बिहार के एक स्थान पर जीतनराम मांझी ने राममनोहर लोहिया की प्रतिमा पर माल्यार्पण क्या कर दिया, ’लोहिया के विचारों के नाम पर राजनीति’ करने वालों को कांटा चुभ गया....! लोहिया की प्रतिमा को गंगाजल से धो डाला, सुंगधित दृव्य छिड़का गया और फिर लोहिया के बूत को ’भगवान’ मानते हुये प्रसाद बांटा गया....! वस्तुतः राममनोहर लोहिया समाजवाद के अप्रतिम हस्ताक्षर थे, समाजवाद के ज्वाज्वल्यमान नक्षत्र थे, संभवतः उन्होंने अपने जीवन काल में दिल या मन में किसी के प्रति कलुषता नहीं पाली होगी, लिहाजा मांझी के माल्यार्पण के बाद लोहिया की प्रतिमा की शुद्धिकरण करना समझ से परे ही है।
अरे जिस व्यक्ति के मन में कभी कलुषता नहीं रही हो, जिसने समानता की भावना रखी हो, यदि उसकी प्रतिमा को ही थोथी राजनीति करने के लिये गंगाजल से धो दिया जाये तो निश्चित ही लोहिया की आत्मा को झकझोर गई होगी। अरे ! गंगाजल से प्रतिमा को धोने वालो....जरा अपने दिल के अंदर झांककर देखों, कि जिस लोहिया ने समानता का पाठ पढ़ाया, सामाजिक समरसता की गंगा प्रवाहित की हो तो फिर उसी की प्रतिमा को गंगाजल से धो कर आपने उनके विचारों को राजनीति की चक्की में पीस डाला है।
लगता है कि मांझी के मन में संभवतः कुछ होगा नहीं लेकिन गंगाजल से प्रतिमा को धोने वाले और लोहिया के विचारों संग सियासत करने वालों के मन जरूर मैले है, लिहाजा उन्हें पवित्र आत्मा लोहिया की प्रतिमा को धोने या शुद्धिकरण करने की जरूरत से अधिक अपने मन को पवित्रता के जल से धोने की जरूरत महसूस हो रही है। इस देश में लोहिया जैसे और भी महापुरूषों ने जन्म लेकर अपनी प्रतिभा के दम पर देश को गौरवान्वित किया है, परंतु यह दुःखद है कि महापुरूषों के नाम पर राजनीति करने वाले यह भी भूल जाते है कि वे जो कर रहे है बिल्कुल गलत है। बेवजह बेमौसम मेंडक टर्राने जैसे कृत्य करना बंद करों, महापुरूषों को स्मरण करना है तो सही ढंग से करों परंतु ऐसा न किया जाये जिससे उनकी आत्मा झकझोर उठे।