1962 में बैंक के नोट जलाए गए
1962 में बैंक के नोट जलाए गए
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भारत-चीन यद्ध को कौन भूल सकता है, चीनी सैनिको ने असम और अरुणाचल प्रदेश के सीमावर्ती इलाको पर कब्ज़ा करने के लिए युद्ध शुरू कर दिया था, जिससे उन क्षत्रो में काफी संकट आ गया था, लोग अपने घरो को छोड़ कर अन्य स्थानों के लिए निकल गए थे. सैनिकों के काफ़िले पश्चिम की तरफ बढ़ रहे थे. तेज़पुर को खाली करने के लिए कह दिया गया था और ननमती तेल शोधक कारखाने को उड़ाए जाने की बात चल रही थी. असम सरकार ने राणा के.डी.एन सिंह से कहा था कि वह लड़खड़ाते हुए प्रशासन की बागडोर संभालें.

कड़कड़ाती रात में लोग सुबह होने का इंतजार कर रहे थे, कोहरे में कुछ दिखाई नहीं दे रहा था. वो मंजर लोगो को आज भी याद है, ब्रह्मपुत्र के उत्तरी किनारे पर रहने वाले ज्यादातर अंग्रेज़ चाय बागान मालिकों ने अपनी संपत्ति अपने मातहतों और क्लर्कों के हवाले कर दी थी. अपने पालतू जानवरों को वह या तो बांट रहे थे या उन्हें गोली मार रहे थे. उनका एक ही लक्ष्य था कि किसी तरह कलकत्ता पहुँचा जाए. इस पूरे कूच में नावों के अलावा कारों, बसों, साइकिलों और बैलगाड़ियों तक का सहारा लिया जा रहा था. कुछ लोग तो पैदल ही अपने घरों से निकल पड़े थे. स्टेट बैंक ने अपने यहाँ रखी सारी करेंसी में आग लगा दी थी और अधजले नोटों के टुकड़े हवा में उड़ रहे थे. सिक्कों को पास के तालाब में फेंक दिया गया था.

19 नवंबर को चीनी सैनिक तेज़पुर से 50 किलोमीटर दुरी पर थे, 19 नवंबर की आधी रात चीनी रेडियो ने घोषणा की, कि उसने तुरंत प्रभाव से एकपक्षीय युद्ध विराम कर दिया है, बशर्ते भारतीय सेना भी उसका पालन करे. 21 नवंबर को स्थिति सामान्य हो गयी और यद्ध विराम हो गया.

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