हिंदी दिवस : इस तरह जन-जन की भाषा बनी हिंदी, कैसे मिला राजभाषा का दर्जा ?
हिंदी दिवस : इस तरह जन-जन की भाषा बनी हिंदी, कैसे मिला राजभाषा का दर्जा ?
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हिंदी...! यह महज एक शब्द या भाषा नहीं है, बल्कि यह एक गर्व है, जूनून है, आनंद है, जीवन है. इन सबसे बढ़कर भी यह करोड़ों हिन्दुस्तानियों की माँ है. पूरी दुनिया जहां भाषा को महज भाषा समझती है, तो वहीं हमने भाषा को भी माँ कहकर पुकारा है. इतना सम्मान भाषा को केवल हमारे देश में ही दिया जा सकता है. इस देश की भाषा को हम माँ कहते है, तो वहीं इस देश की मिट्टी को भी हमने माँ कहकर संबोधित किया है. यूं तो हमारी भाषा किसी विशेष दिवस की मोहताज नहीं है, हालांकि इसके सम्मान में 14 सितंबर का दिन हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है. वहीं 10 जनवरी को पूरी दुनिया विश्व हिंदी दिवस के रूप में मनाती है. आइए ऐसे में यह जानना बेहद जरूरी है कि हिंदी को भारत में राजभाषा का दर्जा कब और कैसे मिला था ?

14 सितंबर 1949 की तारीख़ स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है. क्योंकि यहीं वह तारीख है जब हिंदी को राजभाषा का दर्जा प्रदान किया गया था. लेकिन इसके पीछे कई सालों की मेहनत और संघर्ष रहा है. आजादी के पहले और ख़ासकर आजादी के बाद से इसके लिए पहल तेज हो चुकी थी. साल 1918 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने हिंदी साहित्य सम्मेलन में हिंदी को लेकर कहा था कि हिंदी जनमानस की भाषा है. 

कैसे हिंदी बनी राजभाषा ?

भारत की आजादी के बाद देश के लिए सबसे बड़ा सवाल भाषा को लेकर था. दिग्गज़ों के लंबे विचार-विमर्श के बाद हिंदी के साथ ही अंग्रेजी भाषा को भी नए भारत की राजभाषा का दर्जा प्रदान किया गया. संविधान सभा द्वारा एक मत से यह निर्णय लिया गया कि हिंदी ही भारत की राजभाषा होगी. 14 सितंबर 1949 को इस फैसले की साक्षी भारत समेत पूरी दुनिया बनी. 14 सितंबर 1949 को हिंदी को राजभाषा का दर्जा तो दे दिया गया, लेकिन हिंदी दिवस मनाना अभी बहुत दूर था. पहला हिंदी दिवस 14 सितंबर 1953 में मनाया गया था. तत्कालीन भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 14 सितंबर के महत्व को समझते हुए 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाए जाने का ऐलान कर दिया. जहां पहला हिंदी दिवस 14 सितंबर 1953 को मना, तब से लेकर अब तक यह सिलसिला जारी है. 

 

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