अबुधाबी: जब सऊदी अरब ने भारत की केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी को मुसलमानों के लिए बेहद महत्वपूर्ण शहर मदीना जाने की इजाजत दी, तो सोशल मीडिया पर इस्लामवादी नाराज हो गए। ईरानी क़ुबा मस्जिद के आसपास के इलाके में भी गईं थीं, जिसे इस्लाम की पहली मस्जिद माना जाता है। उल्लेखनीय है कि, मदीना इस्लाम में एक महत्वपूर्ण शहर है, क्योंकि यहीं पर पैगंबर मुहम्मद ने मक्का (622 में) छोड़ने के बाद मुस्लिम उम्माह की शुरुआत की थी और यहीं उन्हें दफनाया गया था।
BJP leader Smriti Irani seen roaming without hijab in Haram and Madina
— FREE PALESTINE ???????? ✌️ (@the_zaiddd) January 9, 2024
The Saudi govt, ignoring the orders of Allah & Prophet Muhammad (SA) allowed a non-Muslim delegation led by BJP leader Smriti Irani to visit the Mosque (Masjid-e-Nabvi) and Islamic historical sites in Medina pic.twitter.com/22lzFRuerZ
केंद्रीय महिला एवं बाल विकास और अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री स्मृति ईरानी और विदेश एवं संसदीय मामलों के राज्य मंत्री श्री वी मुरलीधरन के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल ने सोमवार को मदीना शहर का दौरा किया, जो सऊदी अरब की उनकी यात्रा के लिए एक 'ऐतिहासिक' क्षण था। इससे दो दिन पहले, भारत और सऊदी अरब के बीच एक द्विपक्षीय समझौते पर औपचारिक रूप से हस्ताक्षर किए गए थे, जिसमें नई दिल्ली को इस वर्ष के लिए निर्धारित वार्षिक हज यात्रा के लिए 175,025 तीर्थयात्रियों का कोटा निर्धारित किया गया था। यह समझौता, जिसे द्विपक्षीय हज समझौता 2024 के रूप में जाना जाता है, आधिकारिक तौर पर जेद्दा में सऊदी हज और उमरा मंत्री तौफीक बिन फौजान अल-रबिया के साथ हस्ताक्षरित किया गया था।
Oh followers of shaytan you made a grave mistake by letting filthy najs mushrik in the land of our Beloved master messenger of the Lord of Heavens and earth ﷺ. Only Allah swt will provide you justice for this treachery. We left this matter to most Just swt
— Hassan (@H_khxy) January 8, 2024
जैसा कि एक प्रेस विज्ञप्ति में बताया गया है, भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने मदीना के मरकज़िया क्षेत्र में स्थित पैगंबर की मस्जिद (अल मस्जिद अल नबवी) की परिधि का दौरा शुरू किया। इसके बाद, प्रतिनिधिमंडल ने उहुद पर्वत और क़ुबा मस्जिद सहित ऐतिहासिक स्थलों का दौरा किया। विशेष रूप से, क़ुबा मस्जिद इस्लाम की पहली मस्जिद के रूप में महत्व रखती है, जबकि उहुद पर्वत कई प्रारंभिक इस्लामी शहीदों के लिए अंतिम विश्राम स्थल के रूप में कार्य करता है।
स्मृति ईरानी ने मदीना की अपनी यात्रा के बारे में सोशल मीडिया पर शेयर किया था। उन्होंने ट्वीट किया था कि, 'आज मदीना की ऐतिहासिक यात्रा की, इस्लाम के सबसे पवित्र शहरों में से एक में श्रद्धेय पैगंबर की मस्जिद, अल मस्जिद अल नबवी, उहुद के पहाड़ और क्यूबा मस्जिद - इस्लाम की पहली मस्जिद की परिधि की यात्रा शामिल है।" हालाँकि, ईरानी की यह यात्रा सोशल मीडिया पर इस्लामी कट्टरपंथियों को पसंद नहीं आई, कई लोग पैगंबर की मस्जिद, अल मस्जिद अल नबवी के आसपास एक हिंदू महिला को बिना हिजाब के देखकर हैरान रह गए।
मदीना शरीफ में गैर मुस्लिमों का प्रवेश
— Tehsin Uddin (@TehsinUddin1) January 9, 2024
स्मृति ईरानी (तुलसी), मुरलीधरन समेत अन्य भारतीय राजनयिक...???? Namaz padne ki jagah ko bhi ayyashi ka adda bana liye kayamat kareeb he pic.twitter.com/X7PVorZrFY
मस्जिद में उनके दौरे के कुछ ही समय बाद, बदनाम इस्लामवादियों का एक झुंड उनकी एक्स टाइमलाइन पर आया, और इस बात पर नाराजगी जताई कि कैसे एक हिंदू और एक बेहिजाबी (बिना हिजाब-बुर्के वाली) महिला को इस्लाम के सबसे पवित्र तीर्थस्थलों में से एक की जाने में अनुमति दी गई थी।
स्मृति ईरानी की मदीना यात्रा पर एक मुस्लिम यूज़र ने लिखा, "आप मुशरकिन को वहां तक क्यों जाने दे रहे हैं?" गौरतलब है कि, इस्लाम में, "मुशरिक" और "मुशरकिन" शब्द उन लोगों के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं, जो शिर्क यानी ''पाप'' का अभ्यास करते हैं, जो कई देवताओं की पूजा, मूर्तिपूजा, या संक्षेप में, बहुदेववाद को मानते हैं। जबकि इस्लामी धर्मशास्त्र में, एकेश्वरवाद (तौहीद) एक मौलिक अवधारणा है, जो अल्लाह की पूर्ण एकता पर जोर देती है। मुसलमान अल्लाह के अलावा, अन्य देवताओं में विश्वास करने वालों को मूर्ति-पूजक या 'काफिर' मानते हैं और इसके लिए सख्त सजा बताई जाती है।
एक अन्य उपयोगकर्ता, एक मुस्लिम कट्टरपंथी, ने ट्वीट किया, "शैतान के अनुयायियों, तुमने स्वर्ग और धरती के खुदा के हमारे प्यारे नबी और मेसेंजर की भूमि में गंदे नफ़्स मुशरिक को अनुमति देकर एक गंभीर गलती की है।'' एक अन्य ने लिखा कि 'भारत का एक हिंदू राजनेता मदीना में क्या कर रहा है? पैगम्बर मोहम्मद ने हेजाज़ में मूर्तिपूजकों के प्रवेश को सख्त मना किया है।'
हालाँकि, ये भी गौर करने वाली बात है कि इस्लामवादी, जो मदीना में पैगंबर की मस्जिद में हिन्दू स्मृति ईरानी के जाने से नाराज हैं, वहीं जब गैर-मुस्लिम इसी तरह के उपाय करते हैं और मुसलमानों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाते हैं, तो उनपर 'इस्लामोफोबिया' का लेबल लगाया जाता हैं। जबकि स्मृति ईरानी ने पैगंबर मोहम्मद की मस्जिद में भी प्रवेश नहीं किया था और केवल उसकी परिधि का ही दौरा किया था। फिर भी, कुछ कट्टरपंथियों ने इसे पर तीखी टिप्पणियां की हैं।
Undertook a historic journey to Madinah today, one of Islam's holiest cities included a visit to the periphery of the revered Prophet's Mosque, Al Masjid Al Nabwi, the mountain of Uhud, and periphery of the Quba Mosque – the first Mosque of Islam. The significance of the visit to… pic.twitter.com/WgbUJeJTLv
— Smriti Z Irani (@smritiirani) January 8, 2024
इसी दोहरेपन का एक सबसे बड़ा उदाहरण फिलिस्तीन और अयोध्या में राम मंदिर पर उनका अलग-अलग रुख है। ये लोग इजराइल के खिलाफ तो ये कहकर लड़ने का दावा करते हैं कि, उसने फिलिस्तीनी जमीन पर कब्जा कर रखा है, लेकिन अयोध्या पर कब्ज़ा करने के सवाल पर वे यह तर्क भूल जाते हैं। वो ये मानने को ही तैयार नहीं होते कि, मुगल आक्रमणकारी ने अयोध्या में मंदिर तोड़कर उसपर मस्जिद बनाई थी, यही स्थिति काशी और मथुरा की भी है। पुरातत्वविद केके मोहम्मद, इतिहासकार हबीब खान खुलकर मानते हैं कि, काशी-मथुरा में मंदिर तोड़कर उन्ही पत्थरों से मस्जिद बनाई गई, लेकिन उनकी बातें सुनने के बाद भी कुछ लोग कब्जा छोड़ने को तैयार नहीं। हाँ, उनकी नज़र में इजराइल ने फिलिस्तीन पर कब्जा किया है, तो उसपर आतंकी हमला भी जायज है।
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