बहुत ही अनोखी थी बलराज साहनी की अंतिम इच्छा, सुनकर दंग रह गया हर व्यक्ति
बहुत ही अनोखी थी बलराज साहनी की अंतिम इच्छा, सुनकर दंग रह गया हर व्यक्ति
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13 अप्रैल 1973 को इस दुनिया को अलविदा कहने वाले अभिनेता बलराज साहनी को आज तक कोई भुला नहीं पाया है। बलराज साहनी हिंदी सिने जगत के वो अभिनेता थे, जिनकी गिनती बेहद प्रतिभाशाली और प्रभावशाली अभिनेताओं में होती है। अपने अभिनय से उन्होंने सभी का दिल जीता और उन्होंने आम आदमी की पीड़ा और समस्याओं को बहुत बार फिल्मी पर्दे पर लाया। वह वास्तविक जीवन में हुनरमंद, सौम्यता, सौहार्द और नैतिकता के प्रतीक बने रहे और उनके अभिनय ने कई लोगों को उनका दीवाना बना दिया।

हालाँकि बलराज साहनी का असली नाम युद्धिष्ठिर साहनी था और उनपर लिखी ‘द नॉन कन्फर्मिस्ट : मेमरीज ऑफ माई फादर बलराज साहनी’ किताब में वक्त और जिंदगी की अनकही बातों को उनकी जीवनी में बयान किया गया है। आप सभी को बता दें कि ये जीवनी बलराज साहनी के अभिनेता पुत्र परीक्षित साहनी ने लिखी है। अब आज 13 अप्रैल को उनकी पुण्यतिथि है। तो हम बताते हैं उनसे जुडी खास बातें। कहा जाता है बलराज साहनी के शौक भी लाजवाब थे और उन्हें पानी से काफी लगाव था। जी दरअसल पानी में तैरने की बात हो या फिर बर्फ वाले पानी मे नहाने की, वह हमेशा इन सभी के लिए उत्सुक हो जाया करते थे।

उनको काफी कठोर निर्णय लेने के लिए भी जाना जाता था और कहा जाता है बलराज को बचपन से ही अभिनय का शौक था। आपको बता दें कि बलराज साहनी का जन्म 1 मई 1913 को पाकिस्तान में हुआ था। जी हाँ और उन्होंने लाहौर यूनिवर्सिटी से इंग्लिश लिट्रेचर में अपनी मास्टर डिग्री की थी। वहीं इसके बाद वो अपने परिवार के व्यापार को संभालने के लिये रावलपिंडी चले गये थे। जी हाँ और उन्होंने साल 1938 में महात्मा गांधी के साथ मिलकर भी काम किया था। कहा जाता है गांधी जी से मिलने के बाद वो बीबीसी लंदन हिंदी को ज्वाइन करने इंग्लैंड चले गये थे। वहीं उसके बाद बलराज साहनी अपने बचपन का शौक पूरा करने के लिये 'इंडियन प्रोग्रेसिव थियेटर एसोसियेशन' (इप्टा) में शामिल हो गये थे।

'इप्टा' में साल 1946 में उन्हें सबसे पहले नाटक 'इंसाफ' में अभिनय करने का मौका मिला और ख्वाजा अहमद अब्बास के निर्देशन में फिल्म 'धरती के लाल' में भी बलराज साहनी को बतौर अभिनेता काम करने का मौका मिला। बहुत कम लोग जानते हैं बलराज साहनी पूर्ण रूप से मार्क्सवादी थे। जी हाँ और वह इसी विचारधारा का पालन करते हुए कह गए थे कि 'जब मेरी मौत होगी तब कोई पंडित न बुलाना। कोई मंत्र उच्चारण नहीं होगा। जब मेरी अंतिम यात्रा निकलेगी तो मेरे शरीर पर लाल रंग का झंडा होना चाहिए।'

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