नई दिल्ली: भारतीय सेना में महिलाओं के अधिकारों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुना दिया है. जिसमें कोर्ट ने अपने फैसले में बताया कि सेना में महिला अधिकारियों की नियुक्ति एक विकासवादी प्रक्रिया मानी है. इस बाबत कोर्ट ने केन्द्र सरकार को फटकार भी लगाई है कि SC ने हाईकोर्ट के फैसले पर रोक नहीं लगाई हैं इसके बावजूद केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय के फैसले को लागू नहीं किया. इस को लेकर सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के पश्चात् भारतीय सेना में महिलाओं को लेकर किस तरह के बदलाव होंगे? यह प्रश्न पूछा हैं.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के पश्चात् अब महिलाएं सेना में कर्नल या उससे ऊपर रैंक पर पदस्थ हो सकती है. वहीं एक महिला कर्नल अब 850 पुरुषों की एक बटालियन की कमान भी संभाल सकती है. महिलाओं अपनी योग्यता के आधार पर ब्रिगेडियर, मेजर जनरल, लेफ्टिनेंट जनरल और सैद्धांतिक रूप से सेना प्रमुख पदों पर पदस्थ हो सकती हैं. परन्तु, यह कई लड़ाकू संरचनाओं की अगुवाई करने के अनुभव के बिना लगभग असंभव सा नजर आ रहा हैं, जिसे काफी समय से अस्वीकार किया जा रहा है. युद्ध अथवा दुश्मनों से मुकाबला करने वाली भूमिकाओं में महिलाओं की स्थिति में कोई बदलाव नहीं हुआ है, जिसको लेकर अभी भी पैदल सेना, तोपखाने और बख्तरबंद कोर में सम्मलित नहीं हो सकती हैं. नागरिकों को अवसर की समानता, लैंगिक न्याय सेना में महिलाओं की भागीदारी का मार्गदर्शन करेगा.
यहां आपको बता दें कि कोर्ट ने बताया कि केन्द्र सरकार अपने दृष्टिकोण और मानसिकता में बदलाव करने की जरूर हैं. कोर्ट ने बताया कि सेना में सच्ची समानता लानी होगी. वहीं 30 प्रतिशत महिलाएं वास्तव में लड़ाकू क्षेत्रों में तैनात हैं. स्थायी कमीशन देने से इनकार स्टीरियोटाइप्स पूर्वाग्रहों का प्रतिनिधित्व करते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने बताया कि केंद्र की दलीलें परेशान करने वाली हैं. महिला सेना अधिकारियों ने शुरू से ही देश का सम्मान बढ़ाया है. केंद्र सरकार को इस और विशेष ध्यान देने की आवश्यकता हैं.
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