'अननेचुरल सेक्स और शादी के झांसे में रेप अपराध नहीं'! अंग्रेजों के IPC की जगह मोदी सरकार लेकर आई BNS, जानिए क्या है प्रावधान?
'अननेचुरल सेक्स और शादी के झांसे में रेप अपराध नहीं'! अंग्रेजों के IPC की जगह मोदी सरकार लेकर आई BNS, जानिए क्या है प्रावधान?
Share:

नई दिल्ली: केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने संशोधन के पश्चात् ‘भारतीय न्याय संहिता’ यानी बीएनएस (BNS) का नया मसौदा मंगलवार (12 दिसंबर, 2023) को संसद में पेश किया। लोकसभा में पेश किए गए BNS (द्वितीय) विधेयक, 2023 के नए संस्करण में संसदीय समिति की सिफारिशों की अनदेखी करते हुए अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने तथा व्यभिचार को अपराध की श्रेणी में नहीं रखा गया है।

दरअसल, BNS ब्रिटिश युग के ‘भारतीय दंड संहिता’ (IPC) को परिवर्तित करने के लिए प्रस्तावित है। इस मामले में सरकार ने संसदीय पैनल की सिफारिशों के बाद भी BNS विधेयक से धारा 377 तथा धारा 497 को बाहर करने का फैसला लिया है। धारा 377 प्रकृति के खिलाफ जाकर यौन संबंध बनाने तो धारा 497 व्यभिचार से जुड़ी है। इन दोनों धाराओं को सर्वोच्च न्यायालय पहले ही खारिज कर चुकी है। इन धाराओं के प्रावधानों को अधिकारों का उल्लंघन तथा अवैध करार देते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने रद्द कर दिया था। सर्वोच्च न्यायालय ने 2018 में व्यभिचार (विवाहेतर संबंध) यानी एडल्ट्री को अपराध की श्रेणी से हटा दिया। हालाँकि, इसके आधार पर तलाक लिया जा सकता है। इस वर्ष 2023 में सर्वोच्च न्यायालय ने समान-लिंग वाले जोड़ों के बीच सहमति से बने यौन संबंध को अपराध की श्रेणी से हटा दिया।

इसके साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने इन धाराओं को खारिज करने के साथ ही समलैंगिकों के बीच बने अप्राकृतिक यौन संबंध तथा व्यभिचार कहे जाने वाले सहमति से बने विवाहेतर यौन संबंध अपराध की श्रेणी से बाहर हो गए। हालाँकि, देश की इस नई दंड संहिता यानी BNS विधेयक में बलात्कार और यौन अपराधों के पीड़ितों से संबंधित पहचान या जानकारी का खुलासा करने को दंडनीय बनाने वाला एक नया प्रावधान पेश किया गया है। इसके तहत BNS विधेयक ने महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों से निपटने के प्रावधानों में एक नई धारा 73 जोड़ दी। इसके तहत अदालती कार्यवाही में बलात्कार तथा यौन अपराधों के सर्वाइवर्स से संबंधित पहचान या जानकारी का खुलासा करने पर 2 वर्षों तक की जेल की सजा हो सकती है।

BNS की धारा 73 के अनुसार, “जो कोई धारा 72 में बताए गए अपराध के संबंध में किसी अदालत में चल रही किसी भी कार्यवाही के किसी भी मामले को अदालत की पूर्व अनुमति के बगैर मुद्रित या प्रकाशित करेगा, उसे कारावास की सजा दी जाएगी। इसे 2 वर्षों  तक बढ़ाया जा सकता है। इसे दंडित करते के साथ ही जुर्माना भी लगाया जा सकता है।” हालाँकि, यह भी स्पष्ट कर दिया किया गया है कि सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के फैसले को प्रिंट करना या छापना इस धारा के तहत अपराध नहीं माना जाएगा। धारा 72 यौन अपराध के पीड़ित की पहचान उजागर करने वाली सामग्री को छापने या प्रकाशित करने पर रोक लगाती है।

गौरतलब है कि बृज लाल के नेतृत्व वाली गृह मामलों की संसदीय स्थायी समिति ने 4 दिसंबर, 2023 को संसद में अपनी रिपोर्ट पेश की थी। इसमें संसदीय पैनल ने विवाह की पवित्रता बनाए रखने के लिए धारा 377 को इसके रीड-डाउन फॉर्म में सम्मिलित करने यानी समलैंगिक और बगैर सहमति के बनाए गए यौन संबंधों पर मुकदमा चलाने की सिफारिश की थी। इसके साथ ही धारा 497 को बरकरार रखने की सिफारिश भी की थी। धारा 497 के तहत, “जो कोई किसी ऐसे व्यक्ति के साथ यौन संबंध बनाता है जो ये जानता है या जिसके पास ये विश्वास करने का करण है कि वह किसी अन्य पुरुष की पत्नी है तो उस पुरुष की सहमति या मिलीभगत के बगैर यानी जिस पुरुष की वो पत्नी है से किया ऐसा संभोग बलात्कार के अपराध की श्रेणी में नहीं आता है, बल्कि दूसरे की पत्नी से संभोग करने वाले पुरुष व्यभिचार के अपराध का दोषी माना जाएगा है। उसे किसी एक समय के लिए कारावास, जिसे पाँच वर्षों तक बढ़ाया जा सकता है या जुर्माना या दोनों की सजा हो सकती है। ऐसे मामले में, पत्नी को बहकाने वाले के तौर पर सजा नहीं दी जाएगी।”

बिहार से सामने आया शराब तस्करी का चौंकाने वाला मामला, देखकर पुलिस अफसर भी रह गए हैरान

कर्ज से परेशान महिला ने उठाया खौफनाक कदम

दिल्ली में पहली बार एक साथ लॉन्च की गईं 500 इलेक्ट्रिक बसें, LG-CM ने दिखाई हरी झंडी

रिलेटेड टॉपिक्स
- Sponsored Advert -
Most Popular
मध्य प्रदेश जनसम्पर्क न्यूज़ फीड  

हिंदी न्यूज़ -  https://mpinfo.org/RSSFeed/RSSFeed_News.xml  

इंग्लिश न्यूज़ -  https://mpinfo.org/RSSFeed/RSSFeed_EngNews.xml

फोटो -  https://mpinfo.org/RSSFeed/RSSFeed_Photo.xml

- Sponsored Advert -