हत्या के दोषी को क्या सजा मिलनी चाहिए ? सुप्रीम कोर्ट ने दिया दो टूक जवाब
हत्या के दोषी को क्या सजा मिलनी चाहिए ? सुप्रीम कोर्ट ने दिया दो टूक जवाब
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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक सुनवाई के दौरान कहा कि, अगर कोई आरोपी IPC की धारा 302 के तहत हत्या के अपराध के लिए दोषी ठहराया जाता है। तो उसे उम्रकैद से कम की सजा नहीं दी जा सकती। जस्टिस कृष्ण मुरारी और जस्टिस एमआर शाह की बेंच ने कहा कि भारतीय दंड सहिंता की धारा 302 के तहत किसी दोषी को सजा होती है तो वह मौत या फिर उम्र कैद होगी। इस संगीन अपराध की सजा कम से कम आजीवन कारावास होनी चाहिए।

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर यह फैसला सुनाया। मप्र हाई कोर्ट ने एक मामले में आरोपी की उम्र कैद की सज़ा को कम करने का आदेश दिया था। इस आरोपी ने IPC की धारा 147, 148, 323 और 302/34 के तहत अपराध किए थे, लेकिन MP हाई कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए अपराधी की सजा की अवधि को घटाकर दोषी द्वारा जेल में गुजारे गए समय के बराबर कर दिया। जो सात साल और 10 महीना है। जिसके बाद राज्य सरकार ने इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर चुनौती दी थी।

जस्टिस कृष्ण मुरारी और जस्टिस एमआर शाह की बेंच ने फैसले के दौरान कहा, ‘‘राज्य की ओर से पेश वकील की दलीलें सुनने के बाद और सजा कम किए जाने पर संज्ञान लेते हुए कहा कि हाईकोर्ट ने अपने फैसले में आरोपी को IPC की धारा 302 के तहत दोषी ठहराया है लेकिन उसकी सजा को घटा कर सुनवाई के दौरान जेल में रहने की अवधि 7 साल 10 महीने कर दी है। जो कि अस्वीकार्य है’’

बेंच ने इस मामले में सुनवाई करते हुए अदालत द्वारा दी गई आजीवन कारावास की सजा को बहाल कर दिया और अभियुक्त को संबंधित अदालत या जेल प्राधिकरण के सामने सरेंडर करने के लिए 8 सप्ताह का समय दिया। सुनवाई के दौरान मध्य प्रदेश राज्य सरकार की तरफ से पेश डिप्टी एडवोकेट जनरल अंकिता चौधरी ने तर्क देते हुए कहा कि किसी भी आरोपी को जब एक बार IPC की धारा 302 के तहत दंडनीय अपराध के लिए दोषी ठहराया जाता है तो उसकी न्यूनतम सजा आजीवन कारावास होनी चाहिए। इससे कम की कोई भी सजा धारा 302 के विपरीत होगी।

उन्होंने सुनवाई के दौरान पीठ को बताया कि सजा कम किए गए आरोपी को धारा 302 के तहत दोषी पाया गया था, लेकिन हाईकोर्ट के फैसले तक उसकी सजा केवल सात साल, 10 महीने की हुई थी। वहीं सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि धारा 302 के मामले में आरोपी की सजा को कम करना स्वीकार्य करने योग्य नहीं है।

धारा 302 पर बात करते हुए एटवोकेट सुनील चौहान कहते हैं कि आप हमेशा सुनते आए होंगे कि IPC की धारा 302 के तहत दोषी को आजीवन कारावास की सजा दी गई। लेकिन धारा 302 क्या है इसमें कितनी सजा का प्रावधान है। इसके बारे में कई लोगों को जानकारी नहीं है।

आइये जानते हैं कि क्या है भारतीय दंड सहिंता की धारा 302

भारतीय दंड संहिता यानी (India Penal code) हमारे देश के नागरिकों द्वारा किए गए कुछ अपराधों की परिभाषा बताती है। इसके साथ ही IPC के अंदर ये भी बताया गया है कि किस अपराध के लिए कितनी सजा होगी। IPc भारत की सेना (नौसेना, जल, थल) पर लागू नहीं होती है। IPC पहले जम्मू एवं कश्मीर में भी लागू नहीं होती थी। लेकिन धारा 370 के हटने के बाद वहां भी PC लागू हो गई।

1860 में लागू हुई थी IPC

भारतीय दण्ड संहिता ब्रिटिश काल में सन् 1860 में लागू हुई। इसके बाद इसमे समय-समय पर संशोधन होते रहे (विशेषकर भारत के स्वतन्त्र होने के बाद)। पाकिस्तान और बांग्लादेश ने भी भारतीय दण्ड संहिता को ही लागू किया।

आपने सुना होगा कि कई केस में आजीवन कारावास की सजा मिलने वाले व्यक्ति को 14 साल या 20 साल की सजा काटने के बाद जेल से रिहा कर दिया जाता है। इसके पीछे की वजह यह है कि कई मामलों में राज्य सरकारें को यह अधिकार है कि वह दोषी की सजा को कम कर सकती है। भारतीय दंड संहिता की धारा 55 और 57 में सरकारों को सजा को कम करने का अधिकार प्रदान किया गया है।

धारा 55- राज्य सरकार हर उस मामले में जिसमें आजीवन कारावास का दण्डादेश दिया गया हो, अपराधी की सम्मति के बिना भी समुचित सरकार उस दण्ड  को ऐसी अवधि के लिए, जो चौदह वर्ष से अधिक न हो, दोनों में से किसी भी भांति के कारावास में बदल सकती है।

धारा 57- IPC की धारा 57 के अनुसार 'दण्डावधियों की भिन्नों की गणना करने में, आजीवन कारावास को बीस वर्ष के कारावास (Imprisonment) के तुल्य गिना जाएगा। IPC की धारा 57, जो कि आजीवन कारावास की सजा के समय के संबंध में है। धारा 57 बताती है कि,जब भी दंडों की गणना की जाएगी तो आजीवन कारावास के सालों को गिनने के लिए इसे बीस साल के कारावास के बराबर गिना जाएगा। लेकिन इसका ये मतलब बिलकुल नहीं है कि आजीवन कारावास 20 साल का होता है। यह समय इसलिए बनाया गया है कि अगर गणना करनी हो तो, आजीवन कारावास को 20 साल के बराबर माना जाता है। गणना की आवश्यकता उस समय होती है, जब किसी व्यक्ति को दोहरी सजा सुनाई गई हो या किसी को जुर्माना न भरने की स्थिति में ज्यादा समय के लिए कारावास में रखा जाता है।

दोहरी उम्रकैद की सजा का मतलब

साल 2021 के अक्टूबर में केरल की कोल्लम सेशन कोर्ट ने एक दोषी को सांप से कटवाकर हत्या करने के आरोप में दोहरी उम्रकैद की सजा सुनाई थी, जिसके बाद कई लोगों के मन में आजीवन कारावास को लेकर सवाल उठने लगे कि क्या आजीवन कारावास 14 साल या 20 साल का होता है, लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है। जब किसी भी अपराधी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई जाती है तो इसका मतलब है कि आरोपी अपनी अंतिम सांस तक जेल की चारदीवारी के अंदर ही सजा काटेगा।

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