4 राज्यों में 'शून्य' हुई कांग्रेस, देशभर में रह गए महज 16% विधायक, सांसद 10% से भी कम
4 राज्यों में 'शून्य' हुई कांग्रेस, देशभर में रह गए महज 16% विधायक, सांसद 10% से भी कम
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नई दिल्ली: भारत जोड़ो यात्रा, नेतृत्व परिवर्तन, तपस्वी जैसी छवि सहित कांग्रेस ने पिछले कुछ समय में कई अहम बदलाव किए हैं, मगर उसके लिए कुछ भी काम आता नज़र नहीं आ रहा है। त्रिपुरा, मेघालय और नागालैंड के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को फिर निराशा हाथ लगी है। तीनों राज्यों की 180 विधानसभा सीटों में से उसे महज 8 सीटें ही मिल पाई हैं। इनमें से भी नागालैंड में कांग्रेस शून्य पर ही रह गई है। त्रिपुरा में कांग्रेस को मात्र 3 और मेघालय में 5 सीटों पर संतोष करना पड़ा है। इतना ही नहीं पूरे देश में फिलहाल 4033 MLA हैं, जिनमें से उसके पास सिर्फ 658 ही हैं, जो 16 प्रतिशत के बराबर हैं। इससे पहले 2014 में कांग्रेस का यह आंकड़ा 24 प्रतिशत रहा था। वहीं, देश की 543 लोकसभा सीटों में से कांग्रेस के पास महज 52 सांसद हैं, जो करीब 9.61 फीसद हैं

कांग्रेस की स्थिति को इससे भी समझा जा सकता है कि 4 राज्यों में अब उसका कोई MLA नहीं बचा है। कभी देशभर में राज करने वाली कांग्रेस के लिए यह निराशाजनक है और कई राज्यों में उसका जनाधार सिमटता जा रहा है। फिलहाल आंध्र प्रदेश, नागालैंड, सिक्कम और दिल्ली में कांग्रेस का कोई MLA नहीं बचा है। यहाँ तक कि, बंगाल में भी उसका कोई विधायक नहीं था, मगर गुरुवार (2 मार्च) को ही आए परिणामों में बंगाल के उपचुनाव में कांग्रेस ने सागरदिघी सीट से जीत दर्ज की है। इस तरह बंगाल में उसका एक विधायक हो गया है।

वहीं, देश के कई राज्य ऐसे भी हैं, जहां कांग्रेस की उपस्थिति महज नाम मात्र की है। देश के सर्वाधिक 403 विधानसभा सीटों वाले सूबे, उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के पास महज 2 ही MLA हैं। इसके अतिरिक्त बिहार में भी उसके 19 ही MLA हैं। पंजाब में भी उसकी स्थिति बेहद जर्जर हो चुकी है। तमिलनाडु, तेलंगाना, ओडिशा जैसे सूबों में भी कांग्रेस काफी कमजोर स्थिति में है। इससे समझा जा सकता है कि देश के बड़े हिस्से में कांग्रेस अस्तित्व संकट से जूझने लगी है। केंद्र की सत्ताधारी भाजपा के मुकाबले राष्ट्रीय पार्टी के तौर पर कांग्रेस की पोजिशन निरंतर गिरती जा रही है।

देश के 9 सूबों में कांग्रेस के विधायकों की तादाद 10 से भी कम रह गई है। कांग्रेस के 137 वर्षों के इतिहास में पार्टी के सामने शायद ही कभी इतनी कठिन चुनौती रही हो। एक ओर मल्लिकार्जुन खड़गे के रूप में कांग्रेस ने दलित नेता को पार्टी की कमान सौंपी है, तो 5 महीने तक राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा निकाली थी और खुद को 'तपस्वी' के रूप में पेश करने की कोशिश की थी। उसके बाद भी अधिक सीटें न मिल पाना कांग्रेस के लिए चिंता का विषय है। एक तरफ पार्टी ने दिसंबर में गुजरात में करारी शिकस्त का सामना किया था, तो वहीं इस साल की शुरुआत में ही तीन राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में उसकी कलई खुल गई है।

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