'लिव-इन और समलैंगिक जोड़ों को सरोगेसी एक्ट से अलग रखा जाए..', सुप्रीम कोर्ट में केंद्र का हलफनामा
'लिव-इन और समलैंगिक जोड़ों को सरोगेसी एक्ट से अलग रखा जाए..', सुप्रीम कोर्ट में केंद्र का हलफनामा
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नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने आज मंगलवार (9 मई) को सर्वोच्च न्यायालय में दाखिल किए गए अपने जवाब में लिव इन रिलेशनशिप में रह रहे जोड़ों के साथ साथ समलैंगिक जोड़ों को भी सरोगेसी एक्ट के दायरे में लाने का विरोध किया है. बता दें कि, अब तक 2 ही परिस्थितियों में सिंगल महिला किराए की कोख (Surrogacy) रख सकती हैं. 

शीर्ष अदालत में दाखिल किए गए अपने जवाब में सरकार की तरफ से कहा गया कि ऐसे समलैंगिक जोड़ों को सरोगेसी एक्ट में दायरे में लाना उचित नहीं होगा, क्योंकि इससे इस एक्ट के गलत इस्तेमाल को बढ़ावा मिलेगा. साथ ही इस प्रकार के मामलों में आगे भी समस्या बनी रहेगी, क्योंकि किराए की कोख से पैदा हुए बच्चे के उज्ज्वल भविष्य को लेकर हमेशा आशंका की स्थिति बनी रहेगी. बता दें कि, इस मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी और न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी की पीठ कर रही है.

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दिए अपने जवाब में अकेली और अविवाहित महिला को सरोगेसी एक्ट के लाभ से बाहर रखने के अपने फैसले को जायज ठहराया है. अभी केवल 2 ही स्थितियों में सिंगल महिला को किराए की कोख की अनुमति है- पहला, या तो महिला विधवा हो और समाज के भी से खुद बच्चा न पैदा करना चाहती हो या फिर महिला तलाकशुदा हो और वो फिर से शादी करने के लिए तैयार न हो, मगर बच्चा पालने की इच्छा रखती हो. हालांकि इन दोनों हो स्थितियों में महिला की आयु 35 साल से अधिक होने की शर्त है.

केंद्र सरकार और ICMR ने ये शपथपत्र सरोगेसी एक्ट के कई प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिकाओं के जवाब में सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया है. अपने जवाब के समर्थन में संसदीय कमेटी की रिपोर्ट का हवाला देते हुए केंद्र ने कहा है कि सरोगेसी एक्ट केवल कानूनी मान्यता प्राप्त विवाहित पुरुष या स्त्री को ही अभिभावक के तौर पर मान्यता देता है. केंद्र का कहना है कि चूंकि लिव इन जोड़े या समलैंगिक जोड़े किसी कानून से बंधे नहीं होते हैं, इसलिए इन मामलों में सरोगेसी से जन्मे बच्चे का भविष्य हमेशा सवालों के दायरे में रहेगा.

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