फर्जी निकला 'तहलका' का स्टिंग ऑपरेशन! 21 साल बाद तरुण तेजपाल को कोर्ट ने माना दोषी, सैन्य अधिकारी पर लगाया था गंभीर आरोप
फर्जी निकला 'तहलका' का स्टिंग ऑपरेशन! 21 साल बाद तरुण तेजपाल को कोर्ट ने माना दोषी, सैन्य अधिकारी पर लगाया था गंभीर आरोप
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नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने शुक्रवार (21 जुलाई) को ‘तहलका’ पत्रिका के मुख्य संपादक रहे तरुण तेजपाल को मानहानि के मामले में दोषी करार देते हुए उनपर 2 करोड़ रुपए का जुर्माना ठोंका है। उन्हें ये सजा, मेजर जनरल MS अहलूवालिया की याचिका पर सुनाई गई है। ये याचिका 2002 में ही दाखिल की गई थी और अब 21 साल बाद इस मामले में फैसला आया है। वहीं, ये पूरा मामला जिस खबर से जुड़ा हुआ है, उसे मार्च 2001 में 'तहलका' पत्रिका में छापा गया था।

रिपोर्ट के अनुसार, इस खबर में MS अहलूवालिया को ‘मिडलमैन’ (बिचौलिया) बताते हुए लिखा गया था कि नई रक्षा तकनीकों के आयत के लिए हुए अनुबंध में भ्रष्टाचार किया गया था। जस्टिस नीना बंसल कृष्णा ने माना कि न केवल मेजर जनरल एमएस अहलूवालिया की प्रतिष्ठा को इससे ठेस पहुँची, बल्कि देशवासियों की नजर में भी उन्हें अपमानित होना पड़ा। साथ ही गंभीर भ्रष्टाचार के आरोपों की वजह से उनके चरित्र की भी बदनामी हुई। उच्च न्यायालय ने माना कि इसके बाद किसी भी तरह के खंडन से इसकी भरपाई नहीं हो सकती है।

अदालत ने याद दिलाया कि कैसे मेजर जनरल एमएस अहलूवालिया ने झूठा आरोप लगाने के लिए पहले माफ़ी माँगने के लिए भी कहा था, लेकिन ‘तहलका’ पत्रिका ने साफ इनकार कर दिया था। दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि अब दोषी तरुण तेजपाल द्वारा माफ़ी माँगने का  कोई फायदा नहीं है, क्योंकि इतने सालों में याचिकाकर्ता बहुत कुछ भुगत चुके हैं। कोर्ट ने कहा कि एक सैन्य अधिकारी के साथ ये सब सही नहीं हुआ। इसके बाद अदालत ने तरुण तेजपाल को 2 करोड़ रुपए जुर्माने के तौर पर देने का आदेश दिया।

दिल्ली उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि किसी ईमानदार सैन्य अधिकारी की प्रतिष्ठा को धूमिल करने का इससे अधिक बेशर्म मामला नहीं हो सकता है। साथ ही ये भी माना कि उक्त सैन्य अधिकारी ने किसी भी तरह की रिश्वत को स्वीकार करने से इनकार कर दिया, जबकि उन्हें कई बार इसकी पेशकश की गई थी। एक वीडियो टेप में एक रिपोर्टर ने उन्हें 50,000 रुपए रिश्वत का ऑफर दिया था। इस खबर को कई मीडिया वालों ने उठाया था, ये टीवी पर भी चला था और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इसकी जमकर चर्चा हुई थी और देश की बदनामी हुई थी।

इसके बाद इंडियन आर्मी ने भी इस मामले पर संज्ञान लेते हुए जाँच का आदेश दिया था। इस जाँच में मेजर जनरल MS अहलूवालिया को क्लीन-चिट मिल गई थी और केवल इस बात पर आपत्ति जताई गई थी कि उन्होंने संदिग्ध चरित्र वाले लोगों से मिलना क्यों स्वीकार किया। अदालत ने कहा कि इंडियन आर्मी में मेजर जनरल के पद पर रहे याचिकाकर्ता एमएस अहलूवालिया प्रतिष्ठा वाले व्यक्ति हैं। साथ ही कहा कि ऐसे व्यक्ति पर 50,000 रुपए रिश्वत का आरोप लगने से अधिक बदनामी वाला कोई आरोप नहीं हो सकता। न्यायालय ने कहा कि आरोपी की मंशा जो भी रही हो, लेकिन जिस तरह से इस मामले की रिपोर्टिंग की गई, वो उचित नहीं था।

बता दें कि, ‘तहलका’ ने ‘Operation West End’ नामक एक रिपोर्ट में भ्रष्टाचार का इल्जाम लगाया था। आरोप लगाया गया था कि मेजर जनरल ने अंडरकवर जर्नलिस्ट से 10 लाख रुपए और ब्लू लेबल व्हिस्की की एक बोतल की डिमांड की थी। इस मामले पर फैसला सुनाते हुए अदालत ने कहा कि खोया धन पाया जा सकता है, मगर खोई प्रतिष्ठा नहीं। अब ये स्टिंग फर्जी साबित हो चुका है। बता दें कि इस मामले का बड़ा सियासी प्रभाव भी पड़ा था। तत्कालीन भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे बंगारू लक्ष्मण को भी अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था। उस समय केंद्र में अटल जी के नेतृत्व में भाजपा की ही सरकार थी। 2012 में एक स्पेशल CBI कोर्ट ने उन्हें 4 वर्ष जेल की सज़ा सुनाई थी। 2014 में उनका निधन भी हो गया था। इस स्टिंग के ही अन्य हिस्सों के चलते ये मामले सामने आए थे। ‘तहलका’ का दावा था कि मेजर जनरल एमएस अहलूवालिया ने 50,000 रुपए पेशगी के रूप में इस स्टिंग में लिए थे।

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