नई दिल्ली: पीएम नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सरकार ने जूट वर्ष 2021-22 (1 जुलाई, 2021 से 30 जून, 2022) के लिए पैकेजिंग में जूट के अनिवार्य इस्तेमाल हेतु आरक्षण नियमों को स्वीकृति दे दी है. जूट वर्ष 2021-22 के लिए अनुमोदित आवश्यक पैकेज नियमों के तहत खाद्यान्न की 100 फीसद और चीनी की 20 फीसद पैकिंग, जूट बैग में करने को अनिवार्य कर दिया गया है. जूट उद्योग का सामान्य रूप से भारत की राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में और ख़ास तौर पर पूर्वी क्षेत्र यानी पश्चिम बंगाल, बिहार, ओडिशा, असम, त्रिपुरा, मेघालय, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में अहम योगदान है. यह पूर्वी क्षेत्र, विशेष रूप से पश्चिम बंगाल में एक मुख्य उद्योग है.
बता दें कि जूट क्षेत्र, 3.7 लाख मजदूरों और 40 लाख किसानों को प्रत्यक्ष रोजगार प्रदान करता है. इस से भारत में कच्चे जूट और जूट पैकेजिंग सामग्री के घरेलू उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा, जिससे देश को आत्मनिर्भर बनाने में मदद मिलेगी. सरकार हर साल 8,000 करोड़ रुपये के जूट के बोरे खरीदती है और इस तरह जूट के किसानों व मजदूरों की उपज के लिए बाजार-गारंटी भी सुनिश्चित करती है. JPM अधिनियम के तहत आरक्षण नियम जूट क्षेत्र में 3.7 लाख मजदूरों और 40 लाख किसानों को लाभ होता हैं. JPM अधिनियम, 1987 जूट किसानों, कामगारों और जूट सामान के उत्पादन में लगे लोगों के हितों की रक्षा करता है.
बता दें कि जूट उद्योग के कुल उत्पादन का 75 फीसद जूट सेकिंग बैग हैं, जिसमें से 90 फीसद की आपूर्ति भारतीय खाद्य निगम (FCI) और राज्य खरीद एजेंसियों (SPA) को की जाती है और शेष बचे उत्पादन का निर्यात/सीधी बिक्री की जाती है. भारत सरकार खाद्यान्नों की पैकिंग के लिए प्रति वर्ष तक़रीबन 8,000 करोड़ रुपये मूल्य के जूट सेकिंग बैग की खरीदारी करती है, जिससे जूट किसानों और कामगारों को उनकी उपज के लिए गारंटीशुदा बाजार सुनिश्चित होता है.
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