भारत में 81 अरब का निवेश करना चाहती थी ये चीनी कंपनी, मोदी सरकार ने ठुकरा दिया ऑफर
भारत में 81 अरब का निवेश करना चाहती थी ये चीनी कंपनी, मोदी सरकार ने ठुकरा दिया ऑफर
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नई दिल्ली: भारत में पैर जमाने की कोशिशों में जुटी चीन की इलेक्ट्रिक कार कंपनी बीवाईडी (BYD) को बड़ा झटका लगा है। दरअसल, यह चीनी कंपनी हैदराबाद की मेघा इंजीनियरिंग एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड के साथ मिलकर इलेक्ट्रिक कार (EV) मैन्युफैक्चरिंग प्लांट खोलना चाहती थी। मगर, उसके 1 अरब डॉलर (लगभग 81 अरब रुपए) के निवेश के प्रस्ताव को भारत सरकार ने ठुकरा दिया है। यह फैसला सरकार ने सुरक्षा कारणों से लिया है, क्योंकि चीन पर भरोसा नहीं किया जा सकता।

रिपोर्ट्स के मुताबिक, भारत और चीन की दोनों कंपनियों ने उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग (DPIIT) को एक आवेदन दिया था। इस आवेदन में कंपनियों की तरफ से हैदराबाद में इलेक्ट्रिक व्हीकल प्लांट खोलने का प्रस्ताव दिया गया था। इस प्रस्ताव के मुताबिक, चीनी कंपनी BYD भारत में 1 अरब डॉलर का निवेश करना चाहती थी। दोनों कंपनियों के आवेदन पर DPIIT ने अन्य विभागों से उनके विचार मांगे थे। मीडिया रिपोर्ट में एक अधिकारी के हवाले से बताया गया है कि इस प्रस्ताव पर विचार-विमर्श के दौरान चीनी कंपनी के भारत में निवेश को लेकर सुरक्षा कारणों पर चर्चा की गई। अधिकारियों ने सुरक्षा को लेकर चिंता प्रकट की। वहीं एक अन्य अधिकारी ने कहा है कि विदेशी निवेश को लेकर मौजूदा नियम इस प्रकार की इजाजत नहीं देते। 

बता दें कि चीनी इलेक्ट्रिक कंपनी BYD और मेघा इंजीनियरिंग एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड ने साथ मिलकर वार्षिक 10000-15000 इलेक्ट्रिक कारों के निर्माण करने की योजना बनाई थी। इसमें मुख्य निवेशक मेघा इंजीनियरिंग थी। वहीं BYD अपनी टेक्नोलॉजी के साथ भारत के कार बाजार में पकड़ बनाना चाहती थी। बता दें कि बिक्री के मामले में विश्व की टॉप मोस्ट इलेक्ट्रिक व्हीकल कंपनी BYD पहले ही भारत में इलेक्ट्रिक व्हीकल के 2 मॉडल लॉन्च कर चुकी है। इसके साथ ही BYD ने इलेक्ट्रिक बसों के लिए MEIL की सहायक कंपनी ओलेक्ट्रा ग्रीनटेक को टेक्निकल मदद दे रही है। आँकड़ों के मुताबिक, ओलेक्ट्रा ग्रीन टेक को पहले ही 2000 बसों का ऑर्डर मिल चुका है। इन बसों की कीमत लगभग 3000-3500 करोड़ रुपए है। यह ऑर्डर अगले 12-18 महीनों में पूरा होने की संभावना है।

बता दें कि अप्रैल 2020 में मोदी सरकार ने देश के प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की नीति में बदलाव किया था। इस बदलाव के बाद भारत की जमीन से जुड़ी हुए देश या दूसरे शब्दों में कहें तो भारत के साथ भूमि-सीमा साझा करने वाले देशों को निवेश से पहले सरकार की मंजूरी अनिवार्य हो गई है। अब ऐसे देशों से आने वाले निवेश के प्रस्ताव को देखने और उन्हें मंजूरी देने के लिए गृह सचिव की अध्यक्षता में एक समिति काम करती है। बेशक FDI में हुआ बदलाव किसी एक देश के लिए नहीं है। लेकिन देश की कंपनियों में चीन के बढ़ते दखल और चीन की ‘कर्ज और कब्जा’ (डेट ट्रैप) नीति को रोकने के लिए केंद्र सरकार के इस प्रयास को जरूरी कदम के रूप में देखा जा रहा है।

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