कुम्ट्रान वीआरएस मामले पर 16 साल बाद पांच कर्मचारियों पर फैसला
कुम्ट्रान वीआरएस मामले पर 16 साल बाद पांच कर्मचारियों पर फैसला
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सरकारी तंत्र की लापरवाही के चलते पांच कर्मचारियों के वीआरएस पर 16 वर्ष बाद फैसला हो पाया। यह पांचों कर्मचारी कुम्ट्रान लिमिटेड में काम करते थे। कंपनी वर्ष 1999 में बंद हो गई, लेकिन वर्ष 2004 से इनकी वीआरएस फाइल पर निर्णय नहीं हो पाया। अब मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट बैठक में इनको राहत मिली है। कैबिनेट ने इतनी देरी तक मामले को लटकाये रखने पर कड़ी आपत्ति भी जताई है। उत्तर प्रदेश सरकार के समय में अल्मोड़ा में सरकारी उपक्रम कुम्ट्रान लिमिटेड स्थापित हुआ था। उत्तराखंड गठन से पहले इसे वर्ष 1999 में इसे बंद कर दिया गया।

 इसके बाद इस संस्थान में कार्यरत 11 नियमित कर्मचारी अनिर्णय के कारण किसी अन्य विभाग में समायोजित नहीं किए गए है। वर्ष 2004 में निर्णय लिया गया कि इन्हें अन्य विभागों में समायोजित किया जाए या फिर वीआरएस दे दिया जाए।इसके बाद छह कर्मचारियों ने खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग में समायोजन की सहमति जताई, जबकि पांच कर्मचारियों ने वीआरएस के लिए सहमति दी। शासकीय प्रवक्ता मदन कौशिक ने बताया कि पांचों कर्मचारी आरके शर्मा, बीके जोशी, बीएस कंवर, सुनील कुमार और मोहम्मद को लेकर यह चलता रहा कि इन्हें 1999 से वीआरएस दिया जाए कि वर्ष 2004 से।

आपकी जानकारी के लिए बता दें की कंपनी का कहना था कि जब कंपनी बंद हो गई तो पांच साल का लाभ नहीं दिया जा सकता, जबकि कर्मचारी कहते रहे कि वे कंपनी में आते थे। इस मामले की जांच करवाने में स्थिति स्पष्ट नहीं हुई। 16 वर्ष के बाद अब यह मामला कैबिनेट में आया तो मंत्रिमंडल ने निर्णय लिया कि इनकी अवैतनिक अवधि को सेवा में शामिल कर वीआरएस का लाभ दिया जाए। इससे इन्हें बड़ी राहत मिली है। कौशिक ने बताया कि मंत्रिमंडल ने इस बात पर कड़ी आपत्ति जताई कि यह निर्णय लेने में इतने वर्ष क्यों लगे। भविष्य के लिए आगाह भी किया  गया कि इस तरह के मसलों पर इतने लंबे समय तक अनिर्णय की स्थिति नहीं रहनी चाहिए।

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