कारगिल विजय दिवस : पेट में गोली लगने के बाद भी उत्साह से भरपूर थे 'भरत सिंह'
कारगिल विजय दिवस : पेट में गोली लगने के बाद भी उत्साह से भरपूर थे 'भरत सिंह'
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पाकिस्तान के ख़िलाफ़ लड़े गए कारगिल महायुध्द से जिनकी सीधी यादें जुड़ीं हुई है, उनमें सबसे पहले आते है हमारे जांबाज सैनिक। ऐसे ही एक सैनिक है भरत सिंह। जो इस विजयगाथा का हिस्सा रहे थे। उन्होंने कारगिल विजय दिवस से जुड़ी अपनी यादों और कहानी को साझा किया है।

कारगिल युद्ध के समय कांस्टेबल की भूमिका निभाने वाले जांबाज भरत सिंह खुद के पेट में गोली लगने का किस्सा सुनते हुए कहते हैं कि रात्रि के समय लगी सर्चिंग ड्यूटी में हमें जूझना था और यह सब सूझबूझ अधिकारी की ही होती है कि सर्चिंग में कितने घंटे देना है। सर्चिंग के लिए हमारा प्लान करीब 4 घंटे का था। उस समय क्रॉस फायरिंग जारी थी। ऊंची पहाड़ी पर बैठे दुश्मन नापाक हरकत के साथ हमले किए जा रहे थे। हालांकि हमने भी इसका मुंहतोड़ जवाब दिया। लेकिन तब ही एक गोली मेरी नाभि में आकर लग जाती है और उस दौरान मेडिकल टीम मुझे संभालती है। सेना में घायल होना आम बात होती है। मन में उत्साह दोगुना था और आखिरकार हम युद्ध जीतने में सफल रहे। 

भरत सिंह ने बताया कि सेना में सर्विस के दौरान उन्होंने अधिकतर समय जम्मू, द्रास और कुपवाड़ा के पहाड़ों में ही गुजारा। पिता की तरह ही अब उनका बेटा भी सेना में जाकर देश की सेवा करना चाहता है। भरत सिंह कहते हैं कि 2001 में बेटे का जन्म हुआ था। उसका नाम रोहित है और वह कारगिल एवं हमारी हिम्मत के किस्से सुनकर अब सेना में जाने का मन बना चुका है। भरत सिंह ने बताया कि रोहित ने 12वीं कक्षा की पड़ही आर्ट से की है। हर दिन उनका बेटा दो घंटे मेडिकल फिटनेस के लिए दौड़ लगाता है। कारगिल में दुश्मनों के सामने सीना चौड़ा रखकर खड़े रहने का साहस उन्हें उनके पिता हीरालाल गुर्जर और माता सोहन बाई गुर्जर से मिल सका। 

 

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