जब प्रशासन नहीं देता था भोग के पैसे तब तनख्वाह से ही जुटाते थे मुख्य पुजारी, जानिए इनकी कहानी
जब प्रशासन नहीं देता था भोग के पैसे तब तनख्वाह से ही जुटाते थे मुख्य पुजारी, जानिए इनकी कहानी
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अयोध्या: रामघाट पर रामलला के मुख्य पुजारी का गृह निवास है। अखाड़ों के जितना बड़ा दरवाजा, जहां से हाथी पर बैठा आदमी भीतर चला जाए और सिर चौखट पर न टकराए। वहीं महावीरी रंग में रंगा-पुता घर, आधी से अधिक  दीवारें भी उसी रंग में रंगी हुई है। भीतर सोफा लगा एक कमरा, साथ में सिंदूरी रंग की चादर से ढाका हुआ तखत। पीछे फिल्म के पोस्टर लगे हैं, एक का नाम रामदास, दूसरा राम का गुणगान। इतना ही नहीं ये  कहानी फिल्मी है भी। तखत पर बैठे भगवा चोला पहने, लंबी दाढ़ी और सफेद रोली-पीले चंदन का तिलक लगाए पुजारी की कहानी शुरु होती है 1 मार्च, 1992 से। पुराने पुजारी लालदास महंत को बेदखल किया था। 

बोला जाता है हरकतें पुजारी के अनुकूल बिलकुल भी नहीं थी। और, फिर रामलला को 1949 में गुंबद के भीतर स्थापित करने वाले महाराज अभिराम दास जी के शिष्य व संस्कृत विद्यालय के अध्यापक सत्येंद्र दास को रामलला का पुजारी भी बना दिया गया था। मार्च से दिसंबर तक सब ठीक ठाक चल रहा था। फिर दिनांक आई 6 दिसंबर, 1992। कारसेवकों का हुजूम था। गुंबद ढहाने की तैयारी चल रही थी। सत्येंद्र दास से बोला गया कि वह रामलला को भोग लगाकर पर्दा गिरा दें। सत्येंद्र दास बोलते हैं, दिन में पूड़ी-सब्जी-दाल-चावल की जगह उस दिन रामलला को सिर्फ फल-दूध का भोग लगा। डर था कि विवादित ढांचा गिराते वक़्त कहीं रामलला को कोई हानि न हो जाए, इसलिए सहायक पुजारियों व कुछ कारसेवकों की सहायता से रामलला को सिंहासन सहित उठाकर पास के एक नीम के पेड़ के नीचे, सुरक्षित स्थान पर ले आए। 
 
अब रामलला गुंबद के नीचे नहीं, टेंट-तिरपाल में पूजे जाने लग गए। पुजारी सत्येंद्र दास ही थे। वह याद करते हैं, कई बार जितना भोग-राग मांगा जाता था, प्रशासन उतना नहीं देता था। तब वे टीचर वाली अपनी तनख्वाह से ही भोग लाया करते थे। वह प्रशासन से हर वर्ष दो बार रामलला के कपड़े सिलवाने की गुजारिश करते थे, पर DM बस रामनवमी पर नए कपड़े भेज देते थे। 
आज रामलला हर दिन नए कपड़े पहन लेते थे। 28 वर्ष रामलला तिरपाल में रहे। सत्येंद्र दास बोलते हैं, सबसे बुरा तो तब लगता था, जब बारिश में तिरपाल फट जाता था और फटे तिरपाल को बदलवाने के लिए सुप्रीम कोर्ट से इजाजत लेनी पड़ जाती थी। पानी भीतर घुस आता था और रामलला के कपड़े तक गीले हो जाते थे। 

भयानक गर्मी में रामलला के लिए सिर्फ एक पंखा हुआ करता था, कूलर तक नहीं देते थे। और ठंड में ठिठुरते रामलला के लिए सिर्फ एक रजाई। पुजारी सत्येंद्र दास अपने सहायकों के साथ जैसे-तैसे रामलला का ध्यान भरा हुआ था। तब उनके चार सहायक होते थे। अब रामलला जब अपने नए घर में जाने वाले है, तो वहां तैनाती के लिए 20-25 नए पुजारियों की ट्रेनिंग भी चल रही है। काशी के पंडित उन्हें सिखा समझा रहे हैं। क्या पहले वाले पुजारी और नए प्रशिक्षित पुजारियों में कोई फर्क होगा, क्या पूजा बदल जाएगी, क्या रामलला को अब वह  भोग नहीं लगने वाले है।  देश के सबसे चर्चित मंदिर के प्रमुख पुजारी से सवाल समाप्त होने का नाम ही नहीं ले रहे थे। सत्येंद्र दास कहते हैं, मंदिर में सिर्फ रामलला नहीं होंगे, 16 और मंदिर होने वाले है, कई सारे भगवान भी, दर्शन करनेवाले भी अधिक होंगे, इसलिए ज्यादा पुजारियों की जरूरत होने वाली है। बस जो नहीं बदलेगा वह है रामलला का भोग, राग, सेवा, पूजा, अर्चना, आरती और रामधुन।

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