पहली बार ऊखीमठ से बाबा केदार की डोली वाहन से जायेगी गौरीकुंड
पहली बार ऊखीमठ से बाबा केदार की डोली वाहन से जायेगी गौरीकुंड
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केदारनाथ धाम के कपाट 29 अप्रैल को खुलने हैं।इसके अलावा  इस बार पहली दफा ऊखीमठ से बाबा केदार की डोली को वाहन से गौरीकुंड ले जाया जा सकता है। ऐसा बताया जाता है कि इससे पहले वर्ष 1977 में भी डोली को ऊखीमठ से वाहन से ले जाया जा रहा था, परन्तु तब पशुबलि की मुखालफत कर रहे तत्कालीन विधायक प्रताप सिंह पुष्पवाण के विरोध को देखते हुए डोली को गुप्तकाशी में ही उतार लिया गया था। इसके बाद में जमाणी पैदल डोली को फाटा और गौरीकुंड होते हुए केदारनाथ लेकर पहुंचे थे।

ऐसा बताते हैं कि 1977 से पहले तक पंचकेदार गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर में अश्विनी मास के नवरात्र की अष्टमी को चंडिका पूजन के दौरान प्रवेश द्वार पर ही बलि दी जाती थी। इसके साथ ही सेरा नामक स्थान पर भी बलि का प्रावधान था। वहीं तत्कालीन विधायक पुष्पवाण ने इस प्रथा का विरोध करते हुए धरना दिया। इसके साथ ही चेतावनी भी दी कि अगर पशुबलि बंद न गई तो वे केदारनाथ की डोली को धाम नहीं जाने देंगे। इसके साथ ही उन्होंने इस संबंध में मंदिर समिति से लिखित भरोसा भी मांगा, परन्तु उन्हें कोई जवाब नहीं मिला।

वहीं ऐसे में जब 1977 में मंदिर के कपाट खुलने का समय आया तो पुष्पवाण के विरोध को देखते हुए समिति की ओर से बाबा केदार की डोली को वाहन से ऊखीमठ से गौरीकुंड के लिए रवाना किया गया है । पुष्पवाण को इस बात का पता चला और उन्होंने गुप्तकाशी पहुंचकर वाहन को रुकवा दिया।पूर्व प्रमुख लक्ष्मी प्रसाद भट्ट ने बताया कि डोली को जमाणियों के माध्यम से पैदल मार्ग से फाटा होते हुए गौरीकुंड पहुंचाया गया। वहीं तत्कालीन वेदपाठी और चंडिका मंदिर के पुजारी आचार्य हर्ष जमलोकी ने बताया कि पूर्व विधायक पुष्पवाण ने जीवित रहते पशुबलि को बंद करने में अहम भूमिका निभाई थी।

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