प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 पर सुनवाई करेगी सुप्रीम कोर्ट, इसी पर टिका है मथुरा-काशी का मुद्दा
प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 पर सुनवाई करेगी सुप्रीम कोर्ट, इसी पर टिका है मथुरा-काशी का मुद्दा
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नई दिल्ली: सर्वोच्च न्यायालय ने शुक्रवार को पूजा स्थल अधिनियम 1991 को चुनौती देने वाले मामले में सुनवाई की है। इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह केवल पहले से पेंडिंग 2 याचिकाओं पर सुनवाई करेगा। बाकी के 6 याचिकर्ताओं को अदालत ने कहा कि वो चाहें, तो इस मामले में अपना पक्ष रखने के लिए अर्जी दे सकते हैं, किन्तु उन याचिकाओं को स्वीकार नहीं किया जाएगा। बता दें कि मार्च 2021 में शीर्ष अदालत ने वकील अश्वनी कुमार और विष्णु जैन की दो याचिकाओं पर संज्ञान लिया था।

केंद्र सरकार ने इस मामले में अभी तक अपना जवाब दाखिल नहीं किया है। वहीं, कोर्ट सितंबर में इस मामले पर सुनवाई कर सकती है। मामले को न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की बेंच के समक्ष याचिकाओं को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने सेना अधिकारी अनिल कबोत्रा (रिटायर्ड), अधिवक्ता चंद्रशेखर और रुद्र विक्रम सिंह, देवकीनंदन ठाकुर जी, स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती और भाजपा के पूर्व सांसद चिंतामणि मालवीय द्वारा दाखिल की गई याचिकाओं पर सुनवाई की।

बता दें कि कबोत्रा ​​ने वर्ष 1991 के अधिनियम की धारा 2, 3 और 4 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए कहा कि ये धाराएं धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों का उल्लंघन करती हैं। वकील अश्विनी कुमार दुबे के जरिए दाखिल की गई याचिका में कहा गया है कि, अनुचित अधिनियम बनाकर, केंद्र ने मनमाने तरीके से एक तर्कहीन पूर्वव्यापी कट-ऑफ तिथि बना दी और घोषित किया कि पूजा स्थलों का चरित्र वैसे ही बना रहेगा जैसा कि 15 अगस्त, 1947 को था और बर्बर आक्रमणकारियों और कानून तोड़ने वालों द्वारा किए गए अतिक्रमण के विरुद्ध कोई केस या कार्यवाही कोर्ट में नहीं होगी। ऐसी सभी कार्यवाही ख़त्म हो जाएगी।

क्या हैं प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 ?

बता दें कि वर्ष 1991 का यह अधिनियम किसी भी पूजा स्थल के धर्मांतरण पर रोक लगाने और 15 अगस्त, 1947 को मौजूद किसी भी पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र के रखरखाव के लिए कांग्रेस सरकार द्वारा बनाया गया एक अधिनियम है। सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले 1991 के कानून के कुछ प्रावधानों की वैधता को चुनौती देने वाली अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर केंद्र से जवाब देने के लिए कहा था, जो 15 अगस्त, 1947 को प्रचलित पूजा स्थल को दोबारा हासिल करने या उसके चरित्र में परिवर्तन की मांग करने के लिए मुकदमा दाखिल करने पर रोक लगाता है।

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