सीताराम केसरी को हटाकर कैसे कांग्रेस अध्यक्ष बनी थीं सोनिया गांधी ? नरसिम्हा राव की भी की थी दुर्गति
सीताराम केसरी को हटाकर कैसे कांग्रेस अध्यक्ष बनी थीं सोनिया गांधी ? नरसिम्हा राव की भी की थी दुर्गति
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नई दिल्ली: आज कांग्रेस की सर्वेसर्वा सोनिया गांधी का जन्मदिन है। मौजूदा समय में भले ही कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे हैं, लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि, सोनिया गांधी की सहमति के बगैर चुनाव में शशि थरूर को हराकर खड़गे कुर्सी पर बैठ सकते थे। हालांकि, यह पहली बार नहीं है, जब सोनिया गांधी ने पार्टी की कमान अपने हाथ में रखने के लिए इस तरह परदे के पीछे रहकर काम किया हो। देश के पूर्व पीएम नरसिम्हा राव और पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सीताराम केसरी भी इसका शिकार हो चुके हैं।   

नरसिम्हा राव से सोनिया गांधी इस कदर नाराज़ थीं कि देश के पूर्व पीएम के तिम संस्कार के लिए दिल्ली में जगह तक नहीं दी गई थी। यहाँ तक कि, दिग्गज कांग्रेसी होने के बाद भी सोनिया गांधी ने उनके शव को कांग्रेस मुख्यालय के अंदर भी नहीं जाने दिया था। बाद में सीताराम केसरी का भी कद बढ़ते देख सोनिया गांधी ने उन्हें भी पार्टी से बेदखल कर दिया था। सीताराम केसरी की विदाई नरसिम्हा राव से भी बदतर रही थी। अनुभवी गांधीवादी और स्वतंत्रता सेनानी सीताराम केसरी को 12वीं लोकसभा (1998) के चुनाव के बाद सोनिया गांधी के वफादारों ने वास्तव में सड़क पर फेंक दिया था। इस चुनाव में सोनिया गांधी ने 130 से ज्यादा रैलियां की थी। लेकिन, इसके बाद भी कांग्रेस 142 सीटों पर सिमटकर रह गई। यहाँ तक कि, कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में अमेठी के अपने पारंपरिक गढ़ को भी गँवा दिया। 

कांग्रेस के सोनिया समर्थक एक गुट ने इस शिकस्त के लिए केसरी को जिम्मेदार ठहराया। हालांकि, इस चुनाव में केसरी ने एक भी रैली नहीं की थी। फिर भी केसरी पर दोष मढ़ने के लिए यह तर्क दिया गया कि 'केसरी के कमजोर नेतृत्व के चलते सोनिया गांधी के करिश्मे का फायदा कांग्रेस को नहीं मिला।' दरअसल, कांग्रेस के वफादार नेताओं द्वारा सोनिया गांधी का कद बढ़ाने के लिए सियासी जमीन तैयार की जा रही थी। सोनिया गांधी के वफादारों ने आरोप लगाया कि केसरी दक्षिण भारत के नेताओं के साथ बातचीत करने में नाकाम रहे, क्योंकि उन्हें अंग्रेजी नहीं आती। यहाँ तक कि, स्वतंत्रता सेनानी रहे केसरी को सवर्ण विरोधी भी करार दिया गया। केसरी OBC जाति से आते थे। उनपर  मुलायम सिंह और लालू प्रसाद यादव जैसे समाजवादियों के साथ शामिल होकर साजिश रचने का आरोप लगाया गया। 

चारों तरफ से अपनी दुर्गति होते देख सीताराम केसरी ने 9 मार्च, 1998 को अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। हालांकि, इसके कुछ ही समय बाद उन्होंने तुरंत यू-टर्न मारते हुए अपना इस्तीफा वापस भी ले लिया। केसरी ने AICC के खुले सत्र में और अपनी पसंद के दिन इस पद को छोड़ने का फैसला लिया था। मगर, 14 मार्च 1998 को कांग्रेस वर्किंग कमेटी की मीटिंग 24, अकबर रोड पर हुई। केसरी भी इस मीटिंग में शामिल हुए। लेकिन, केसरी इस बात से अनजान थे कि पहले ही उनकी पीठ में छुरा घोंपा जा चुका है। सोनिया गांधी के समर्थकों ने पहले प्रणब मुखर्जी के आवास पर एक मीटिंग कर दो प्रस्तावों को पेश करने का फैसला कर लिया था। पहला PRASTAV सीताराम केसरी को हटाने का था और दूसरा सोनिया गांधी को राष्ट्रीय अध्यक्ष की कुर्सी पर बिठाने का।

सीताराम केसरी को भी कुछ ही देर में असलियत पता चल गई। बैठक में केवल तारिक अनवर ही उनका अभिवादन करने के लिए खड़े हुए। प्रणब मुखर्जी ने पार्टी के लिए उनकी सेवा के लिए केसरी को धन्यवाद कहा, एक तरह से ये धन्यवाद केसरी का सफर ख़त्म होने का इशारा था। इसके बाद केसरी मीटिंग से उठकर चले गए। तारिक अनवर उनके कमरे तक पीछे-पीछे गए। मनमोहन सिंह के नेतृत्व में नेताओं का एक समूह उन्हें मनाने के लिए गया, मगर केसरी ने वापस आने से साफ मना कर दिया। सियासी पंडित यह भी कहते हैं कि इसके बाद केसरी ने खुद को एक कमरे में कैद कर लिया था। इसके बाद उस कमरे को खुलवाकर केसरी से जबरन इस्तीफा वाले कागज पर दस्तखत कराए गए थे।

इसके बाद सोनिया गांधी कांग्रेस हेडक्वार्टर पहुंचीं। जब सीताराम केसरी जाने के लिए अपनी कार में बैठ रहे थे, इसी बीच यूथ कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने उनकी धोती खींचने का भी प्रयास किया। जब तक केसरी 24 अकबर रोड से बाहर निकले, उनके नाम की नेमप्लेट भी फाड़कर कूड़ेदान में फेंकी जा चुकी थी और उस स्थान पर एक नया प्रिंटआउट लग चुका था, जिस पर लिखा था: 'कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी'।

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