आज गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन की 101वीं पुण्यतिथि है। उनका देहांत 26 अप्रैल 1920 को हुआ था। रामानुजन बहुत गरीब परिवार से थे। उनके पास अपने शौक पूरा करने के रूपए तक नहीं हुआ करते थे। मशहूर है कि रामानुजन गणित के एक प्रश्न को 100 से भी ज्यादा तरीकों से बना सकते थे। इसी खासियत ने उन्हें दुनिया में गणित के गुरु का दर्जा दिलाया है।
श्रीनिवास रामानुजन का बचपन अन्य बच्चों की तरह नहीं थे। उनका जन्म 22 दिसंबर 1887 में हुआ था। 3 वर्ष की उम्र तक वो बोल नहीं पाए थे, जिसके कारण से माता-पिता को चिंता होने लगी थी कि रामानुजन गूंगे तो नहीं है। वो विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। उनकी प्रतिभा कभी उम्र की मोहताज नहीं रही। रामानुजन का जीवन सिर्फ 33 वर्ष तक रहा।
नहीं लगता था पढ़ाई में मन: रामानुजन की शुरुआती पढ़ाई तमिल भाषा में शुरू हुई थी। शुरू में उनका मन पढाई की तरफ कभी नहीं रहता था। पर आगे जाकर प्राइमरी परीक्षा में पूरे जिले में पहला स्थान हासिल कर लिया। आगे की पढ़ाई के लिए पहली बार उच्च माध्मिक स्कूल में गये यहीं से गणित की पढ़ाई की शुरुआत हुई।
प्रश्न पूछने का शौक: हम बता दें कि रामानुजन को बचपन से ही सवाल पूछने का शौक था। और वे कभी कभी ऐसा प्रश्न पूछते थे कि शिक्षकों के दिमाग चकरा जाते थे। लेकिन किसी भी प्रश्नों को जानने की उनमें बहुत जिज्ञासा थी। कहते हैं कि वो अपने अध्यापकों से ऐसा सवाल भी पूछते थे कि 'संसार का पहला इंसान कौन था? आकाश और पृथ्वी के मध्य की दूरी कितनी है? समुद्र कितना गहरा और कितना बड़ा है? ।
गणित में किया टॉप, बाकी विषयों में हुए फेल: रामानुजन गणित में इतना ज्यादा पढ़ाई करते थे कि अन्य विषयों पर थोड़ा-सा भी ध्यान नहीं दे पाते थे। जिसका नतीजा एक बार ऐसा हुआ कि 11वीं की परीक्षा में गणित में तो टॉप कर लिया जबकि अन्य सभी विषयों में पास नहीं हो पाए। पढ़ाई से नाता टूटने के बाद रामानुजन के जीवन के कुछ साल बहुत संघर्ष में गुजरे।
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