठहराया गया है, जिसने एक स्वतंत्र कश्मीर की मांग की थी। अब बात करें बिट्टा कराटे की तो वह और यासीन मलिक कश्मीर में आतंकी गतिविधियों में पाकिस्तान से फंडिंग करने के आरोप में दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद हैं। आपको बता दें कि एनआईए ने साल 2017 में कराटे और फरवरी 2019 में मलिक को गिरफ्तार किया।

बिट्टा कराटे को शुरुआत में 1990 में गिरफ्तार किया गया था और उसने जेकेएलएफ नेताओं के आदेश पर 20 पंडितों को मारने की बात कैमरे पर स्वीकार की थी। हालाँकि बाद में बिट्टा कराटे ने इसका खंडन करते हुए कहा कि, 'उसने दबाव में यह बयान दिया।' साल 2006 में कराटे को सबूतों की कमी और अभियोजन पक्ष की 'अरुचि' पर रिहा कर दिया गया था। आपको बता दें कि फारूक अहमद डार का नाम बिट्टा कराटे इसलिए पड़ा क्योंकि वह मार्शल आर्ट में ट्रेंड था। कराटे पुराने शहर श्रीनगर के गुरु बाजार इलाके में बड़ा हुआ, जो 1990 के दशक में उग्रवाद का केंद्र था। उसने हाई स्कूल छोड़ दिया, जिसमें कई पंडित शिक्षक थे। इस मामले में वकील उत्सव बैंस ने कहा कि 'पीड़ित परिवार को न्याय मिलना चाहिए। 31 साल बीत चुके हैं और परिवार को नहीं पता कि मामले का क्या हुआ।'

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