धमकियों से डरी या सियासी मजबूरी ? आखिर AAP का साथ देने के लिए क्यों विवश हुई कांग्रेस ?
धमकियों से डरी या सियासी मजबूरी ? आखिर AAP का साथ देने के लिए क्यों विवश हुई कांग्रेस ?
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नई दिल्ली: काफी कश्मकश और जद्दोजहद के बाद कांग्रेस ने आज दिल्ली अध्यादेश के खिलाफ लड़ाई में आम आदमी पार्टी (AAP) को अपना समर्थन देने की घोषणा की और राष्ट्रीय राजधानी में सेवाओं के नियंत्रण पर केंद्र के अध्यादेश का समर्थन नहीं करेगी। कांग्रेस जीएस केसी वेणुगोपाल ने कहा कि वे (कांग्रेस) "इसका (अध्यादेश का) समर्थन नहीं करने जा रहे हैं"। बता दें कि, यह फैसला कल होने वाली विपक्ष की बड़ी बैठक से पहले आया है। इससे पहले AAP ने कई बार धमकियों भरे लहजे में कहा था कि जब तक कांग्रेस सार्वजनिक रूप से अध्यादेश की निंदा नहीं करती, उसके लिए किसी भी गठबंधन का हिस्सा बनना "बहुत मुश्किल" होगा, जिसमें कांग्रेस भी शामिल है।

कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल ने आज बताया है कि, 'मुझे लगता है कि AAP कल बैठक में शामिल होगी। जहां तक (दिल्ली में सेवाओं के नियंत्रण पर) अध्यादेश का सवाल है, हमारा रुख बिल्कुल स्पष्ट है। हम इसका समर्थन नहीं करने जा रहे हैं।" बता दें कि, कुछ दिनों पहले AAP लगातार कह रही थी कि वह विपक्षी दलों की एकता बैठक में शामिल नहीं होगी, जब तक कि कांग्रेस दिल्ली अध्यादेश पर उसके (AAP के) रुख का समर्थन नहीं करती। कांग्रेस के फैसले का स्वागत करते हुए AAP के राज्यसभा सांसद राघव चड्ढा ने कहा कि, "कांग्रेस दिल्ली अध्यादेश का स्पष्ट विरोध करने की घोषणा करती है।"

वहीं, विपक्षी एकता में शामिल नेशनल कांफ्रेंस के उमर अब्दुल्ला ने कहा है कि, 'जब हम पटना में मिले थे तो कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने AAP नेतृत्व को बिल्कुल वही बताया था और प्रतिबद्धता व्यक्त की थी। कांग्रेस अध्यादेश के संबंध में अपने रुख को लेकर पहले से स्पष्ट थी। यह निर्णय तब आया जब AAP ने बेंगलुरु में दो दिवसीय विपक्षी सभा में भागीदारी के संबंध में अपनी कार्रवाई पर विचार-विमर्श करने के लिए पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान सहित अपने शीर्ष नेताओं की एक मीटिंग बुलाई। बता दें कि, बेंगलुरु में होने वाली विपक्षी दलों की बैठक में भाजपा विरोधी 24 दलों के नेताओं के एक साथ आने की उम्मीद है, जो 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए रणनीति बनाने के लिए जुटेंगे।  

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बता दें कि, 11 मई के आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसफर-पोस्टिंग सहित सेवा मामलों से जुड़े सभी कामकाज पर दिल्ली सरकार का कंट्रोल बताया था। वहीं, जमीन, पुलिस, और पब्लिक ऑर्डर के अलावा सभी विभागों के अफसरों पर केंद्र सरकार को कंट्रोल दिया गया था। ये पॉवर मिलते ही, केजरीवाल सरकार ने दिल्ली सचिवालय में स्पेशल सेक्रेट्री विजिलेंस के आधिकारिक चैंबर 403 और 404 को सील करने का फरमान सुना दिया और    विजिलेंस अधिकारी राजशेखर को उनके पद से हटा दिया था। लेकिन, केंद्र सरकार अध्यादेश ले आई और फिर राजशेखर को अपना पद वापस मिल गया। इसके बाद पता चला कि, दिल्ली शराब घोटाला और सीएम केजरीवाल के बंगले पर खर्च हुए करोड़ों रुपए की जांच राजशेखर ही कर रहे थे।

राजशेखर को पद से हटाए जाने के बाद उनके दफ्तर में रखी फाइलों से छेड़छाड़ किए जाने की बात भी सामने आई थी। एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमे राजशेखर के दफ्तर में आधी रात को 2-3 लोग फाइलें खंगालते हुए देखे गए थे।  ऐसे में कांग्रेस नेता संदीप दीक्षित और अजय माकन द्वारा कहा जा रहा है कि, केजरीवाल इस अध्यादेश का विरोध दिल्ली की जनता के लिए नहीं, बल्कि खुद को बचाने के लिए कर रहे हैं। अजय माकन का तो यहाँ तक कहना है कि, अध्यादेश पर केजरीवाल का साथ देना यानी नेहरू, आंबेडकर, सरदार पटेल जैसे लोगों के विचारों का विरोध करना है, जिन्होंने कहा था कि, दिल्ली की शक्तियां केंद्र के हाथों में ही होनी चाहिए। माकन तर्क देते हैं कि, कांग्रेस सरकार के समय मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को भी वह शक्तियां नहीं मिली थी, जो केजरीवाल मांग रहे हैं। साथ ही इन दोनों नेताओं ने कांग्रेस से केजरीवाल का साथ न देने की अपील की है। हालाँकि, भाजपा के खिलाफ विपक्षी एकता बनाए रखने और 2024 के चुनाव में AAP का साथ लेने के लिए कांग्रेस हाईकमान ने AAP की मांग स्वीकार कर ली है और अब कांग्रेस नेहरू-आंबेडकर, पटेल आदि के विचारों के खिलाफ जाकर AAP का साथ देगी। 

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