'क्या आपके मन मुताबिक राम मंदिर का निर्माण हो रहा है?', सवाल पर रामलला के मुख्य पुजारी ने दिया ये जवाब
'क्या आपके मन मुताबिक राम मंदिर का निर्माण हो रहा है?', सवाल पर रामलला के मुख्य पुजारी ने दिया ये जवाब
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लखनऊ: अयोध्या के नवनिर्मित भव्य मंदिर में 22 जनवरी 2024 को रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होने जा रही है। उससे पहले मीडिया से चर्चा करते हुए प्रभु राम के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास ने श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन से जुड़ी अपनी यादों को साझा किया। सत्येंद्र दास ने कहा कि इस घड़ी का सालों से इंतजार था। प्राण प्रतिष्ठा का दृश्य अपने आप में अद्भुत और विलक्षण होगा। जिस दिन प्राण प्रतिष्ठा होगी तथा रामलला अपने भव्य और दिव्य मंदिर में विराजेंगे वह एक युग के समान है। उन्होंने कहा कि उस वक़्त बहुत कष्ट होता था जब बरसात के छींटे भगवान के आसन तक आते थे। प्रभु को सप्ताह में 7 वस्त्र पहनाए जाते थे।

वही एक बार रामनवमी को जो वस्त्र बनते थे, वही वर्षभर चलते थे। जबकि उन्हें रोज नए वस्त्र पहनाए जाने चाहिए। उनके भोग, प्रसाद और अन्य खर्चों के लिए केवल 20 हजार रुपए सालाना मिलते थे। हम जितना मांगते थे उतना नहीं मिलता था। 28 सालो के चलते आखिरी में 30 हजार रुपए सालाना मिलता था। इत्र, चंदन, वस्त्र इत्यादि पर इन पैसों का खर्च होता था। तिरपाल फट जाने पर भी इसे बदलने के लिए कोर्ट जाना पड़ता था। मगर रामलला की कृपा से यह दौर भी बीत गया'। वही यह पूछे जाने पर कि क्या आपके मन मुताबिक मंदिर का निर्माण हो रहा है? आचार्य सत्येंद्र दास ने कहा, 'बहुत अच्छा निर्माण हो रहा है। जैसा सोचा था उससे भी भव्य। हम ईंट-पत्थर से बने भवन देखते थे। मगर राम मंदिर में सिर्फ कीमती पत्थरों का उपयोग हुआ है'। 

राम लला की प्रतिमा कैसी होगी इस बारे में उन्होंने कहा, 'प्रभु की मूर्ति बालक रूप वाली होगी। यह रूप विलक्षण होता है, जिसे देखने के लिए स्वयं भगवान शंकर आए थे। बालक रूप में प्रभु राम का दर्शन अद्भुत होता है'। राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के पश्चात् रामलला की पूजा की पद्धति बदलने की बात पर आचार्य सत्येंद्र दास ने कहा, 'ट्रस्ट पुजारियों की नियुक्ति कर रहा है। क्या परिवर्तन होगा इस बारे में पता नहीं है। मगर देशभर में राम, सीता और लक्ष्मण के जितने मंदिर हैं वहां रामानंदी परंपरा के मुताबिक पूजा होती है और हम भी सालों से इसी परंपरा से रामलला की पूजा-अर्चना करते आ रहे हैं। इस पद्धति में 16 मंत्र होते हैं और वैष्णव परंपरा में इन्हीं मंत्रों से पूजा होती रही है'। 

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