8 लाख लोगों के 'रोज़गार' पर मंडराया संकट, सरकार और सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने बढ़ाई मुसीबत !
8 लाख लोगों के 'रोज़गार' पर मंडराया संकट, सरकार और सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने बढ़ाई मुसीबत !
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चेन्नई: तमिलनाडु का शिवकाशी शहर भारत की "आतिशबाजी राजधानी" के रूप में जाना जाता है। इस छोटे से शहर का 90 वर्ष पुराना पटाखा उद्योग भारत के 90 प्रतिशत पटाखों का उत्पादक है। शिवकाशी में 8,000 पटाखा फैक्ट्रियां हैं, जिनमें लगभग 8 लाख लोग कार्यरत हैं। तमिलनाडु के शिवकाशी के ये 8 लाख कर्मचारी, जो उद्योग और उसके संबद्ध क्षेत्रों पर निर्भर हैं, इस साल निराशाजनक भविष्य का सामना कर रहे हैं, क्योंकि दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार ने प्रदूषण का हवाला देकर 1 जनवरी तक पटाखों पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया है। 

इसी प्रकार, कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने भी बिक्री लाइसेंस देने से सरकार ने इनकार कर दिया है। इसके साथ ही नोएडा क्षेत्र (NCR) में लगाई गई लिमिटेशन भी तमिलनाडु के शिवकाशी शहर में पटाखा निर्माताओं के व्यवसाय को नुकसान पहुंचा रही हैं। उद्योग से जुड़े लोगों के अनुसार, दिल्ली सरकार द्वारा पटाखों पर लगाए गए पूर्ण प्रतिबंध के कारण अकेले शिवकाशी निर्माताओं की मांग में 20 प्रतिशत की कमी हो गई है। द इंडियन फायरवर्क्स मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (TIFMA) के महासचिव टी कन्नन ने कहा कि, 'अब हम बेरियम नाइट्रेट का उपयोग किए बिना केवल ग्रीन पटाखों का उत्पादन कर रहे हैं। लेकिन दिल्ली में प्रतिबंध के कारण शिवकाशी निर्माताओं की मांग में 20 प्रतिशत की कमी हो गई है।' बता दें कि, दिल्ली में ग्रीन पटाखों पर भी बैन है। 

उल्लेखनीय है कि 13 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि वह इस दिवाली सीजन के दौरान दिल्ली में सभी प्रकार के पटाखों के उत्पादन, बिक्री, भंडारण और उपयोग पर प्रतिबंध में हस्तक्षेप नहीं करेगा। यह प्रतिबंध दिल्ली की केजरीवाल सरकार द्वारा लगाया गया है। जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस एमएम सुंदरेश की पीठ ने संकेत दिया कि दिवाली मनाने के लिए कुछ अलग तरीके अपनाए जाने चाहिए। ऐसा तब हुआ जब भाजपा के लोकसभा सांसद मनोज तिवारी ने अदालत के समक्ष कहा कि अदालत द्वारा ग्रीन पटाखों को फोड़ने की अनुमति देने के बावजूद प्रतिबंध फिर से लगाया गया है।

तिवारी का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने तर्क दिया कि, "इस अदालत के आदेशों के बावजूद कई राज्य पूर्ण प्रतिबंध लगा रहे हैं।" इस पर कोर्ट ने जवाब देते हुए कहा कि, ''स्थानीय तौर पर अगर कोई प्रतिबंध है, तो प्रतिबंध है. हम हस्तक्षेप नहीं करेंगे। आप जश्न मनाने के अन्य तरीके ढूंढ सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट का फैसला दिल्ली सरकार द्वारा 11 सितंबर को सर्दियों के महीनों के दौरान उच्च प्रदूषण स्तर से निपटने के लिए राष्ट्रीय राजधानी में हर तरह के पटाखों के निर्माण, भंडारण, बिक्री और फोड़ने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की घोषणा के बाद आया है।

बता दें कि, पिछले दो वर्षों के दौरान, दिल्ली सरकार द्वारा इसी तरह का व्यापक प्रतिबंध लगाया गया था। पटाखों पर प्रतिबंध का मुद्दा हर साल दिवाली से पहले सामने आता है, जिसमें पतझड़ के मौसम के दौरान दिल्ली और पड़ोसी क्षेत्रों में होने वाले गंभीर वायु प्रदूषण के लिए इस त्योहार को जिम्मेदार ठहराया जाता है। अध्ययनों से पता चलता है कि वायु प्रदूषण में त्योहार का योगदान नगण्य और अस्थायी है, इसके बावजूद हर साल दिवाली को लक्षित किया जाता है, जबकि प्रमुख कारण आसपास के राज्यों में किसानों द्वारा जलाई जाने वाली पराली, वाहन और निर्माण गतिविधियां, मौसम का मिजाज और क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति हैं। इन चीज़ों पर उतना ध्यान नहीं दिया जाता। मौजूदा समय में सबसे बड़ी समस्या तो उन 8 लाख कर्मचारियों को लेकर है, जिनका परिवार इसी कारोबार पर आश्रित है, अब उनके सामने रोज़गार का बड़ा संकट खड़ा हो गया है।  

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