आईआईटी मद्रास ने तैयार किया ऐसा ड्रोन, जो घुसपैठिए ड्रोन को आसमान में ही कर देगा नष्ट
आईआईटी मद्रास ने तैयार किया ऐसा ड्रोन, जो घुसपैठिए ड्रोन को आसमान में ही कर देगा नष्ट
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चेन्नई: आईआईटी मद्रास के अनुसंधानकर्ताओं ने आर्टीफिशियल इंटेलिजेंस से लैस ऐसा ड्रोन को बनाया है, जो अवैध और घुसपैठिए ड्रोन को आसमान में ही नष्ट कर सकता है.अनुसंधानकर्ताओं का यह भी दावा है कि यह ड्रोन ना केवल सुरक्षा एजेंसियों और कानून व्यवस्था को कायम रखने वाली एजेंसियों का बड़ा मददगार साबित हो सकता है. इसी के साथ अहम हवाई क्षेत्रों की निगरानी में सुरक्षा बलों की मदद भी कर सकता है. यह महत्वपूर्ण नागरिक और सैन्य प्रतिष्ठानों की निगरानी में भी बेहद कारगर साबित होगा. आईआईटी मद्रास के अनुसार उनके बनाए ड्रोन के माध्यम से घुसपैठिए और अवैध ड्रोन को मार गिराया जा सकता है. वहीं, इसके साथ ही घुसपैठिये ड्रोन की जीपीएस नैविगेशन प्रणाली को हैक करके उसकी उड़ान के रास्ते को बदला जा सकता है और ऐसे ड्रोन को सुरक्षित जमीन पर बलपूर्वक कुछ ही क्षणों में लैंड भी कराया जा सकता है.

वहीं,  इस ड्रोन सिस्टम को आईआईटी मद्रास के बीटेक के अंतिम वर्ष के छात्र वासु गुप्ता और एयरोस्पेस विभाग में आरएएफटी लैब में बतौर प्रोजेक्ट एसोसिएट काम कर रहे रिषभ वशिष्ट ने बनाया है. ड्रोन का मौजूदा प्रोटोटाइप किसी भी वस्तु को देखकर पहचानने और उसे नियंत्रित कर गिराने में सक्षम है. वहीं, यह ड्रोन इंटरनेट के माध्यम से उड़ान भरता है और बिना किसी हलचल के लैंड करता है. अनुसंधानकर्ताओं का मकसद सुरक्षा एजेंसियों की जरूरतों के हिसाब से इसकी व्यापक रेंज तैयार करना है. आपको यह जानकारी बता दे कि केंद्रीय सुरक्षा एजेंसियों के अनुसार अवैध और घुसपैठिये ड्रोन महत्वपूर्ण संस्थानों और अन्य संवेदनशील स्थानों के लिए बड़ा खतरा हैं. भारत में एक अनुमान के मुताबिक करीब छह लाख से ज्यादा अवैध या गलत कामों में उपयोग किए जाने वाले ड्रोन हैं. इन अवैध ड्रोन से निपटने के लिए सुरक्षा एजेंसियां आधुनिक एंटी ड्रोन हथियारों जैसे-'स्काई फेंस' और 'ड्रोन गन' को खरीदने पर विचार कर रही हैं

एयरोस्पेस इंजीनियरिंग विभाग के एसिस्टेंट प्रोफेसर रंजीत मोहन ने यह जानकारी दी है कि इस ड्रोन के जीपीएस सेंसर लक्षित ड्रोन पर निशाना साधकर फर्जी रेडियो ट्रांसमिशन को बंद कर चुके हैं. वहीं, इस रेडियो स्टेशन के प्रसारण की क्षमता मौजूदा सैटेलाइट ट्रांसमिशन की पावर से कहीं अधिक थी. इसे ट्रैक करते हुए ड्रोन फर्जी जीपीएस पैकेट बना देता है जो गणितीय मॉडल पर आधारित हैं. वह ऐसा रिसीवर एंड पर समय में आने वाले अंतर के जरिए करता है.

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