क्या दिल्ली हाई कोर्ट के जज बन पाएंगे 'समलैंगिक' वकील सौरभ कृपाल ?
क्या दिल्ली हाई कोर्ट के जज बन पाएंगे 'समलैंगिक' वकील सौरभ कृपाल ?
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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट कॉलिजियम ने वरिष्ठ अधिवक्ता सौरभ कृपाल को दिल्ली उच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त करने की सिफारिश एक एक बार फिर केंद्र सरकार के पास भेजी है। इसके पहले सरकार सौरभ कृपाल के नाम की सिफारिश को अस्वीकार कर चुकी है। बता दें कि, सौरभ कृपाल समलैंगिक (GAY) हैं, उनका पार्टनर एक विदेशी है, इसलिए सरकार इनकी नियुक्ति के खिलाफ है। बता दें कि, मौजूदा नियम के अनुसार, सरकार, कॉलिजियम की सिफारिश को सिर्फ एक बार नकार सकती है। कॉलिजियम ने दूसरी दफा सिफारिश भेजा है, तो सरकार के पास उसे मानने के सिवा कोई रास्ता नहीं है। हां, उस सिफारिश को काफी समय तक टेबल पर रख सकती है।

बता दें कि, वकील सौरभ कृपाल ने हाल ही में एक मीडिया चैनल से बात करते हुए कहा था कि उन्हें लगता है कि उनके साथ ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि वह एक समलैंगिक (Gay) हैं। एनवी रमणा से पहले CJI पद पर रहे एसए बोबड़े के कॉलेजियम ने भी कथित रूप से कृपाल का नाम टालते हुए, उनके संबंध में और भी जानकारी देने को कहा था। हालांकि बाद में एनवी रमणा के CJI बनने के बाद वकील सौरभ कृपाल को जज बना देने की सिफारिश केंद्र सरकार को भेजी गई थी। 

साथ ही शीर्ष अदालत ने जजों की नियुक्ति की देरी पर नाराजगी प्रकट की थी। अदालत ने इस देरी पर कहा था कि यह नियुक्ति के तरीके को प्रभावी रूप से नाकाम करता है। सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार (28 नवंबर) को कहा था कि जजों की बेंच ने जो समय-सीमा निर्धारित की थी, उसका पालन करना होगा। न्यायमूर्ति एसके कौल और न्यायमूर्ति एएस ओका की पीठ ने यह भी कहा था कि, 'ऐसा लगता है कि केंद्र इस सच्चाई से नाखुश है कि राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) अधिनियम को हरी झंडी नहीं मिली। अदालत ने कहा था कि, लेकिन यह देश के कानून के शासन को नहीं मानने का 'कारण' नहीं हो सकता है।

बता दें कि, सर्वोच्च न्यायालय ने 2015 के अपने फैसले में NJAC अधिनियम और संविधान (99वां संशोधन) अधिनियम, 2014 को निरस्त कर दिया था, जिससे शीर्ष अदालत में जजों की नियुक्ति करने वाली जजों की मौजूदा कॉलेजियम सिस्टम बहाल हो गई थी। न्यायमूर्ति कौल ने कहा था कि कई दफा कानून को स्वीकृति मिल जाती है और कई बार नहीं मिलती। लेकिन, यह बात यह देश के कानून के शासन को नहीं मानने की वजह नहीं हो सकती।' अदालत ने कहा कि कुछ नाम डेढ़ साल से सरकार के समक्ष विचाराधीन हैं। कभी सिफारिशों में केवल एक नाम चुना जाता है। अदालत ने कहा था कि, आप (सरकार) नियुक्ति के तरीके को प्रभावी तरीके से विफल कर रहे हैं।

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