'टू फिंगर टेस्ट' पर फिर भड़का हाई कोर्ट, जानिए क्या कहा ?
'टू फिंगर टेस्ट' पर फिर भड़का हाई कोर्ट, जानिए क्या कहा ?
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चेन्नई: एक मामले की सुनवाई के दौरान मद्रास उच्च न्यायालय ने सोमवार (11 जुलाई) को एक अहम टिपण्णी की है. कोर्ट ने कहा है कि आरोपियों की मर्दानगी की जांच के लिए नई वैज्ञानिक तकनीकों का उपयोग किया जाना चाहिए, इसके लिए जल्द से जल्द SOP तैयार करनी चाहिए, ताकि सीमन की जांच करने की प्रक्रिया को बंद किया जा सके. नाबालिग लड़का और लड़की द्वारा दाखिल एक याचिका की सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने टू फिंगर टेस्ट पर भी टिप्पणी की. 

उच्च न्यायालय ने स्पष्ट कर दिया है कि SOP तैयार करते हुए हमें ये भी ध्यान रखना चाहिए कि टू फिंगर टेस्ट को बंद करने की आवश्यकता है. बता दें कि यहां न्यायमूर्ति एन. आनंद वेंकटेश, न्यायमूर्ति सुंदर मोहन के नेतृत्व में एक कमेटी का गठन किया गया था, जिसका मकसद POCSO एक्ट लागू करवाना था. कोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए कहा कि हमारा प्रयास है कि मर्दानगी टेस्ट, टू फिंगर टेस्ट के पुराने तरीके बंद किए जाने चाहिए. DGP को आदेश दिया जाना चाहिए कि वह 1 जनवरी, 2023 से अब तक की एक रिपोर्ट तैयार करवाएं, जिसमें यौन अपराध से संबंधित किसी केस में इन मामलों का जिक्र किया गया हो. ऐसी किसी भी रिपोर्ट को कोर्ट के समक्ष रखा जाना चाहिए.

मद्रास उच्च न्यायालय ने कहा कि विज्ञान ने इतनी तरक्की की है, ऐसे में आवश्यक है कि हम नई प्रैक्टिस को लागू में लाएं और किसी भी प्रकार की पुरानी तकनीक को पीछे ही छोड़ दें. विश्व में इतना कुछ बदल रहा है, ऐसे में हमें भी जल्द से जल्द SOP तैयार करनी चाहिए, इसकी रिपोर्ट सामने आने के बाद ही हम आगे के आदेश जारी करेंगे. कोर्ट में अब इस मामले की अगली सुनवाई 11 अगस्त को की जाएगी.

बता दें कि, टू-फिंगर टेस्ट को लेकर अक्सर सुर्खियां बनती रहती हैं,  गत वर्ष सुप्रीम कोर्ट ने भी इस तरह की प्रैक्टिस पर रोक लगाने की बात कही थी और इसे गलत बता दिया था. यही नहीं शीर्ष अदालत ने इस टेस्ट की पढ़ाई को भी बंद करने का आदेश दिया था. टू फिंगर टेस्ट में किसी महिला के निजी अंग में 2 उंगलियां डाली जाती हैं, ताकि यह देखा जा सके कि वह सेक्सुअली एक्टिव है या नहीं. कोर्ट की तरफ से कई बार इसपर तीखी टिप्पणी की गई है, प्रतिबंध भी लगाया गया है, मगर अलग-अलग मामलों में अक्सर यह इस्तेमाल होता आया है. यही वजह है कि इसको लेकर कई बार विरोध हुआ है और अब एक बार फिर मद्रास उच्च न्यायालय की यह टिप्पणी देखने को मिली है.

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