आखिर राष्ट्रीय निर्माण में कितनी सही साबित हुई बाबा साहेब की दूरदर्शिता ?
आखिर राष्ट्रीय निर्माण में कितनी सही साबित हुई बाबा साहेब की दूरदर्शिता ?
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डॉ. भीमराव रामजी आम्बेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 में हुआ था. वे रामजी मालोजी सकपाल और भीमाबाई मुरबादकर की 14वीं व अंतिम संतान थे. उनका परिवार मराठी था और वो अंबावडे नगर जो आधुनिक महाराष्ट्र के रत्नागिरी ज़िले में है, से संबंध रखते है. अनेक समकालीन राजनीतिज्ञों को देखते हुए उनकी जीवन-अवधि कुछ कम थी. वे महार जाति के थे जो अछूत कहे जाते थे. किन्तु इस अवधी में भी उन्होंने अध्ययन, लेखन, भाषण और संगठन के बहुत से काम किए जिनका प्रभाव उस समय  की राजनीति पर पड़ा.

इतिहास में 25 नवंबर की तारीख स्वतंत्र भारत की एक बड़ी महत्वपूर्ण घटना के साथ दर्ज है. 25 नवंबर 1949 को संविधान सभा की आख़िरी बैठक में बाबा साहब भीम राव आंबेडकर ने समापन भाषण दिया था. इस विशेष मौके पर उन्होंने नव निर्मित राष्ट्र के सामने आने वाली चुनौतियों का विस्तार से वर्णन करने के साथ ही बड़े संयमित शब्दों में उन चुनौतियों से निपटने के तरीके भी सुझाए थे.

यहां यह उल्लेखनीय है कि बाबा साहब ने उस समय जिन चुनौतियों को राष्ट्र निर्माण में बाधक करार दिया था, वह आज भी उतनी ही विकरालता के साथ देश के सामने मौजूद हैं. यह उनकी दूरदर्शिता ही थी कि वह संविधान सभा के आख़िरी भाषण में आर्थिक और सामाजिक गैरबराबरी के ख़ात्मे को राष्ट्रीय एजेंडे के रूप में सामने लाए.

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