बेटे का कलेजा निकालकर मुंह में ठूंस दिया मुग़लों ने, बंदा बहादुर ने फिर भी नहीं कबूला इस्लाम !
बेटे का कलेजा निकालकर मुंह में ठूंस दिया मुग़लों ने, बंदा बहादुर ने फिर भी नहीं कबूला इस्लाम !
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नई दिल्ली: बंदा बहादुर, खालसा साम्राज्य के पहले मुख्य नेता थे और उन्होंने सिख समुदाय को संगठित किया था। गुरु गोबिंद सिंह के सच्चे सिपाही बंदा बहादुर ने धार्मिक और सामाजिक उद्देश्यों के साथ सिखों और हिन्दुओं के अधिकारों की रक्षा की और उन्हें मुग़ल साम्राज्य के विरुद्ध संगठित हुए रहने के लिए प्रेरित किया। बाबा बंदा सिंह बहादुर शुरुआत में एक हिंदू राजपूत थे। उनका असल नाम लक्ष्मण देव था। जिन्हें नांदेड में सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह ने उन्हें देखा और उन्हें हिन्दुओं की रक्षा के लिए अमृत चखाकर सिख बनाया और उनका नाम बंदा सिंह रखा।हालांकि, बंदा बहादुर की खालसा सेना को लड़ाई में कठोरता और साहस के कारण मशहूरी मिली, लेकिन मुग़ल साम्राज्य ने इसे गहरी चुनौती माना। उस समय दिल्ली के तख़्त पर मुगल सल्तनत का सबसे क्रूर बादशाह औरंगज़ेब बैठा हुआ था 

मुग़ल साम्राज्य के आदेश पर,  1716 ईस्वी में बंदा बहादुर की हत्या कर दी गई। उनकी हत्या उनके संघर्ष के परिणामस्वरूप हुई और मुग़ल साम्राज्य ने सिखों के आंदोलन को दमन किया। बंदा बहादुर की हत्या की गई उनकी दृढ़ता और वीरता को दर्शाती है और इसे एक अन्यायपूर्ण क्रूरता के उदाहरण के रूप में भी देखा जा सकता है। बंदा बहादुर की हत्या के पीछे कई कारण थे। एक मुख्य कारण था उनकी लड़ाई और संगठन क्षमता की वजह से मुग़ल साम्राज्य को बंदा बहादुर को रोकने में असफलता का सामना करना पड़ा। बंदा बहादुर ने सिख और हिन्दू समुदाय को एक एकीकृत और निर्णायक शक्ति बनाने के लिए काफी मेहनत की थी और उनकी सेना मुग़ल सेना के खिलाफ बहुत सफलतापूर्वक युद्ध लड़ रही थी।

दूसरा कारण था बंदा बहादुर के आंदोलन की विरासत और सिखों के स्वाभिमान को चुनौती देना। उन्होंने खालसा और हिन्दू समाज के लोगों में गर्व, स्वतंत्रता और आत्मविश्वास का भाव जगाया था। इससे मुग़ल साम्राज्य को गैर-मुस्लिमों की आजादी के बारे में चिंता हो गई और उन्हें बंदा बहादुर को नष्ट करने की जरूरत महसूस हुई। तीसरा कारण था धार्मिक और आध्यात्मिक अभियान के माध्यम से सिखों और हिन्दुओं की मजबूती को कम करने की कोशिश। मुग़ल साम्राज्य को आंदोलन को दमन करने के लिए समुदाय के मुख्य नेता के विरुद्ध साजिश रचने की जरूरत महसूस हुई। जब मुगलों ने बंदा बहादुर और अन्य सिख साथियों को गिरफ्तार किया, तो दिल्ली लाकर हर किसी से एक ही सवाल पुछा गया, इस्लाम कबूल करते हो या नहीं, हर सिर ना में हिलता गया और धड़ से अलग होता गया। 7 दिनों तक चले इस क़त्ल-ए-आम से कोतवाल सरबराह खां जब थक गया, तो उसने सजा कुछ समय के लिए रोक दी।  उसने फ़र्रुख़सियर से कहा कि जरा रुक जाया जाए। कुछ दिन जुल्म सहेंगे। तो होश आएगा और इस्लाम क़बूल कर लेंगे। 

इसके बाद 3 माह तक बंदा बहादुर को काल कोठरी में कैद रखा गया। सवाल का जवाब तब भी ना ही था। अंत में 9 जून 1716 को बंदा बहादुर की भी मौत का फरमान जारी कर दिया गया। सजा से पहले एक अंतिम उपाय किया गया। बंदा को शाही कपड़े पहना कर कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी की दरगाह पर ले ज़ाया गया और दरगाह के चारों तरफ घुमाया गया। वहां पर कोतवाल ने फिर कहा, 'आख़िरी बार पूछ रहा हूँ मौत या इस्लाम?' बंदा अपने जवाब पर अडिग थे। तब कोतवाल बंदा बहादुर के चार साल के बेटे अजय सिंह को सामने ले आया। बेटे की गर्दन पर तलवार रखकर बंदा बहादुर से फिर वही सवाल पुछा। बंदा की गरदन इनकार में पूरी घूमी भी नहीं कि जल्लाद ने अजय का सर धार से अलग कर दिया। इसके बाद उसने शव से बच्चे का कलेजा निकालकर बंदा बहादुर के मुंह में ठूंस दिया गया। बंदा तब भी डिगे नहीं। उन्होंने इस्लाम की जगह मौत चुनी। इसके बाद जल्लाद ने एक ख़ंजर से बंदा बहादुर की दोनों आंखें फोड़ दीं। गर्म सलाख़ों से उनके शरीर को दागा गया। मौत से पहले जितनी भी हो सकती थी, वह सभी यातना दी गई। शरीर से मांस तक नोच लिया  गया। और अंत में शरीर के टुकड़े काटकर अलग-अलग कर दिए गए। इसके परिणामस्वरूप, बंदा बहादुर की हत्या पूरे हिन्दू और सिख समुदाय के लिए एक महत्वपूर्ण और दुखद घटना बनी, जो उनके संघर्ष और बलिदान की याद में आज भी याद की जाती है।

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