प्रकृति के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का महान लोकपर्व - छठ
प्रकृति के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का महान लोकपर्व - छठ
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छठ पूजा में सूर्य की पूजा की जाती है, और यह पर्व पूरी तरह से सूर्य देव की उपासना पर आधारित है. सूर्य पूरे विश्व के लिए शक्ति और ऊर्जा का स्त्रोत माना जाता है. ऐसा कहा जाता है कि छठ पूजा की परंपरा मध्यकाल से ज्यादा प्रचलन में आ गई है. माना जाता है कि छठ माता सूर्य देव की बहन है और उन्हें खुश करने के लिए सूर्य की आराधना करना काफी जरूरी होता है.

मानव जाति भय से त्राण दिलाने वालो की पूजा किया करती है. सूर्य की पूजा उपासना को उसी रूप में प्रारंभ माना जाता है. कल्पना कीजिये की जब आदि मानव जंगलो और गुफाओं में रहते थे. तब रात में विषैले जन्तुओं और खूंखार जानवरो से रात किनती भयावह होती होगी. वस्त्रविहीन मानव ठंढ रूपी राक्षस से कितना पीड़ित रहा होगा. ऐसे में सूर्योदय किस प्रकार मानव जाती को भय मुक्त कर, ठण्ड से मुक्त कर सुख पहुंचता होगा. फिर तो मानव जाती सूर्य के उदय होने की प्रतिक्षा करता होगा और सूर्योदय होने पर प्रसन्न हो जाता होगा. 

यहीं प्रसन्नता आज सूर्य उपासना के रूप में स्थापित हो गया है. विज्ञान सूर्य को एक ग्रह मानता है लेकिन विज्ञान अध्यात्म तक नहीं पहुंच सकता है. जहां पहुंचते- पहुंचते विज्ञान निरुत्तर हो जाता है, वहीं से अध्यात्म की शुरुआत होती है. हिन्दू कोई जाती नहीं कोई धर्म नहीं ये तो एक कृतज्ञ और सुसंस्कृत मानव की जीवन शैली है जो प्रकृत के साथ सह अस्तित्तव कायम करते हुए प्राप्त हुए फल और सहयोग के लिए आभार व्यक्त करना जनता है. 

जिसने कुछ भी दिया तो वह देवता हो गया. देवता शब्द का मतलब होता है देन-दाता. सूर्य भी हमें बहुत कुछ देता है इसलिए ये भी देवता है. सूर्य को आदि काल से  ही देने वाले के रूप में जाना गया है. इसलिए इसे आदि-देव भी कहा जाता है. छठ पूजा में इसलिए सूर्य की ही उपासना की जाती है. इतना ही नहीं  हम आपको बता दें कि विज्ञान ने भी सूर्य को ऊर्जा का स्त्रोत माना है. 

पूर्वोत्तर भारत में कार्तिक एवं चैत्र मास की शुक्ल पक्ष षष्ठी को आकाश में सूर्य की स्थिति ऐसी रहती है की उस समय सूर्य से प्रचुर मात्रा में अल्ट्रावाइलेट किरणें निकलती है जो चर्म रोगों के साथ अन्य प्रकार की बीमारियों में चमत्कारी रूप से प्रभाव डालती है. छठ पूजा के रूप में सूर्य की पूजा करने से आप भी ऊर्जावान भाव और मन में शांति को महसूस कर पाएंगे. 

सामाजिक कारणों पर यदि विचार करे तो स्पष्ट होगा कि भारत में जहां जात-पात और छुआ-छूत समाज आकंण्ठ डूबा हुआ था वहां छठ पूजा डूबते को तिनके का सहारा जैसा ही था. जो साल में दो बार समाज कि इस खाई को पूर्णता धवस्त करने का कार्य करता है. छठ पर्व वास्तव में एक लोकपर्व है. जिसमें संयम, तपस्या, दान एवं दया जैसे मानवीय गुण समाहित है. हम भारतीयों को गर्व है कि हम उगते सूरज को ही नहीं डूबता सूरज के प्रति भी कृतज्ञता प्रकट करते है.

 

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