क्या है 'समान नागरिक संहिता' और मुस्लिम क्यों करते हैं इसका विरोध ?
क्या है 'समान नागरिक संहिता' और मुस्लिम क्यों करते हैं इसका विरोध ?
Share:

नई दिल्ली: इन दिनों देशभर में समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) की चर्चा चल रही है, उत्तराखंड और गुजरात और मध्य प्रदेश जैसे भाजपा शासित राज्यों में इस पर तैयारी भी शुरू हो चुकी है। आसान शब्दों में समझा जाए, तो समान नागरिक संहिता (UCC) एक ऐसा कानून है, जो देश के प्रत्येक समुदाय पर समान रूप से लागू होता है, फिर चाहे व्यक्ति किसी भी धर्म का हो, जाति का हो या मजहब का हो, सभी भारतवासियों पर एक ही कानून लागू होगा।

बता दें कि, ब्रिटिश काल में अंग्रेजों ने आपराधिक और राजस्व से संबंधित कानूनों को भारतीय दंड संहिता (IPC) 1860 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872, भारतीय अनुबंध अधिनियम 1872, विशिष्ट राहत अधिनियम 1877 आदि के जरिए सभी भारतीयों पर लागू किया था, किन्तु शादी, तलाक, उत्तराधिकार, संपत्ति आदि से संबंधित मसलों को सभी धार्मिक समूहों के लिए उनकी मान्यताओं के आधार पर छोड़ दिया था। इन्हीं सिविल कानूनों में से हिंदुओं वाले पर्सनल कानूनों को देश के प्रथम पीएम पंडित जवाहरलाल नेहरू ने खत्म कर दिया, लेकिन मुस्लिमों को इससे बाहर रखा। हिंदुओं की धार्मिक प्रथाओं के तहत जारी कानूनों को रद्द करते हुए हिंदू कोड बिल के माध्यम से हिंदू विवाह अधिनियम 1955, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956, हिंदू नाबालिग एवं अभिभावक अधिनियम 1956, हिंदू दत्तक ग्रहण और रखरखाव अधिनियम 1956 लागू कर दिया गया।

नेहरू के बाद तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी द्वारा, मुस्लिमों के लिए मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) बना दिया गया, जिसमे मुस्लिमों को उनके मजहब के आधार पर कानून बनाने की छूट दे दी गई। जिससे देश में दो कानून हो गए, एक सभी भारतीयों पर लागू होता था, केवल मुस्लिमों को छोड़कर। वहीं, मुसलमानों के लिए पर्सनल लॉ अपने मुताबिक फैसले लेता था, जो देश के कानून से अलग था। इसके बाद से ही AIMPLB को लेकर समय-समय पर विवाद होता रहा है। इसके कारण ही अदालतों में मुस्लिम आरोपितों या अभियोजकों के मामले में सुनवाई के दौरान, कुरान और इस्लामिक रीति-रिवाजों का हवाला देना शुरू हो गया। लेकिन, यह भी दिलचस्प है कि, सुनवाई के दौरान मजहबी कानूनों की दुहाई दी जाती है, लेकिन सजा भारतीय कानून के मुताबिक, सुनाई जाती है। मसलन यदि कोई मुस्लिम चोरी करे, तो इस्लामी शरिया कानून के अनुसार उसके हाथ काटने की सजा है, किन्तु, भारतीय कानून में चोरी की सजा IPC धारा 378 और 379 के तहत 3 साल जेल है। ये आपराधिक कानून है, जो सबपर लागू हैं, लेकिन शादी-विवाह, तलाक, उत्तराधिकार, संपत्ति के बंटवारे, जैसे मसले सिविल कानून के तहत आते हैं, जिसमे मुस्लिमों को विशेषाधिकार प्राप्त है। 

इन्हीं कानूनों को सभी भारतवासियों के लिए एक समान बनाए जाने की माँग उठती है, तो मुस्लिम इसका विरोध करते हैं। मुस्लिमों का कहना है कि उनका कानून, कुरान और हदीसों पर आधारित है, इसलिए वे इसी को मानेंगे और उसमें किसी किस्म के संशोधन की खिलाफत करेंगे। इन कानूनों में मुस्लिमों द्वारा चार निकाह करने की रियायत और तलाक के अलग-अलग रूप सबसे बड़ी विवाद की वजह है। इसलिए मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड भी समान नागरिक संहिता (UCC) का खुलकर विरोध करता रहा है। यहां ये भी ध्यान देने योग्य बात है कि, जब भारत का संविधान भी सभी नागरिकों में समानता की बात करता है और कई मुस्लिम नेता भी अक्सर समानता की वकालत करते नज़र आते हैं, लेकिन फिर भी वे समानता को स्वीकार क्यों नहीं करते ? एक देश में नागरिकों पर दो अलग-अलग कानूनों के मुताबिक क्यों फैसला लिया जाता हैं ? साथ ही जब देश धर्मनिरपेक्ष है, तो एक समुदाय के लोगों के लिए विशेष कानून क्यों ?

कोई भी एक से अधिक शादी क्यों करे, एक देश में दो विधान क्यों ? CM शिवराज ने किया UCC का ऐलान

2 घंटे चला आफताब का नार्को टेस्ट, पॉलीग्राफ में कही थी 'जन्नत और हूरों' की बात !

कोर्ट से जज और महिला स्टेनोग्राफर का आपत्तिजनक Video हुआ वायरल, दिल्ली HC ने लिया संज्ञान

रिलेटेड टॉपिक्स
- Sponsored Advert -
मध्य प्रदेश जनसम्पर्क न्यूज़ फीड  

हिंदी न्यूज़ -  https://mpinfo.org/RSSFeed/RSSFeed_News.xml  

इंग्लिश न्यूज़ -  https://mpinfo.org/RSSFeed/RSSFeed_EngNews.xml

फोटो -  https://mpinfo.org/RSSFeed/RSSFeed_Photo.xml

- Sponsored Advert -