हिजाब बैन पर आज फिर हाई कोर्ट में हुई सुनवाई, याचिकाकर्ता के वकील देवदत्त कामत ने दिए ये तर्क
हिजाब बैन पर आज फिर हाई कोर्ट में हुई सुनवाई, याचिकाकर्ता के वकील देवदत्त कामत ने दिए ये तर्क
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बैंगलोर: कर्नाटक से शुरू हुए हिजाब विवाद को लेकर उच्च न्यायालय में याचिकाएं दाखिल की गई है. इन याचिकाओं में शिक्षण संस्थानों में हिजाब पर बैन को चुनौती दी गई है. कर्नाटक उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश रितुराज अवस्थी, न्यायमूर्ति कृष्णा एस दीक्षित और न्यायमूर्ति जेएम खाजी की 3 जजों की पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है. 

सुनवाई के दौरान अदालत ने मीडिया से खास अपील करते हुए कहा है कि मीडिया से हमारा आग्रह है कि वह अधिक जिम्मेदार बनें. हम मीडिया के विरुद्ध नहीं हैं, हमारा एकमात्र आग्रह जिम्मेदार होना है. वकील सुभाष झा का कहना है कि उनका आग्रह है कि तमाम पक्षों को अपने सबमिशन को नियम पुस्तिका में सीमित करना चाहिए और मामले को सांप्रदायिक रंग नहीं देना चाहिए. वहीं, वरिष्ठ अधिवक्ता देवदत्त कामत ने याचिकाकर्ता की दलीलों की शुरुआत की. उन्होंने कहा कि सरकार का आदेश कानून की आवश्यकताओं को पूरा किए बगैर प्रयोग किया गया है. ये अनुच्छेद 25 के मूल में हैं और ये कानूनी रूप से टिकने वाला नहीं है.

वहीं, अदालत ने याचिकाकर्ता कि तरफ से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता देवदत्त कामत से सवाल किया कि, अनुच्छेद 25 (धार्मिक स्वतंत्रता) के तहत नागरिकों को दिया गया अधिकार क्या पूर्ण अधिकार है. उसकी कोई सीमा है या नहीं. अदालत ने कामत से ‘पब्लिक ऑर्डर’ क्या है, इस पर प्रकाश डालने के लिए कहा. वहीं, देवदत्त कामत ने अदालत बताया कि पब्लिक ऑर्डर क्या है. हालांकि, अदालत ने कामत से कहा कि वह सीधे इस मुद्दे पर आएं कि ये सार्वजनिक व्यवस्था का प्रश्न है या नहीं? न्यायालय ने कहा कि हम केवल यह समझने का प्रयास कर रहे हैं कि क्या सरकार ने अपने सरकारी आदेश द्वारा अनुच्छेद 25 को निरस्त कर दिया है?

सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील कामत ने कर्नाटक उच्च न्यायालय को बताया कि सरकारी आदेश का कहना है कि हेडस्कार्फ पहनना अनुच्छेद 25 द्वारा संरक्षित नहीं है. सरकारी आदेश कहता है कि कॉलेज विकास समिति पर यह निर्धारित करने के लिए छोड़ देना चाहिए कि यह ड्रेस का हिस्सा होगा या नहीं. उन्होंने आगे कहा कि कॉलेज विकास समिति को यह फैसला लेने की इजाजत देना कि छात्रों को हेडस्कार्फ पहनने की मंजूरी दी जाए या नहीं, पूरी तरह से अवैध है. वकील ने कहा कि क्या एक कॉलेज विकास समिति जिसमें एक MLA और कुछ अधीनस्थ शामिल हैं, मौलिक स्वतंत्रता का प्रयोग करने का फैसला ले सकते हैं? एक वैधानिक प्राधिकरण को हमारे मौलिक अधिकारों का संरक्षक कैसे बनाया जा सकता है? 

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